जो समाचार पत्र पहले छप कर बिकते थे आज कल पीडीएफ कर छपते है । डिजिटल क्रांति ने कितने ही तथाकथित हिंदी समाचार पत्रों और सांध्य दैनिको की चेतना को बस पीडीएफ तक सीमित कर दिया है, ये आज चिंतन से अधिक चिंता का विषय है । डिजिटल पीडीएफ के साथ प्राधिकरण, पुलिस थानों और जिला अधिकारी कार्यालय तक अपनी कुछ छपी हुई प्रतियां पहुंचना ही आज हिंदी पत्रकारिता का सच है । ऐसे हिंदी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर देश भर के मीडिया क्लब पत्रकार सम्मान उत्कृष्ट पत्रकारों को सम्मानित कर रहे हैं । ग्रेटर नोएडा में भी प्रेस क्लब ने इस अवसर पर 19 पत्रकारों (संपादकों) को सम्मानित किया । पत्रकारों को सम्मानित करने लोकसभा सांसद डा महेश शर्मा और दादरी विधायक तेजपाल नागर के साथ जिला अधिकारी मनीष कुमार वर्मा, पुलिस कमिश्नर लक्ष्मी सिंह मौजूद रहे ।
पत्रकारों को जनता के साथ होना चाहिए
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार अनंत विजय ने कहा कि पत्रकारों को शब्दों के चयन को लेकर सजग होना चाहिए। अनावश्यक शब्दों के उपयोग से दूर रहना चाहिए। जो अख़बार लेखनी में हिन्दी व अंग्रेजी का मिश्रण करते हैं वो युवाओं का अपमान करते हैं। पत्रकारिता के मिशन में उर्दू शब्द को जबरन घुसाया जा रहा है। उन्होंने पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी का उदहारण दिया। आज भाषा के उपनिवेश से मुक्ति दिलाने की पत्रकारिता में जरूरत है।
पत्रकार सम्मान पर सत्ता के समक्ष समर्पण और विपक्ष की अनुपस्थिति ने खड़े किए प्रश्न
हिंदी पत्रकारिता दिवस के प्रसन्नता के इस क्षण में विवादों का भी संबंध संगोष्ठी और पुरस्कार समारोह से जुड़ गया है । शहर के वरिष्ठ पत्रकारों ने इस कार्यक्रम में सत्ता की चरणवंदना, सीधे हस्तक्षेप, संरक्षण के साथ विपक्ष की अनुपस्थिति पर प्रश्न खड़े किए है । मीडिया कार्यक्रम के लिए सांसद और विधायक की मौजूदगी की जरूरत और विपक्ष से नेताओ को मंच पर ना स्थान देने पर प्रश्न भी उठे है । विपक्ष में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजकुमार भाटी पूर्व में पत्रकार भी रहे है । उनका ऐसे कार्यक्रम में ना होना भी कई प्रश्न उत्पन्न करता है और संभवत पुरस्कार पाने वाले पत्रकारों के चयन प्रक्रिया पर भी प्रश्न खड़े करता है ।
लोगो का कहना है कि गणेश शंकर विद्यार्थी का नाम लेकर इस तरह चरण वंदना सही नहीं है । प्रेस क्लब के ही एक सदस्य ने कहा इस बार सर्वाधिक 19 लोगों को सम्मान दिया गया है लेकिन सम्मान कुछ लोगों को दोबारा दिया गया जबकि बहुत सारे लोगों जिले में और भी हो सकते थे जिन्हें पुरस्कार दिया जा सकता है । लेकिन असल में यह पुरस्कार पाने वालों की उपयोगिता देने वालों के लिए कितनी है उस पर निर्भर करती है और शायद इसीलिए पुरस्कार पाने वालों की योग्यता से ज्यादा उपयोगिता का ध्यान रखते हुए कई पत्रकारों को दोबारा भी पुरस्कार दिए गए है ।
इसी प्रश्न पर नाम लिखने की शर्त पर एक पत्रकार ने कहा ऐसा लगता है कि बीते दिनों कुछ पत्रकारों को लेकर जो श्रंखला एक गुट के पत्रकारों ने चलाई थी। ऐसे में सत्ता और प्रशासन के समझ उसको साफ करने के लिए इन पुरस्कारों के जरिए संदेश देने की कोशिश की गई है । यह पुरस्कार अब कुछ गुटों में तुम मुझे पुरस्कार दो मैं तुम्हें पुरस्कार दूंगा की तर्ज पर हो गए ऐसे में हर 6 महीने में यही कुछ लोग पुरस्कार लेते और देते पाए जाते हैं ।
जिले में बीते 30 वर्षों से पत्रकारिता के मिशन पर अपनी नेकदृष्टि रखे हुए वरिष्ठ पत्रकार ऐसे सम्मान समारोह पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं कि वो इन पुरस्कारों के लायक बाकी को छोड़ो स्वयं को भी कभी मानते नहीं हैं क्योंकि यह पुरस्कार संभवत: सच्चे और अच्छे पत्रकारों के लिए है और वह उस श्रेणी में खुद को कभी साबित करना नहीं चाहते है । यद्धपि जिनको पुरुस्कार मिले है वो उनको जरूर बधाई देते है ।
एक अन्य पत्रकार तो इसकी तुलना फिल्मी दुनिया में होने वाले पुरस्कारों से कर देते हैं कि आमिर खान, अजय देवगन अक्षय कुमार जैसे उत्कृष्ट कलाकार वहां नहीं जाते है ।कदाचित वो सिर्फ उनको को दिए जाते हैं जो वहां अक्सर जाते रहते हैं ऐसे में डर है कि कहीं पत्रकारिता के सम्मान के नाम पर सत्ता के संरक्षण और उन्हीं के समर्थक पत्रकारों को सम्मान देने की परंपरा कहीं जिले में भी इन पुरुस्कारों का महत्व ना समाप्त ना कर दें ।