बैरागी की नेकदृष्टि : संसद भवन नया है, विरोध पुराना है, आखिर तुम्हे आना है जरा देर लगेगी

राजेश बैरागी । जो प्रधानमंत्री दूसरे देश (अफगानिस्तान) की संसद का उद्घाटन कर सकता है,वह अपने देश की संसद के नये भवन का उद्घाटन क्यों नहीं कर सकता है?

यह प्रश्न अभी बाद को छोड़ते हैं। पहले प्रश्न यह है कि नये संसद भवन का उद्घाटन किसे करना चाहिए, राष्ट्रपति को या प्रधानमंत्री को? कांग्रेस और उसे अपना आदर्श न मानने वाले कुछ विपक्षी दलों की राय है कि राष्ट्रपति को यह अवसर मिलना चाहिए। भाजपा और उसके गठबंधन सहयोगी दलों का मानना है कि प्रधानमंत्री के द्वारा ऐसा करने में कोई दोष नहीं है।

इनके अतिरिक्त कुछ और दल हैं। ये भाजपा को नापसंद करते हैं परंतु उससे भयभीत हैं।ऐसे दलों का मानना है कि ‘कोउ करे उद्घाटन, हमें का हानि’। ये दल उद्घाटन समारोह में शामिल होंगे और इस प्रकार प्रधानमंत्री के द्वारा उद्घाटन करने के विरोधी सत्रह विपक्षी दलों के मुकाबले उद्घाटन का समर्थन करने वाले पच्चीस दलों का बहुमत प्रत्यक्ष है। क्या यह विपक्षी दलों की एक और हार है? इस प्रश्न का उत्तर खोजने की अभी आवश्यकता नहीं है क्योंकि इतिहास रचा जा रहा है।

देश अपने नये संसद भवन में प्रवेश कर रहा है। इस ऐतिहासिक समय के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं। उन्हें इतिहास में दर्ज होने के लिए नोटबंदी, जीएसटी, राममंदिर,धारा 370 का अवसान और संसद भवन का लोकार्पण सभी कुछ अपने नाम करना है।

एक शासनाध्यक्ष के लिए ऐसा करने में कुछ भी गलत नहीं है।इन सबके बीच ‘सेंगोल’ भी खूब चर्चा बटोर रहा है।सेंगोल शब्द तमिल भाषा का है जिसकी उत्पत्ति सेम्मई शब्द से हुई है। सेम्मई या सेंगोल का अर्थ राजदंड अथवा नीतिपरायणता से है। यह राजदंड संसद में लोकसभा अध्यक्ष के आसन के निकट स्थापित किया जाएगा। क्या इससे वर्तमान और भविष्य में आने वाले लोकसभा अध्यक्ष नीतिपरायणता का परिचय देंगे? संसद भवन के उद्घाटन अवसर का यही सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है।