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सत्यम शिवम सुंदरम : आदिपुरुष फिल्म के लेखक निर्माता निर्देशक को एक भव्य फिल्म बनाने की असफल कोशिश के लिए भी सराहना करनी चाहिए

मुझे आदिपुरुष फिल्म के संवादों को लेकर उठा विवाद बहुत ज्यादा बड़ा नहीं लग रहा है क्योंकि अक्सर रामलीला में इस तरीके के डायलॉग कहे जाते रहे हैं और अशोक वाटिका के अंदर हनुमान जी को यही कहा जाता रहा है यहां तेरी बुआ का बगीचा कहा गया है रामलीला में थोड़ा और भदेश हो जाया करता है । और मुझे फिल्म देखते हुए इस डायलॉग में मजा भी आया । राधेश्याम रामायण के आधार पर होने वाली रामलीलाओं में सीता स्वयंवर के दौरान एक कॉमेडी करने वाले राजा का प्रसंग खूब दिखाया जाता है जिसमें स्थानीय कलाकार अनेक तरीके के हास्य को करके लोगों को स्वयंबर का भरपूर आनंद देते हैं ।

फिल्म में सबसे अच्छा काम अगर किसी ने किया है तो वह सैफ अली खान है पूरी फिल्म प्रभास की जगह सैफ की है । सैफ अली खान को अगर आप सुदेश टैगोर मानकर फिल्म देखेंगे तो पाएंगे( मुझे डर है कि कहीं वो सच में सैफ से सुदेश टैगोर ना हो जाए ऐसे हमे अर्जुन का चरित्र निभाने वाले मुस्लिम कलाकार का देखा था ) उसने कहीं भी रावण को कमजोर नहीं होने दिया है ।

किंतु ग्रेटर नोएडा के बिसरख को रावण की जन्म भूमि मानने वाली बातों के चलते लेखक या निर्माता-निर्देशक उसे यहां के प्रभाव में दिखाने से नहीं चुके हैं। फिल्म में एक और चीज मुझे गड़बड़ लगी कि प्रभाष बने श्रीराम, रावण बने सैफ से ज्यादा उम्र के प्रतीत होते देखते हैं, प्रभास श्रीराम के चरित्र को जी पाने में नाकाम लगते है यहां निर्द्शक ओम राउत की कमी स्पष्ट नजर आती है शायद उनकी इंग्लिश प्रभास को समझ ना आई हो और प्रभास के स्टारडम के आगे ओम कुछ कह ना पाए हो ।

फिल्में बहुत सारी गड़बड़ियां हैं लेकिन हर सीन पर गलतियां अगर आप निकालने बैठेंगे तो कल्ट क्लासिक कही जाने वाली mughal-e-azam भी बर्बाद है क्योंकि mughal-e-azam में ऐसी ऐसी गलतियां हैं जिनके ऊपर आप पूरा एक महाकाव्य लिख सकते हैं ।

फिल्म को निश्चित तौर पर ओम राऊत एंटरटेनर बनाने में चूक गए हैं मुझे साहित्यिक और धार्मिक दृष्टिकोण के अलावा भी फिल्म इंटरवल के बाद बोझिल भी लगी है । दर्शकों का मन करता है कि फिल्म किसी तरीके से समाप्त हो मगर भगवान राम और रावण के बीच चल रहे युद्ध को आकर्षक बनाने की सारी कोशिशें नाकामयाब होती जाती है।

फिल्म में सबसे खराब चीज है इस फिल्म में हिंदी के साथ उर्दू के शब्दों का अत्यधिक प्रयोग, मनोज मुंतशिर शुक्ला अपने नाम की तरह हिंदी के साथ उर्दू शब्दों का प्रयोग करते हुए देखते हैं जिससे पात्र बेबस नजर आते हैं , जब कोई धार्मिक पात्र कोट, महल की जगह किला कहे तो लेखक की भाषाई दरिद्रता स्पष्ट दिखाई देती है

कुछ लोगों को भगवान राम और माता सीता के प्रणय संबंधों के बीच बने दृश्यों पर आपत्ति है परंतु मेरी सोच से इतनी क्रिएटिव लिबर्टी दी जानी चाहिए, किंतु विभीषण की पत्नी का ड्रेसिंग सेंस देखकर ऐसा लगता है शायद उस दिन सेट पर एकता कपूर आ गई थी और उसी दिन सुपनखा और मंदोदरी के बीच का संवाद भी लिखा गया होगा एकता कपूर का पूर्ण प्रभाव उस पर दिखता है।

