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एनसीआर खबर एक्सक्लूसिव : भाजपा में रह कर बागी हुए नए शत्रु(घन सिन्हा) बन रहे है वरुण गांधी, वरुण की जिद के चलते मेनका गांधी का भाजपा में भविष्य भी लगा दांव पर, क्या लेंगी सन्यास ?

सांसद वरुण गांधी ने दूध आटा चावल पर GST के मुद्दे पर एक बार फिर ट्वीट करते हुए सरकार को असहज करने वाले सवाल उठाए हैं । वरुण गांधी का केंद्र की भाजपा सरकार के विरुद्ध यह कोई पहला ट्वीट नहीं है इससे पहले सेना में जाति देख कर प्रमाण पत्र मांगने के विपक्ष के मुद्दे के साथ वरुण गांधी सुर ताल मिला चुके हैं बीते 2 साल में किसान आंदोलन के समय से लगातार वरुण गांधी विपक्ष के साथ सरकार को असहज करने की लगातार कोशिश करते रहें है

ऐसे में बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि क्या भाजपा में वरुण गांधी का लगातार विरोध उनको भाजपा के ही एक पूर्व बागी नेता शत्रुघ्न सिन्हा की स्थिति में लाकर खड़ा कर दे रहा है ?

और क्या इसका असर भाजपा में वरुण गांधी और उनकी मां मेनका गांधी के राजनीतिक कैरियर पर भी पड़ रहा है ?

2022 के यूपी चुनाव में अगर आप भाजपा के स्टार प्रचारकों की सूची पर ध्यान दे तो आपको महसूस होगा की स्टार प्रचारकों में मेनका गांधी और वरुण गांधी दोनों ही मौजूद नहीं थे और उसके बाद से वरुण सरकार की नीतियों पर और भी हमलावर होते गए है

भाजपा से जुड़े एक नेता ने यह बताया कि पूर्व में उनका नाम बीजेपी के स्टार प्रचारकों की सूची में होता था बीजेपी ने मां बेटे की जोड़ी को पार्टी में शामिल ही इसलिए किया था क्योंकि दोनों का ताल्लुक गांधी परिवार से था और बीजेपी की इनसे उम्मीद थी कि वह इसी परिवार के एक और मां बेटे की जोड़ी सोनिया और राहुल गांधी को उत्तर प्रदेश में समाप्त कर देंगे हालांकि जैसे-जैसे बीजेपी मजबूत हुई सोनिया और राहुल गांधी का राजनीतिक प्रभाव तो खत्म हुआ लेकिन बीजेपी में यह माना जाता है कि इस प्रभाव को खत्म करने में मेनका और वरुण गांधी का कोई योगदान नहीं है

बीजेपी ने मेनका और वरुण को दिया समुचित सम्मान, पर बीजेपी की जगह अपने मन की करने और मर्यादा से बाहर दिए बयानो ने बिगाड़ा मामला

उत्तर प्रदेश की राजनीति को बारीकी से देखने वाले लोग जानते हैं कि बीजेपी में शामिल होने के बाद मेनका और वरुण गांधी दोनों को पार्टी ने निराश नहीं किया मेनका 2004 से अब तक लगातार चार बार और वरुण गांधी 2009 से लगातार तीन बार बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीत चुके हैं 2014 में जब केंद्र में बीजेपी की सरकार बनी तो उसमें मेनका गांधी को मंत्री बनाया गया और वरुण गांधी सबसे कम उम्र के राष्ट्रीय महासचिव बने लेकिन बीते 3 वर्षों में उनके रिश्तो में खटास आ गई है खास तौर पर 2019 में जब मेनका गांधी को तमाम विवादों के बाद केंद्र सरकार में मंत्री नहीं बनाया गया उसके बाद लगातार वरुण गांधी के बयान सरकार की नीतियों के खिलाफ आने लगे और यह बयान किसान आंदोलन शुरू होने के बाद बढ़ने लगे हालांकि वरुण गांधी इकलौते ऐसे बीजेपी के नेता नहीं है जो विवादित कानूनों के विरोध में थे लेकिन जहां बाकी लोगों ने पार्टी की मर्यादा में रहकर पार्टी के अंदर फोरम पर इसका विरोध किया वही वरुण गांधी लगातार अपने भाई राहुल गांधी और विपक्ष की तरह प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा पर हमला करते देखे गए ऐसे में बीजेपी के सूत्रों की माने तो बीजेपी के सब्र का बांध टूट रहा है क्योंकि बीजेपी लगातार वरुण गांधी और मेनका गांधी को पार्टी की गतिविधियों में शामिल नहीं रखती है ना ही उनको चुनावों में स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल किया जाता है

गांधी परिवार और बड़े खानदान का एटीट्यूट बन रहा है वरुण गांधी की समस्या

असल में वरुण गांधी भी वंशवाद (नेपोटिज्म) के उसी सिंड्रोम से पार नहीं पा रहे हैं जिसको लेकर अधिकांश ऐसे राजनीतिज्ञों को कहा जाता है जिन्होंने अपने पिता की विरासत के बलबूते राजनीति में पैर जमाए हैं वरुण गांधी का भी सपना यही रहा है कि वह बड़े खानदान से आते हैं तीन बार संसद रहे है , इसलिए पहले वह उत्तर प्रदेश में संगठन में बड़ा पदप या मुख्यमंत्री इर और बाद में केंद्र में मंत्री पद की उम्मीद कर रहे थे जब नहीं बनाया गया तो वह नाराज हो गए इस नाराजगी में 2019 लोकसभा चुनाव के बाद मेनका गांधी को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया जाना और ADBI से हटाया जाना भी काम कर गया ।

