बैरागी की नेकदृष्टि : पत्रकारिता के नाम पर किसी के संकेत पर अयोग्य समाचारों के प्रकाशन से बचे पत्रकार


राजेश बैरागी । मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी द्वारा अनजाने में की गई मामूली सी चूक को समाचार बनाने के पीछे क्या योजना रही होगी?

समाचार प्रसारित करने वाले पत्रकार द्वारा पहले इसके लिए क्षमा मांगने, फिर पत्रकारिता छोड़ देने और तत्पश्चात सत्ता पक्ष के एक एम एल सी के द्वारा मनाने के बाद पत्रकारिता छोड़ देने के निर्णय को वापस लेने की कहानी बहुत तिलस्मी भी नहीं तो थोड़ा कौतुहल तो उत्पन्न करती ही है।


यह कहानी एक पत्रकार द्वारा एक समाचार प्रकाशित करने से संबंधित है। किसी घटना को समाचार मानने की स्वतंत्रता पत्रकार की निजी होती है। परंतु यदि कोई समाचार शासन प्रशासन के किसी पदाधिकारी को विशेष रूप से निशाना बनाने के लिए प्रकाशित किया जाए तो इसे केवल पत्रकार की निजी स्वतंत्रता मानकर अनदेखा नहीं किया जा सकता है। क्या हुआ यह किसी को खबर नहीं है परंतु समाचार प्रकाशित करने के कुछ समय बाद पत्रकार की ओर से एक लिखित क्षमानामा उसी माध्यम से प्रकाशित किया गया। फिर कुछ घंटों बाद पत्रकार ने मीडिया जगत और समाज से इस विपदा की घड़ी में सहयोग न मिलने के कारण पत्रकारिता छोड़ने की घोषणा कर दी। तत्पश्चात सत्ता पक्ष के एक एम एल सी और समाज के कुछ बड़े लोगों के मनाने पर पत्रकार ने पत्रकारिता छोड़ने का अपना निर्णय वापस ले लिया।

इस समूचे घटनाक्रम से कई प्रश्न उत्पन्न हुए हैं। क्या मीडिया पर वर्तमान में सरकारी मशीनरी सच उजागर न करने के लिए कोई शिकंजा कस रही है?

आपातकाल के दौर में रात्रि में अपने घर में सोकर सुबह अपने घर में उठने वाले लोग स्वयं को सौभाग्यशाली मानते थे। क्या वह दौर अघोषित रूप से फिर लौट आया है? या पत्रकारिता के माध्यम से किसी के संकेत पर किसी महत्वपूर्ण पदाधिकारी की प्रतिष्ठा धूमिल करने का षड्यंत्र भी पत्रकारिता के दायरे में ही सुरक्षित रखा जाना चाहिए?

संभवतः यह घटना इन सब प्रश्नों के दायरे में है। हालांकि ऐसा कराने के पीछे कौन था और उसे क्या लाभ होता, यह जानकारी मिलनी शेष है परंतु पत्रकारों को यह भली प्रकार समझ लेना चाहिए कि किसी के संकेत पर अयोग्य समाचारों के प्रकाशन से स्वयं को बचाना चाहिए। और यदि ऐसा करने में आपकी रुचि है तो फिर उसके नफे नुकसान के जिम्मेदार भी आप स्वयं हैं। उसके लिए पत्रकारिता और मीडिया जगत को दोषी ठहराना अपनी ग़लती के लिए दूसरे को दोष देना ही है। यह किसी दृष्टि से भी उचित नहीं है।