राजेश बैरागी। जनप्रतिनिधियों की योग्यता क्या होनी चाहिए?मैं पिछले तीन दिनों से दादरी (गौतमबुद्धनगर) नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों से मिलकर इस प्रश्न का उत्तर खोज रहा हूं। भारत के संविधान ने उन्हें विद्यालय की शैक्षिक योग्यता से छूट दी है। अनपढ़ और अशिक्षित होने से उनकी प्रत्याशी होने की क्षमता कम नहीं होती।
हालांकि भारत में लोकतंत्र को स्थापित करने वाले राजनेता न केवल उच्च शिक्षित थे बल्कि विशेष प्रतिभाशाली भी थे। परंतु जिस पद को ग्रहण करने को लेकर वे जी जान से प्रयासरत हैं, क्या उस पद से संबंधित सहज ज्ञान भी उन्हें नहीं होना चाहिए। कमोबेश सभी प्रत्याशियों को पिछले पचहत्तर वर्ष से चले आ रहे मुद्दों के अलावा कुछ नहीं सूझता।
विकास के नाम पर नाली, खड़ंजा बनवाने के अतिरिक्त उनके पास कोई दूरदर्शी सोच नहीं है। पालिका की आय कितनी है,आय के स्रोत क्या हैं, राज्य और केंद्र सरकारों से किस मद में कितना धन मिलता है, कितने कर्मचारी हैं और कितने कर्मचारियों की वास्तव में आवश्यकता है,इन सब प्रश्नों को पूछने पर वे बगलें झांकने लगते हैं। निवर्तमान अध्यक्ष और पुनः अध्यक्ष पद प्रत्याशी को छोड़कर शेष सभी प्रत्याशी पालिका में भ्रष्टाचार व्याप्त होने का आरोप लगाते हैं। यह भी बिना दस्तावेज और बिना आंकड़ों के आरोप हैं।
क्या नगर पालिकाएं चुनाव लड़कर एक महत्वपूर्ण जिम्मेदार पद को हथिया लेने भर की साधन मात्र हैं। एक प्रत्याशी के यहां बैठे एक समर्थक ने बड़ी मासूमियत से कहा,-ये अध्यक्ष बन गए तो हम ठेकेदार बन जाएंगे।’ इस नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष पद की प्रत्याशा करने वाले अधिकांश लोग पांचवें, आठवें तक पढ़े हैं। उन्हें अपने क्षेत्र के संबंध में सामान्य ज्ञान नहीं के बराबर है। परंतु उनका जातीय ज्ञान पक्का है।वे जानते हैं कि वे जिस जाति, वर्ग और धर्म के हैं, यदि उसके साथ दूसरे जाति, वर्ग, धर्म के इतने वोट और मिल गये तो जीत सुनिश्चित है।
मैं ‘इंडियन’ फिल्म के उस दृश्य को स्मरण करने लगता हूं जिसमें एक नेता पुलिस अधिकारी को अपने अंध समर्थकों की संख्या और दुष्टता के बारे में तो बताता है परंतु देश के इतिहास और भूगोल के बारे में कुछ नहीं बता पाता है। अधिकारी के द्वारा हस्ताक्षर करने के लिए कहने पर वह अंगूठा आगे कर देता है।