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बैरागी की नेक दृष्टि: सरकार, कॉरपोरेट और माफिया से लड़ने के लिए स्वतंत्र प्रेस की अपेक्षा से पहले जानिए कि ये पत्रकार का निजी निर्णय है कि वह स्वतंत्र रूप से अथवा किसी के निजी हितों के लिए समाचारों का चयन करेगा

राजेश बैरागी । प्रेस को किससे स्वतंत्र होना चाहिए?एक वरिष्ठ पत्रकार साथी ने सोशल मीडिया पर सरकार का गुणगान करने वाले पत्रकारों से कल विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर अपनी आत्मा की आवाज पर समाचार लिखने की अपील की।1787 में अमेरिका में तीन मई को संविधान में संशोधन कर प्रेस की स्वतंत्रता घोषणा की गई थी।

1993 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसी दिन को विश्वव्यापी प्रेस स्वतंत्रता दिवस घोषित किया। मुझे लगता है कि जो स्वतंत्र नहीं है, वह प्रेस नहीं है, वह मात्र छापाखाना है। इसके लिए किसी संविधान में संशोधन और किसी राष्ट्र संघ की उद्घोषणा की आवश्यकता नहीं है।जब कभी प्रेस का जन्म हुआ होगा, तो उसकी प्रेरणा में स्वतंत्रता के अतिरिक्त और क्या भावना रही होगी।

सरकार या सत्ता के सामने खड़े होकर उसकी गलतियों को सार्वजनिक करना प्रेस का प्रथम कर्तव्य है।उसी प्रकार जनहित की सूचनाओं का प्रचार प्रसार भी प्रेस का ही दायित्व है।जिसे इन दोनों की समझ या परवाह नहीं है, उसे पत्रकार क्यों होना चाहिए? सरकार या सत्ता हमेशा से प्रेस को नियंत्रित करने का प्रयास करती है। इसके लिए उसे प्रेस की स्वतंत्रता को क्रय करने और उसे कुचलने से भी गुरेज नहीं रहता। तो क्या प्रेस को सहम जाना चाहिए और सरकार का मंगल गान करना चाहिए? यह प्रश्न पत्रकारों के जीवनयापन के साधन और उनकी सुरक्षा से भी जुड़ा है। सरकार प्रेस की ऐसी कोई गारंटी नहीं लेती। तो प्रेस की स्वतंत्रता को अक्षुण्ण कैसे रखा जा सकता है?

सर्वप्रथम यह प्रत्येक पत्रकार का निजी निर्णय है कि वह स्वतंत्र रूप से समाचारों का चयन करेगा अथवा किसी के निजी हितों के लिए। पूरी दुनिया में जिस प्रकार पत्रकारों पर जानलेवा हमले हो रहे हैं, उससे यह कतई साबित नहीं होता कि स्वतंत्र प्रेस का अस्तित्व नहीं है। पिछले दिनों प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया था कि बीते एक दशक में दुनियाभर में तकरीबन साढ़े तीन हजार पत्रकारों की हत्या हुई है। स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता करना यदि इतना कठिन हो गया है तो इस पर भी गौर किया जाना आवश्यक है।देश दुनिया में बढ़ती आर्थिक गतिविधियों और सरकार, कॉरपोरेट व माफियाओं की संगति ने स्वतंत्र प्रेस की अवधारणा के समक्ष कठिन चुनौती पेश की है।

प्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती सरकार होती है और उसी पर सभी की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी है।तो प्रेस की स्वतंत्रता को सबसे अधिक खतरा किससे है? क्या हम सरकार से प्रेस की स्वतंत्रता को बचाए रखने की अपेक्षा कर सकते हैं? तो फिर प्रेस की स्वतंत्रता की अपेक्षा है किससे? विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर इसी प्रश्न का उत्तर खोजने का प्रयास किया जाना चाहिए।

NCRKhabar Mobile Desk

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