राजेश बैरागी । यदि यह टीस मुख्यमंत्री से मिले तीन तेरह पत्रकारों में शामिल न होने की है तो मैं इसे पूरी तरह खारिज करता हूं। यह उनका व्यक्तिगत मामला है कि वे किससे मिलते हैं और क्यों। वैसे भी यह मुलाकात एजेंडा विहीन थी।उस दिन मुख्यमंत्री की खास सभा से निकलते हुए मुझसे एक परिचित ने उत्सुकतावश पूछ लिया,- क्या कल मुख्यमंत्री से मिले पत्रकारों में आप भी थे। मैं इस बात को दिल पर ले सकता था, मैं झेंप सकता था या पूछने वाले की नीयत पर संदेह कर सकता था। मैंने ये तीनों काम नहीं किए। मैंने उसे बताया कि मैं उन पत्रकारों में से नहीं हूं। हां कुछ देर बाद मेरी खबर उनसे मिलेगी और उसे मिलने के लिए किसी विशेष प्रायोजक की सिफारिश और उसके करम की आवश्यकता नहीं होगी।’
मैं अक्सर यह अनुभव करता हूं कि बहुत से लोग पत्रकारों से दलाल होने की अपेक्षा रखते हैं। जैसे विधायक और सांसद से। पत्रकार प्रतिदिन आवश्यकता अनुसार अधिकारियों, पदाधिकारियों से मिलते हैं और उनके मिलने का एकमात्र उद्देश्य होना चाहिए समाचार प्राप्त करना। दैनंदिन मुलाकातें मेल में बदल सकती हैं और बदल ही जाती हैं।
अधिकारी अवैध रूप से पैसा कमाने के लिए भ्रष्टाचार करते हैं, पत्रकार उनके भ्रष्टाचार को उद्घाटित कर सकता है।इसलिए दोनों एक बिंदु पर सहमत हो जाते हैं कि हम आमने सामने नहीं बल्कि साथ साथ हैं। इसे आंग्ल भाषा में नेक्सस कहा गया है जिसका सामान्य अर्थ है गठजोड़। तो वापस मुख्यमंत्री से मिलने वाले पत्रकारों की विशेष स्थिति और न मिलने से दुखी, क्रोधित और अपमानित पत्रकारों पर लौट चलते हैं।
संभवतः वे तीन तेरह पत्रकार मुख्यमंत्री से मिलकर जनहित का कोई समाचार लाने में विफल रहे, इसलिए यह मुलाकात बेनतीजा रही। चूंकि मुख्यमंत्री ने उन्हें कोई विशेष उपहार भी नहीं दिया इसलिए शेष पत्रकारों को न मिलने का मलाल भी नहीं रहना चाहिए। बाकी अपनी अपनी मर्जी है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार है और नेक दृष्टि हिंदी साप्ताहिक के संपादक है