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बैरागी की नेकदृष्टि : निजी विश्वविद्यालयों के बाहर भीतर क्या ?

राजेश बैरागी । दादरी (गौतमबुद्धनगर) स्थित एक निजी विश्वविद्यालय,परिसर में ही एक छात्र छात्रा की हत्या और आत्महत्या को लेकर चर्चा में है। यह घटना बीते गुरुवार की है जब छात्र अनुज विश्वविद्यालय पहुंचा, उसने सहपाठी छात्रा को गले लगाया और दो गोली उसके सिर और सीने में उतार दीं। उसके बाद छात्र छात्रावास में गया और स्वयं को भी गोली मार ली।

इस घटना के बाद इस निजी विश्वविद्यालय की सुरक्षा व्यवस्था, परिसर के भीतर और बाहर के माहौल, विश्वविद्यालय प्रबंधन की छात्रों के प्रति संवेदनशीलता के साथ साथ निजी विश्वविद्यालयों के स्वरूप को लेकर अनेक प्रश्न उठ रहे हैं।तेज गति से दौड़ते वाहनों वाले जीटी रोड पर यह शिव नादर विश्वविद्यालय भीड़भाड़ से कुछ दूरी पर स्थित है। इससे कुछ ही दूरी पर सामने एक मुकम्मल शराब की दुकान है।देर रात तक छात्र छात्राओं का आवागमन होता रहता है।

एक मित्र ने बताया कि छात्र और छात्रा शराब और दूसरे सहज उपलब्ध नशे का सेवन समान रूप से करते पाए जाते हैं। क्या केंद्रीय या राज्यों के विश्वविद्यालयों में भी ऐसा ही माहौल होता है?

दरअसल सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों में एक मूल अंतर यह है कि सरकारी विश्वविद्यालयों में प्रवेश पाने वाले छात्रों को या तो मेरिट से प्रवेश मिलता है या प्रवेश परीक्षा से। अधिकांश निजी विश्वविद्यालय उनके स्वामियों के लिए धन कमाने के साधन मात्र हैं।

किसी प्रकार उपाधि प्राप्त करने के उद्देश्य से प्रवेश पाने वाले छात्रों की शिक्षा को लेकर कोई गंभीरता नहीं होती। माता पिता के परिश्रम की कमाई पर ऐश करने के लिए निजी विश्वविद्यालय सबसे मुफीद स्थान हैं। स्नेहा की हत्या के बाद अनुज के द्वारा मौत को गले लगाना कोई पहली और अनोखी घटना नहीं है परंतु इस और ऐसी घटनाओं ने खरपतवार की भांति शिक्षा के खेत में उग आए निजी विश्वविद्यालयों के औचित्य पर प्रश्न अवश्य खड़े कर दिए हैं।

NCRKhabar Mobile Desk

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