त्योहारों के इस महीने में लगातार सोसाइटियो में सार्वजनिक कार्यक्रम हो रहे हैं इन कार्यक्रमों में नेताओं की आवाजाही चरम पर है नेता आ रहे हैं माला पहन रहे हैं लोगों को धन्यवाद दे रहे हैं और इस बहाने इन कार्यक्रमों के आयोजक अपने अपने क्षेत्र में अपनी अपनी प्रासंगिकता दर्ज करा रहे हैं मगर ग्रेटर नोएडा वेस्ट में बिल्डर और निजी स्कूलों से त्रस्त लोगो की समस्यायों के बीच इस प्रासंगिकता और नेतागिरी का एक और काला सच भी है
एनसीआर खबर ने बीते महीने भर में विभिन्न त्योहारों के समय हुए कार्यक्रम और ताजा छठ को लेकर हो रहे कार्यक्रमों के प्रायोजको की लिस्ट पर जब रिसर्च की तो यह जानकारी मिली कि इन सभी प्रोग्रामों के पीछे बिल्डर और निजी स्कूलों की महत्वपूर्ण भागीदारी है। शहर में ताजा हुए एक कार्यक्रम के प्रायोजक मुख्य तौर पर बिल्डर और स्कूल है और सबसे कमाल बात यह है कि इन्हीं दोनों जगह यहां के लोग सबसे ज्यादा परेशान हैं बिल्डर फ्लैट नहीं दे रहा है तो निजी स्कूलों से फीस के लिए समाजसेवी संगठन आंदोलन करते रहते हैं लेकिन इन कार्यक्रमों में प्रायोजक ओं की लिस्ट में सबसे आगे दिखने वाले यह दो क्षेत्र की भागीदारी को देखते हुए यह स्पष्ट हो जाता है कि आखिर लगातार होने वाले आंदोलनों के बावजूद बिल्डर क्यों जनता की नहीं सुनते हैं या जनता के नेताओं की नहीं सुनते हैं और क्यों स्कूल ऐसे नेताओं के दावों को नजरअंदाज कर देते हैं
गौर सिटी में रहने वाले देवेश इस पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि बिल्डरों और स्कूल मालिकों दोनों को ही यह बातें पता हैं कि जो लोग उनके खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं वही लोग इन कार्यक्रमों के लिए स्पॉन्सरशिप और चंदा लेने भी आएंगे ऐसे में इन त्योहारों के समय अगर स्कूल 11 कार्यक्रम के लिए 50000 से ₹100000 तक स्पॉन्सरशिप दे रहे हैं तो उसका खर्चा भी हो इसी जनता के बीच से निकालेंगे और यही क्रम लगातार साल दर साल चलता रहता है और लोगों को यह लगता रहता है कि आखिर बिल्डर उनकी समस्याओं को हल क्यों नहीं कर रहा है आखिर स्कूलों में फीस क्यों बढ़ती जा रही है । और ऐसे में जब खुद को सांसद विधायक और तमाम जनप्रतिनिधि होने के दावा करने वाले लोग भी इन कार्यक्रमों में खड़े होते हैं तो निश्चित तौर पर उनकी भी बातों को यह लोग सुनना पसंद नहीं करते क्योंकि राजनेताओं के भी अधिकांश कार्यक्रम या तो स्कूलों के प्रांगण में होते हैं या फिर बिल्डरों द्वारा प्रायोजित किए जाते हैं
वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक चिंतक अतुल श्रीवास्तव कहते है कि बिल्डर स्कूल सामाजिक नेताओं और राजनेताओं के बीच बने इस गठजोड़ के बीच अगर कोई आदमी फंसता है तो वह आम आदमी है जिसको हर जगह शोषण के लिए तरह-तरह के बहाने से जाना पड़ता है और अब इससे बाहर निकल पाना असंभव है । राजनीति और समाजसेवा अब बिना स्पॉन्सरशिप के संभव नहीं है ऐसे में इस चक्रव्यूह को तोड़ पाना मुश्किल लगता है