ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण पर बीते 23 दिन से किसान आंदोलन चल रहा है । किसानों की समस्या से अलग बड़ा प्रश्न ये है कि प्राधिकरण के खिलाफ चल रहे इस शांतिपूर्ण आंदोलन में प्राधिकरण को कितना फर्क पड़ रहा है, यूपी सरकार को कितना फर्क पड़ रहा है । इन्ही सब प्रश्नों को लेकर आज मैं किसानों से मिला और पूछा कि उनका मुद्दा क्या है ?
किसान सभा के अध्यक्ष संजय भाटी के साथ कई किसान नेता अपनी अपनी समस्यायों के साथ वहां बैठे है । किसान नेता अपनी जमीन के बदले 10 परसेंट प्लॉट के मुद्दे को लेकर बैठे हैं वही प्राधिकरण द्वारा 2014 अधिग्रहण कानून की जगह किसानों से सीधे जमीन खरीद कर कानून के उल्लंघन को लेकर भी किसानों के पास कई प्रश्न है ?
मुद्दों को लेकर 2 दिन पहले वृंदा करात द्वारा बड़ी भीड़ जमा करने और उसके असर पर भी किसान नेताओं में मायूस दिखे । यहां पर वृंदा करात आकर अपनी राजनीति तो कर गई साथ ही प्राधिकरण की जगह मुख्यमंत्री के सामने उनकी मांगे रखने का वादा भी कर गई लेकिन किसानों को कोई त्वरित लाभ या आश्वासन नहीं मिला यहां तक कि प्राधिकरण की सीईओ ने वृंदा करात के आने पर बाहर आना भी जरूरी समझा ।
बातचीत के दौरान कुछ किसानों ने प्राधिकरण के पूर्व सीईओ पर 12 सौ करोड़ के आरोप तक लगा दिए हालांकि आरोप लगाने वाले के साथ साथ कोई भी किसान इस तथ्य को कैमरे के सामने बोलने को तैयार नहीं लेकिन इन चर्चाओं के बल पर ही वहां बैठे गांव के लोगों के बीच इन अधिकारियों की जल्द ही ईडी द्वारा जांच की चर्चाएं भी चलती रही । वहां बैठे किसानों की मासूमियत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता था कि वो अधिकारियों के भ्रष्टाचार पर सरकारी हस्तक्षेप की उम्मीद अभी भी पाले हुए है ।
धरना कितने दिन चलेगा और कैसे चलेगा इसको लेकर किसान नेताओं में अलग-अलग बातों के बावजूद एक बार साफ थी कि इस बार अपना हक लेकर उठेंगे
प्राधिकरण और सरकार की कार्यशैली भी प्रश्नों के घेरे में
कई सवालों के बाद मन में यह प्रश्न भी उठा कि आखिर इस बीच 25 दिन तक इस तरीके के आंदोलन होने के बावजूद प्राधिकरण के अधिकारी इन पर कोई निर्णय लेने की स्थिति में क्यों नहीं है या फिर वह कोई निर्णय पर लेना नहीं चाहते है ।
ऐसे में मूल प्रश्न फिर भी वहीं था प्राधिकरण अब 2005 की तरह काम करता हुआ क्यों नहीं दिखाई देता तो क्या 2017 के बाद सरकार और अधिकारियों में कोई परिवर्तन है 2017 से पहले ही नोएडा ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में बड़े-बड़े प्रोजेक्ट बनाए गए उन पर काम किया गया और उनमें आरोप भी लगाए गए । लेकिन काम नहीं रुके थे जबकि आज अधिकारियों की रूचि काम में कम काम के लिए कमेटियां बनाकर जांच करने में ज्यादा है जब काम ही नहीं होगा तो भ्रष्टाचार भी कहां से होगा ।
