राजेश बैरागी । ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण पर चल रहे किसानों के धरने का 61 वें दिन हुआ पटाक्षेप अपेक्षित होने के साथ कई प्रश्न पीछे छोड़ गया है। क्या इस प्रकार के पटाक्षेप से किसानों की मांगों का समाधान हो सकेगा? और क्या इस धरने की पिच पर दो शत्रु टीमों की भांति खेले स्थानीय भाजपा नेता आगामी 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की नैया डुबोने का कार्य करेंगे?
किसी प्रकार भी समझौते की आस लगाए धरने पर बैठे किसानों को आज 61 वें दिन सांसद सुरेंद्र नागर की अगुवाई में खुशी खुशी घर भेज दिया गया।25 जून को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आगमन से पहले हुए नाटकीय घटनाक्रम में गत छः जून से जेल में बंद 32 किसानों को रिहा कर धरना स्थल पर लाया गया और प्राधिकरण की ओर से एक समझौता पत्र उन्हें सौंपकर धरना समाप्त करा दिया गया। समझौता पत्र पर सबसे कनिष्ठ अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी आनंद वर्धन के हस्ताक्षर हैं। समझौता पत्र नया नहीं है।
अमूमन यही समझौता पत्र छः दिन पहले विधायक तेजपाल नागर ने भी तैयार कराकर धरना सम्पन्न कराने का प्रयास किया था। जेल में बंद किसानों को आधी रात में ही रिहा कराने की बात कही गई थी। बात लगभग बन चुकी थी कि अचानक किसानों के एक गुट ने एक फोन आने के बाद समझौता मानने से इंकार कर दिया। अपनी किरकिरी होता देख विधायक ने आपा भी खोया और किसानों को खरी खोटी भी सुनाई। इससे क्षेत्र में उनकी किसान विरोधी छवि भी बनी। धरना छः दिन और चला।
पर्दे के पीछे से सांसद सुरेंद्र नागर ने अपने गुट के किसानों को धरने की कमान संभलवाई। इस बीच किसानों और प्राधिकरण के बीच खामोशी छाई रही। हालांकि किसानों की ओर से धरना समाप्त न कर स्थगित करने की घोषणा की गई है परंतु सब जानते हैं कि ऐसी घोषणाएं का कितना महत्व होता है। असल समस्या है किसानों की मांगों को पूरा होने की।
समझौता पत्र पर मुख्य कार्यपालक अधिकारी ने हस्ताक्षर नहीं किए हैं। जबकि किसान इस बात पर भी अड़े थे। स्थानीय भाजपा नेता स्पष्ट तौर पर एक दूसरे को पछाड़ने में लगे रहे जबकि यह समाधान अब से पहले भी हो सकता था। तो क्या 2024 के लोकसभा चुनाव में ये भाजपा नेता आपसी मतभेदों को भुलाकर एकजुट हो सकेंगे?समय इसका जवाब देगा परंतु इस उखाड़ने पछाड़ने का प्रभाव तो मुख्यमंत्री की कल होने वाली जनसभा पर भी दिखाई देगा।