ये एक संयोग ही था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में आयोजित पार्टी के कार्यक्रम में पसमांदा मुस्लिम समाज की जातियों का जिक्र करते हुए उनकी दुर्दशा और उसके कारणों पर तमाम बातें कही । इसके साथ ही वह मुस्लिम महिलाओं के लिए तीन तलाक जैसी कुरीति को दूर करने का अपना सहयोग बताना भी नहीं भूले, इसके साथ ही उन्होंने देश में कॉमन सिविल कोड की जोरदार वकालत करते हुए एक नया राजनीतिक मुद्दा जनता को दे दिया ।
इस मुद्दे के राजनीतिकरण की चर्चा से अलग एक समाचार पर अपडेट के लिए एक पुलिस चौकी में पहुंचता हूं, अक्सर चौकी में कई तरीके के पीड़ित आते हैं और कई बार कुछ समाधान वही हो जाते है । ऐसे किस्से अक्सर पत्रकारों को पुलिस का अच्छा चेहरा भी बताते है।
चौकी इंचार्ज वहां आई एक मुस्लिम महिला की शिकायत पर उसके पति के दिए नंबर पर फोन कर कर पूछते हैं तो वह बताते हैं कि वह ईद के लिए शहर से बाहर चले गए किंतु महिला द्वारा यह बताए जाने पर उसकी दुकान यही हैं और वह दुकान पर ही बैठे हैं l चौकी इंचार्ज दोबारा उसे फोन करते हैं तो वो स्वीकार करता है कि हम दुकान पर हैं किंतु इसके बाद भी चौकी इंचार्ज स्वयं भी उसके पति द्वारा उसके ब्लॉक किए नंबर को खुलवाने में असमर्थ हैं वह कुछ दिनों बाद होने वाली उसकी सुनवाई तक उसे रुकने का कहते हैं और किसी भी आपात स्थिति में 1090/112 पर कॉल करने को कहते हैं और भरोसा दिलाते हैं कि उत्तर प्रदेश पुलिस उसकी सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है ।
वो एक मासूम नाजुक सी लड़की, बहुत बहादुर, मगर दबाब में थी
पुलिस चौकी में कुछ देर बाद बात करते हुए के दौरान मासूम दुबली पतली सी 23 साल की लड़की वहां आकर बैठती है और चौकी इंचार्ज से अपनी शिकायत बताती है लड़की के कहानी आम घरेलू झगड़े से पीड़ित लड़की की कहानी से ज्यादा नहीं होती, फिर भी पूछताछ के दौरान इस केस में मेरी रुचि जागृत होती है, वो बताती है कि वो डबल ग्रेजुएट करी हुई एक मुस्लिम लड़की है इसके नाम का अर्थ ईमानदार, न्यायसंगत होता है, पर फिलहाल हम उसे नीलोफर (काल्पनिक नाम क्योंकि मैंने निकाह फिल्म ही उर्दू में देखी हैं) कहेंगे ।
वह पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी से से यहां आकर नर्स की नौकरी कर रही थी जब उसे पास ही में एक दुकान करने वाला वसीम ( बदला हुआ नाम ) मिलता है । वह लड़की इस मुस्लिम लड़के को देखकर उसके प्रेम में पड़ जाती है । बातें उसके साथ रहने वाले परिवार तक पहुंचती हैं परिवार को लड़की पसंद आती है लड़की के घरवालों से बात होती है और उन पर जनवरी में तुरंत शादी करने का दबाव डाला जाता है । लड़की के घरवाले इतनी जल्दी शादी करने से इंकार कर देते हैं किंतु यहां लड़के ने लड़की को अपने प्रेम जाल में ऐसा बांधा कि बिना अपने परिवार को बुलाए लड़की शादी करने को तैयार हो जाती है ।
यहीं से उसके बुरे दिनों की शुरुआत होती है, जनवरी में शादी के फौरन बाद लड़की की नर्स की नौकरी छुड़वा दी जाती है लड़की का देवर उस पर बुरी नजर रखने लगता है वह अपने पति से शिकायत करती है तो उसको चुप रहने को कहा जाता है इसी बीच वह गर्भवती हो जाती है । उससे अपने घर से पैसा लाने को कहा जाता है और प्रताड़ित किया जाता है l पारिवारिक झगड़ो के बीच इस परिवार द्वारा उसका अबॉर्शन मई के महीने में करा दिया जाता है और लड़का उसे उसी घर में छोड़कर अपने परिवार के पास वापस चला जाता है ।