प्राधिकरण के पूर्व वरिष्ठ कर्मचारी ने बताया असल में उत्तर प्रदेश में प्राधिकरण के सीईओ अब मुख्यमंत्री ही नही, बस औद्योगिक विकास मंत्री के सामने नतमस्तक रहते हैं । जबकि 2000 से पहले ऐसा नहीं होता था, जब मुलायम सिंह ने एक इंजीनियर देवदत्त शर्मा को चेयरमैन बना दिया और वह एक दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान 10 मिनट लेट होने की वजह से मुलायम सिंह और अमर सिंह के चरणों में लौट गए थे ।
उसके बाद से लगातार प्राधिकरण पर नेताओं की हनक का कब्जा होता गया । कभी सचिव स्तर के अधिकारियों को ही सीईओ और चेयरमैन बनाए जाने वाले नोएडा और ग्रेटर नोएडा के प्राधिकरण में आज जूनियर अधिकारियों को भेजा जाता है ऐसे में राजनेताओं के सामने उनकी स्थिति फैसले लेने की नहीं है । स्थिति इतनी भयावह है कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा दो प्राधिकरण के सीईओ और चेयरमैन पर एक एक व्यक्ति ही काबिज है । औद्योगिक विकास मंत्री चाहते नहीं कि किसी ऐसे वरिष्ठ को यहां लाया या एक्सटेंशन दिया जाता जो काम उनके हिसाब से की जगह सही काम करता ।
प्राधिकरण को 35 सालो से कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार ने एनसीआर खबर को बताया कि यही कारण है कि कभी उत्तर प्रदेश सरकार के समानांतर कहे जाने वाली नोएडा प्राधिकरण के सीईओ और चेयरमैन आज किसानों से भी लखनऊ से फैसले होने की बातें करते हैं शायद उनको यह बताया गया है कि समस्याओं को यथास्थिति बनाए रखिए, लोगों को उलझाए रखने के लिए मुद्दों पर कमेटी बना दीजिए, नए काम मत कीजिए क्योंकि काम होंगे तो भ्रष्टाचार के आरोप लगेंगे और फिलहाल सरकारें भ्रष्टाचार के आरोप बर्दाश्त करने के मूड में नहीं हैं
प्राधिकरण के अधिकारी बेबस मगर जनप्रतिनिधि क्यों है दंडवत
प्राधिकरण के बाद गौतम बुध नगर के राजनेताओं की राजनीति में लखनऊ के आगे नतमस्तक है गौतम बुध नगर के सांसद से लेकर विधायक और एमएलसी तक यहां के किसानों और होम बायर्स के मुद्दों पर बेबस दिखाई देते हैं उनकी उदासीनता उनकी बेबसी के कारण दिखाई देती है क्योंकि जब प्राधिकरण के अधिकारी कुछ एक्शन नहीं ले सकते तो नेता क्या कर सकते हैं।
आज भी जिले के किसान और होमबायर्स अपने-अपने मुद्दों को लेकर धरने प्रदर्शन करते रहते हैं लेकिन नोएडा, दादरी और जेवर के विधायक उन पर कुछ करने की स्थिति में नहीं है शायद उनको भी पता है कि मुद्दे चाहे जितने हो जिले में भाजपा की जीत को रोकना विपक्ष के लिए असंभव है । इसलिए जीत में उनका योगदान ना के बराबर है । भाजपा के जनप्रतिनिधियों से अलग विपक्ष के नेताओं की स्थिति जिले में और भी दयनीय है, उनमें अधिकांश प्रापर्टी डीलर है और वह स्वयं प्राधिकरण में अपने अपने ग्राहकों के भूखंडों के सेल परचेज के लिए दंडवत रहते है । और कई बार प्राधिकरण के अधिकारी इन लोगों को प्राधिकरण में एंट्री के लिए भी पास बनवाने के लिए खड़ा कर देते हैं ऐसे में आम आदमी की समस्याओं पर विपक्ष की राजनीति भी शून्य है
ऐसे में अंत में प्राधिकरण पर बैठे इन किसानों के आंदोलन को लेकर मूल प्रश्न वही है कि क्या यह आंदोलन पीछे हुए आंदोलनों की तरह बिना किसी समाधान के समाप्त हो जाएगा या फिर इस बार कुछ समाधान होगा