राजेश बैरागी l यूं तो हरिद्वार तीर्थ भी है और पर्यटन स्थल भी है परंतु उसका महात्म्य मां गंगा से है। धरती पर अवतरित होने से आज तक अनगिनत मनुष्यों और दूसरे जीवों के पापों को हर क्षण सिर पर उठाए मां गंगा चली जा रही है। उसने कभी उज्र नहीं किया कि कोई उसे क्या दे रहा है। कोई उसे कुछ भी दे,चाहे अंजुरी भर पुष्प दे, अपने प्रियजनों की देह की राख या अस्थियां या पदक ही क्यों न दे, मां गंगा सबकुछ स्वीकारती है और बदले में कल्याण होने का आशीर्वाद देती है। इसके तट पर रोगी,भोगी, ज्ञानी, अभिमानी सभी आते हैं। अपने पाप पुण्य के गट्ठर के गट्ठर मां गंगा को सौंप देते हैं और तृप्ति का अनुभव करते हैं।
देश के लिए और अपने लिए पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को भी आज मां गंगा ने पुकारा। दिल्ली की गर्मी से हरिद्वार की गर्मी सदैव सुखद होती है। वहां मां गंगा जो है। खिलाड़ी पदक लेकर वहां पहुंचे।वे मां गंगा को पदक समर्पित करना चाहते थे।ऐसा वे गढ़मुक्तेश्वर पर भी कर सकते थे। परंतु स्थान के महात्म्य से कर्म की महत्ता बढ़ जाती है।कण कण में विराजमान उस ईश्वर को बद्री केदार या उज्जैन में तलाशने का प्रयोजन व्यर्थ तो नहीं है।सो खिलाड़ियों ने पदकों को मां गंगा को समर्पित करने के लिए हरिद्वार को चुना।वे ऐसा करने ही वाले थे कि तीनों लोकों और दसों दिशाओं से ऐसा न करो-ऐसा न करो की आकाश गुंजाने वाली आवाजें आने लगीं।पूरब दिशा के पश्चिम बंगाल से ममता दीदी तो उत्तर के कश्मीर से फारुख अब्दुल्ला,धुर दक्षिण से शशि थरूर और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से राकेश टिकैत ने पौराणिक कथाओं में वर्णित देवताओं की भांति उनसे ऐसा न करने की प्रार्थना की। स्वयं नरेश टिकैत ने हर की पौड़ी पर प्रकट होकर उनके हाथों से पदक झटक लिए और धरती पर आज एक अनर्थ होने से बच गया।