बीजेपी के सूत्र कहते हैं कि इसका बड़ा कारण यह भी रहा कि मेनका को बीजेपी के एजेंडे से अधिक अपना एजेंडा ज्यादा प्रिय था जिसके कारण 2019 में उनको मंत्री नहीं बनाया गया । यही नहीं 1989से मेनका गांधी लगातार एडब्ल्यूबीआई के साथ जुड़ी थी, 2019 में मंत्री पद के साथ ही मोदी सरकार ने एडब्ल्यूबीआई को वापस सरकारी कंट्रोल में ले लिया। यू ट्यूबर ध्रुव राठी ने इस मामले पर एक वीडियो में कहा कि एडब्ल्यूबीआई को 1989 में तब की मिनिस्टर आफ स्टेट फॉर एनवायरमेंट मेनका गांधी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री को वीपी सिंह को कहकर एनिमल हसबेंडरी एंड डेयरिंग पोर्टफोलियो (AHDP) से सेपरेट करवा कर अपने कंट्रोल में लिया और लगभग 30 साल तक इसे अपने हिसाब से चलाया। लेकिन 2019 में मोदी 2.0 में एडब्ल्यूबीआई को वापस एडीजीपी से जोड़ दिया गया । ध्रुव कहते हैं कि मेनका गांधी ने ही पालतु जानवरो के लिए बनी संस्था एडब्ल्यूबीआई में पालतू एनिमल्स के अलावा आवारा कुत्तों के स्पेशल टर्म को इसमें जोड़ दिया और उनको नाम दिया स्ट्रीट डॉग्स और उनके फीडर और फीडिंग पॉइंट की व्यवस्था कराई

हमारी रिसर्च कहती है शहरो में आज यही फीडिंग पॉइंट को लेकर जनता और डॉग फीडर आमने सामने रहते है लगातार टकराव बना रहता है

विरोध के बावजूद भाजपा में क्यों हैं वरुण गांधी ?

वरुण गांधी की बढ़ते विरोध की स्थिति लगातार वरुण गांधी पर यह सवाल उठाती है कि वह अगर भाजपा की नीतियों का विरोध नैतिकता के आधार पर कर रहे हैं तो क्या कारण है कि वह भाजपा की नीतियों के समर्थक ना होने के बावजूद अभी तक भाजपा में बने हुए हैं तो क्या सिर्फ अपनी और अपनी मां मेनका गांधी की सांसद की कुर्सी को बचाए रखने के लिए वरुण गांधी भाजपा में बने हुए हैं या फिर उन्हें अब भी उम्मीद है कि भाजपा उन्हें उत्तर प्रदेश में ऐसा कोई बड़ा पद या केंद्र में मंत्री पद दे देगी जिसकी उनको इच्छा है हालांकि भाजपा के सूत्रों की मानें तो 2024 में वरुण गांधी और मेनका गांधी दोनों को ही भाजपा शायद टिकट भी नहीं देगी

ऐसे में वरुण गांधी क्या करेंगे क्या वरुण गांधी अपने पिता की प्यारी कांग्रेस पार्टी में शामिल हो जाएंगे जहां उनका बड़े प्यार से स्वागत भी किया जा सकता है क्योंकि वह यूपी में अपने परिवार की सीटों पर परिवार के खिलाफ ना तो पार्टी के हित में चुनाव प्रचार करते हैं ना ही कुछ बोलते हैं राजनीतिक हलकों में वरुण गांधी का अपनी दीदी प्रियंका गांधी से बहुत प्रेम है, तो भी सवाल यह उठता है कि वरुण गांधी अगर कांग्रेस ज्वाइन कर लेते हैं तो फिर उनकी माता मेनका गांधी का क्या होगा क्योंकि मेनका गांधी कि लंबे समय से अपनी ही जेठानी और कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्षा सोनिया गांधी से बोलचाल बंद है, संजय गांधी की मृत्यु के बाद उन्होंने सोनिया गांधी पर इंदिरा गांधी को अपने खिलाफ भड़काने के आरोप भी लगाए थे और जिसके बाद ही कहा जाता है कि इंदिरा गांधी ने मेनका गांधी को घर से निकाल दिया था या मेनका गांधी ने वरुण गांधी के साथ उस घर को छोड़ दिया था

क्या वरुण की जिद में राजनीति से सन्यास लेंगे मेनका गांधी ?

अब सवाल यह है कि अगर वरुण गांधी भाजपा छोड़कर कांग्रेस में जाएंगे तो फिर मेनका गांधी क्या राजनीति से संन्यास ले लेंगी, क्या मेनका अपने पुत्र के भविष्य के लिए उनको कांग्रेस में जाने देंगी?

मेनका गांधी 1984 से लगातार लोकसभा चुनाव लड़ती रही हैं और 1984 और 91 को छोड़कर अब तक वह 8 बार लोकसभा का चुनाव जीत चुकी हैं ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि मेनका गांधी क्या अपने पुत्र के लिए अपने कैरियर की कुर्बानी देंगी या फिर मां और बेटे अलग अलग राजनीतिक दलों में रहकर राजनीति करते रहेंगे

हालांकि इन सभी सवालों का जवाब 2024 के लोकसभा चुनावों के समय ही दिखाई देगा क्योंकि भाजपा की पॉलिसी शत्रुघ्न सिन्हा के मामले में यही रही और वही पॉलिसी वरुण गांधी के मामले में भी नजर आ रही है भाजपा उनको राजनैतिक तौर पर शहीद होने का कोई मौका नहीं देगी लेकिन टिकट ना मिलने की दशा में वह शत्रुघ्न सिन्हा की तरह पार्टी छोड़कर कांग्रेस ज्वाइन कर सकते हैं

एन सी आर खबर ब्यूरो

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