लड़की इस मामले की शिकायत पुलिस के महिला विभाग में करती है जो उसे 1 महीने बाद की डेट देता है लेकिन इस बीच उसका पति और परिवार उसके फोन नंबर ब्लॉक कर देता है । अबॉर्शन के बाद बेसहारा हुई लड़की के पास घर में अकेले रहने के सिवा दूसरा चारा नहीं होता है उसको बार-बार धमकियां दी जाती हैं और अंत में जिस मकान में वह रही थी उसके मकान मालिक से कह दिया जाता है, कि रेंट एग्रीमेंट उसके नाम पर है इसलिए आगे से उसका किराया नहीं देगा और वह चाहे तो उसको निकाल दे ।
लड़की अपनी दूसरी शिकायत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जनसुनवाई पोर्टल पर डालती है जिसकी शिकायत को लेकर चौकी में आई है l बीते महीने भर से बेसहारा हुई और परिवार से कटी इस लड़की की दुर्दशा उसके चेहरे पर दिखाई देती है ।
मैं अक्सर इस तरह प्रेम विवाह करने वाली लड़कियों के ऐसे किस्से सुनता हूं जो बालीवुड फिल्मों को देख कर बिना जाने बिना परिवार की मर्जी के घर से दूर आकर शादियां कर लेती हैं और फिर परिवार से कट जाती है लड़की रोती हुई बार-बार आत्महत्या करने को कहती है। ऐसी परिस्थिति में अक्सर पत्रकार और पुलिस दोनों ही किमकर्तव्यमूड हो जाते है जहां वह कानूनी बात तो कर पाते है किन्तु सामाजिक मदद नहीं कर पाते l
भारत में मुस्लिम महिलाओं की दयनीय स्थिति
पुलिस और पीड़ित लड़की की चर्चा के बीच में भारत में मुस्लिम लड़कियों महिलाओं की दयनीय स्थिति और थोड़ी देर पहले नरेंद्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसमांदा मुस्लिम समाज के पिछड़ेपन पर सुन रहे भाषण और यूसीसी यानी समान नागरिक संहिता के मुद्दे के बारे में सोचने लगता हूं । मैं सोचता हूं कि क्या सच में नरेंद्र मोदी कोई राजनीति कर रहे हैं या मुस्लिम महिलाओं और पसमांदा समाज के पिछड़ेपन पर कोई मजबूत सुधार करना चाहते हैं, जिससे नीलोफर जैसी लड़कियां शोषण की शिकार ना हो सके ।
स्वतंत्रता के 70 सालो बाद भी मुस्लिम महिलाये भारत में संविधान द्वारा महिलाओं को दिए अधिकारों से वंचित है । उसको शरीयत के नाम पर तमाम बंदिशों में बांधा जाता है और डर दिखाया जाता है। तीन तलाक जैसी रूढ़िवादिता के खिलाफ खड़े होने में मुस्लिम समाज की महिलाओं को वक्त लग गया। ऐसे में बहु पत्नी विवाह का विरोध करने में उसे कितना समय लगेगा ? क्या वो वाकई संविधान के अनुसार अपने पति से गुजारा भत्ता मांग पाएगी या फिर इस पीड़ित लड़की की तरह बेसहारा होकर आत्महत्या करने का विचार करेगी।
पीड़ित लड़की को उसकी स्थिति पर छोड़कर मैं अपने ही विचारों में व्यथित चौकी से निकल जाता हूं, इस दर्द के साथ कि वर्तमान कानून व्यवस्था के अंतर्गत मौजूद अधिकारों में फिलहाल उस मुस्लिम लड़की के अधिकारों की लड़ाई को लड़ने में सक्षम नहीं हूं, पर क्या राजनीतिक लाभ के लिए ही सही, सिर्फ कुछ घंटों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा समान नागरिक संहिता के आने से मुस्लिम महिलाओं को इन अधिकारों के चलते वह स्वतंत्रता हासिल होगी जो उन्हें एक बंद समाज के अंदर घुट घुट कर जीने को मजबूर कर रही है जिसके चलते मुस्लिम महिलाओं की औसत शिक्षा दर सामान्य से 10% कम है और नीलोफर जैसी लड़कियां जो किसी वजह से पढ़ लिख जाती हैं वो भी शादी के बाद उसी भंवर में फस कर इसी तरह अपने आप को समाप्त करने का सोचने लगती है
क्या भारत में मुस्लिम समाज 21वीं सदी के नियमों के अनुसार आज भी चलने में सक्षम नहीं है सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार भारत में मुस्लिम परिवारों में रूढ़िवादिता की स्थिति हिंदू परिवारों के मुकाबले बहुत ज्यादा है और उनको भी अपने एक अंबेडकर की तलाश है क्या मोदी समान नागरिक संहिता लाकर मुस्लिम समाज के लिए अंबेडकर साबित होंगे? क्या वाकई मोदी हिंदू मुसलमान से अलग देश की महिलाओं ख़ास तोर पर मुस्लिम महिलाओं की बदतर स्थिति को मजबूत कर पाएंगे? ये विचार मैं आप पर छोड़ता हूं ।