फिल्म में रावण द्वारा अपने एक चमगादड़ राक्षस को मांस के टुकड़े खिलाने के सीन पर कुछ लोगों को आपत्ति है लोगों का कहना है कि शिव भक्त रावण ऐसा कैसे कर सकता है लेकिन तथाकथित तौर पर ब्राह्मण और शिव भक्त रावण राक्षसी कैक्सी का पुत्र है जो अपने भाई कुबेर से लंका और अलकापुरी छीन सकता है । अपनी बहन सूपनखा के पति को मार सकता है अपनी पुत्रवधू के साथ बलात्कार कर सकता है तो क्या रावण मास नहीं खा सकता या नहीं खिला सकता यह परिचर्चा का विषय नहीं होना चाहिए । किंतु रावण का एक राज्य का राजा होने के बावजूद खुद हथियारों को लोहार की तरह पीट-पीटकर बनाते देख प्रश्न पूछे जाने चाहिए

फिल्म को बहुत सुंदर बनाया गया है और बनाया जा सकता था फिल्म के बीजीएम और ग्राफिक्स अल्टीमेट हैं । रावण का भगवान शिव की आराधना करने के दौरान शिवोहम का प्रस्तुतीकरण इतना सुंदर है कि आप मंत्रमुग्ध हो जाते हैं ।

लेकिन ओम राऊत 500 करोड़ का बजट लेने के बाद कहानी की जगह बाकी सब चीजों पर काम कर गए । शायद ग्राफिस टीम के हिसाब से कहानी की परिकल्पना करने लग गए । और ग्राफिक्स टीम इंग्लिश फिल्मों की दीवानी हैं, उन्ही के हिसाब से रामायण को सोचने की कोशिश करती है।

जिसके कारण आज फिल्म धार्मिक दृष्टि से जहां लोगों को परेशान कर रही है वही फिल्म सिनेमा के दृष्टि से भी डिजास्टर साबित हो रही है ।

फिल्म के बोझिल होने का एक बड़ा कारण यह भी है कि फिल्म के ट्रेलर के बाद उठे विवाद के बाद निर्माता-निर्देशक लेखक तीनों बौखला गए कि उसको कैसे सही किया जाए इस फिल्म को ग्राफिक्स के जरिए सही करने की कोशिश की गई है जबकि कहानी की कसावट और फिल्म को रीशूट किया जाना चाहिए था शायद फिल्म के कलाकारों ने ऐसा करने से मना कर दिया या फिर निर्माता निर्देशक और लेखक को यह बात समझ नहीं आई ।

बाकी फिल्म पठान के समय समर्थन करने वाले लोगों का पूरा एक गैंग इस फिल्म के खिलाफ इसलिए भी रहा है कि किसी तरीके से यह पठान के रिकॉर्ड को ना तोड़ पाए लेकिन फिल्म खुद इतनी बोझिल है कि उसको आदमी दोबारा नहीं देख पाएगा हां पठान का रिकॉर्ड टूटेगा और उसको टूटना भी चाहिए ।

बाकी मेरा निर्णय ये है कि फिल्म के लेखक निर्माता निर्देशक को एक भव्य फिल्म बनाने की असफल कोशिश के लिए भी सराहना करनी चाहिए और उनको दंड स्वरूप रामायण को दो या तीन भागों में 2000 करोड़ के बजट के साथ दोबारा बनाने की प्रतिज्ञा करवानी चाहिए और हां भूषण कुमार और मनोज शुक्ला दोनो ही चाहे तो मार्गदर्शन के लिए मुझे 9654531723 पर काल कर सकते है 

शुभकामनाओं सहित
फिल्म समीक्षा विशेषज्ञ आशु भटनागर

आशु भटनागर

आशु भटनागर बीते दशक भर से राजनतिक विश्लेषक के तोर पर सक्रिय हैं साथ ही दिल्ली एनसीआर की स्थानीय राजनीति को कवर करते रहे है I वर्तमान मे एनसीआर खबर के संपादक है I उनको आप एनसीआर खबर के prime time पर भी चर्चा मे सुन सकते है I Twitter : https://twitter.com/ashubhatnaagar हम आपके भरोसे ही स्वतंत्र ओर निर्भीक ओर दबाबमुक्त पत्रकारिता करते है I इसको जारी रखने के लिए हमे आपका सहयोग ज़रूरी है I एनसीआर खबर पर समाचार और विज्ञापन के लिए हमे संपर्क करे । हमारे लेख/समाचार ऐसे ही सीधे आपके व्हाट्सएप पर प्राप्त करने के लिए वार्षिक मूल्य(501) हमे 9654531723 पर PayTM/ GogglePay /PhonePe या फिर UPI : ashu.319@oksbi के जरिये देकर उसकी डिटेल हमे व्हाट्सएप अवश्य करे

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