आशु भटनागर । एक वक्त था जब अंबेसडर इस देश में राजनेताओं की शान की सवारी होती थी फिर अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल का दौर आया जिसने वैगनआर को जन नेताओं की कार घोषित कर दिया लेकिन अब सोशल मीडिया पर नेताजी जी को फॉर्च्यूनर कार के लिए बधाइयां मिल रही है, लोग बधाई देते देते कुछ ऐसा कह गए कि बधाई की जगह हास परिहास होने लगा । लेकिन इस परिहास ने गौतम बुध नगर में जिला अध्यक्ष होने के लिए जरूरी अहर्ताओ पर एक बार फिर से विमर्श खड़ा कर दिया है । गाँव से जुड़े एक नेता बोले ” जिले में जमीनों के अधिग्रहण के बाद बने नेताओं के पास फॉर्च्यूनर होना तो समझ आता था मगर अब सोसाइटी के नेताओं के पास भी फॉर्चूनर घूमेगी तो फिर बड़े नेताओं का क्या होगा ?”
कदाचित एक पार्टी के सोसाइटी स्तर के जिलाध्यक्ष ने नई फॉर्च्यूनर खरीदते हुए यह नहीं सोचा होगा कि फॉर्च्यूनर पर बधाई उनके लिए गले में फांस बन जाएगी । ऐसे में अपनी सोसाइटी में भी ना पहचाने जाने वाले जिलाध्यक्ष क्या सोच रहे होंगे ये तो नही पता लेकिन सोशल मीडिया पर उनसे जलने वाले इसको लेकर चटखारे जरूर लिए ले रहे है ओर ये भी पूछ रहे है की आखिर ये कार नेता बनते ही कैसे आई I
लेकिन इससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या गौतम बुध नगर में बिना फॉर्च्यूनर के नेता और जिला अध्यक्ष बनना अब माना नहीं जाएगा । मुझे नेता बनने के बुनियादी गुणों जिनमें पहुंच, पारदर्शिता, ईमानदारी, प्रेरणा, काम का जुनून, निरंतर नवाचार, विश्लेषणात्मक दिमाग, सकारात्मकता और उदारता जैसे विशेषताएं बताई जाती थी उनकी जगह अब सबसे महत्वपूर्ण नेताजी के लिए फॉर्च्यूनर और उसमें बैठे चार उनके जयकारे लगाने वाले लोग लगने लगे । तो क्या फर्क पड़ता है अगर नेताजी में वह ऊपर लिखी विशेषताएं ना भी हूं तो फॉर्च्यूनर और 4 लड़कों से नेतागिरी तो चल ही जाएगी
राजनीति में नेताओ के फॉर्च्यूनर प्रेम के पर जिले में विपक्ष के बड़े नेता और विधायक का चुनाव लड़ने वाले राजनेता ने सत्ता पक्ष के एक विधायक पर फॉर्च्यूनर को लेने के मामले में कई गंभीर आरोप तक लगा दिए थे हालांकि आरोप लगाने वाले अपनी फॉर्च्यूनर उनके पास कैसे आए वह कभी बता नहीं सके । अब सवाल यह भी है कि जब सांसद और विधायकों तक के लिए फॉर्च्यूनर महत्वपूर्ण है तो फिर जिला या सोसाइटी अध्यक्ष क्यों ना रखे वहीं सत्तापक्ष के नोएडा विधायक पंकज सिंह ने चुनाव लड़ते समय आपने हलफनामे में कहा था कि वह बे “कार” है यानी उन पर फॉर्च्यूनर तो छोड़िए कोई भी गाड़ी नहीं है ऐसे में क्या ये माना जाए कि वो नेता ही ना हो ?
नेताओ के फॉर्च्यूनर प्रेम ने नए सोसाइटी नेताओं के लिए खड़ी की मुश्किल
नेता जी के फॉर्च्यूनर प्रेम की कहानी यही तक रुक जाए तो भी बात सही हो लेकिन नेताजी के बाद अब सोसाइटी स्तर के तमाम नेताओं के लिए फॉर्च्यूनर को रखना जहां महत्वपूर्ण हो गया है या फिर यह माना जा रहा है कि बिना फॉर्च्यूनर के सोसाइटी में नेताओं को अब वह सम्मान नहीं मिलेगा । इससे नए नेताओं के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई है आखिर इन्हीं फॉर्चूनर पर तो अध्यक्ष, विधायक और सांसद बड़ा लिखवा कर उसके नीचे प्रतिनिधि लिख कर गाड़ी घुमा कर अपना भोकाल टाइट करना होता है ऐसे में राजनीतिक दलों में आने वाले दिनों में होने वाले जिला और मंडल स्तर के अध्यक्षों के चुनाव में फॉर्च्यूनर की अहर्ता कहीं दावेदारों के लिए उनकी हार का बड़ा कारण ना बन जाए ।