बैरागी की नेक दृष्टि : दरोगा की जांच

राजेश बैरागी l मुंशी प्रेमचंद ने नमक के दरोगा की अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठा को पूरे जी जान से प्रतिष्ठा दी। यदि प्रेमचंद आज जीवित होते तो गाजियाबाद के थाना लिंक रोड में तैनात रहे दरोगा अंशुल कुमार को भी ऐसी ही प्रतिष्ठा देते।उसी क्षेत्र में रहने वाली महिला परित्यकता थी, उसने अपने पति के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कराया था। मुकदमे की जांच दरोगा अंशुल कुमार कर रहा था। उसने महिला को बताया कि वह भी अपनी पत्नी से संबंध विच्छेद का दंश झेल रहा है। दोनों के कष्ट समान थे तो दिल और जिस्म मिलने में क्या देरी थी। दरोगा महिला के घर में बैठकर, लेटकर मामले की जांच करने लगा। यह सिलसिला यहीं नहीं थमा। दरोगा ने एक फ्लैट किराए पर लेकर महिला को उसमें रखा।सुधी पाठक ध्यान देंगे कि इस कलिकाल में जब पुलिस पर पीड़ित से सीधे मुंह बात न करने के आरोप लगना आम बात हो,तब ऐसे दरोगा ही विभाग की लाज बचाते हैं। जांच कितने दिन चली और महिला को क्या लाभ मिला यह खोजबीन का विषय है। परंतु दरोगा ने दो वर्ष तक महिला का साथ दिया या साथ लिया। महिला उससे शादी करने के लिए कहने लगी। महिलाएं धोखा खाकर भी शादी ही करना चाहती हैं। दरोगा ने उसे यही समझाया। महिला का आग्रह आदेश में बदलने लगा। दरोगा ने उसे समझाया कि ऐसा करने पर दिल्ली का श्रद्धा वालकर केस यहां भी दोहराया जा सकता है। महिला समझदार निकली। उसने समय रहते अधिकारियों से मिलकर गाजियाबाद के मधुबन बापूधाम थाने में दुष्कर्म की रिपोर्ट दर्ज करा दी। ऐसा होता रहता है। परंतु इस वाकए से एक महत्वपूर्ण प्रश्न उत्पन्न हो गया है।पति से पीड़ित महिला के मुकदमे की जांच किस दरोगा को देनी चाहिए?मेरा मानना है कि वह दरोगा स्वयं पत्नी से पीड़ित नहीं होना चाहिए। दोनों की समान समस्या से एक तीसरी समस्या का जन्म हो सकता है। यह मामला तो यही संकेत देता है।