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देवशयनी एकादशी आज से प्रारम्भ, क्यों नही करने चाहिए चातुर्मास में शुभ कार्य, जानिए महत्व ज्योतिर्विद राघवेंद्ररविश राय गौड़ से

सनातन धर्म में देवशयनी एकादशी वर्ष का वह दिन होता है जब भगवान विष्णु चार महीने के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी पर जागते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दौरान कोई भी शुभ कार्य करने की मनाही होती है. कहा जाता है कि यदि इस दौरान कोई शुभ कार्य किया जाए तो वह फलदायी नहीं होता. चातुर्मास के चार महीने धर्म, संस्कृति, सेहतर और परंपरा को एक सूत्र में पिरोते हैं.

ऐसी मान्यता है कि देवशयनी एकादशी से अगले चार महीनों तक भगवान विष्णु पाताल में निवास करते हैं। इस दौरान सृष्टि का भार महादेव संभालते हैं। इन चार महीनों में सावन, भादौ, आश्विन और कार्तिक मास आते हैं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु पुन: जागते हैं, इसे देवप्रबोधिनी एकादशी कहते हैं।

117 दिन तक रहेगा चातुर्मास,

चातुर्मास का प्रारंभ: 10 जुलाई, दिन रविवार, देवशयनी एकादशी सेचातुर्मास का समापन: 04 नवंबर, दिन शुक्रवार, देवउठनी एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी पर

चातुर्मास क्या है?चातुर्मास का शाब्दिक अर्थ है चार माह. ये चार माह व्यक्ति को संयम और सहिष्णुता की साधना के लिए प्रेरित करते हैं. चातुर्मास का सिर्फ धार्मिक महत्व ही नहीं है, इसके नियम सांस्कृतिक, सामाजिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण से भी बड़े उपयोगी हैं. इसके नियम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जुड़े होने के कारण मन और जीवन को श्रेष्ठता प्रदान करते हैं. चातुर्मास के चार माह परंपरा, धर्म, संस्कृति और सेहत को एक सूत्र में पिरोते हैं.

चातुर्मास के 4 प्रमुख संदेश

  1. प्रकृति की पूजा
    चातुर्मास प्रकृति की पूजा करने का समय है. इस अवधि में पृथ्वी पर असंख्य जीव, नन्हें पौधे और वनस्पतियों का सृजन होता है. चातुर्मास में पीपल को जल देने, तुलसी को सींचने और अक्षय नवमी को आंवले के पेड़ की पूजा पर्यावरण को सहेजने का ही कार्य है. पर्यावरण को सहेजने का भाव हमारी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है. जीवनदायनी तुलसी, आंवला और पीपल के पेड़ और पौधों को रक्षा चातुर्मास के नियमों का हिस्सा है.
  2. संयम और ठहराव
    चातुर्मास संयम को साधने का संदेश देता है. इसमें मन, आचरण और व्यवहार का संयम आवश्यक है. संयमित आचरण से हम मन को वश में करना सीखते हैं, साथ ही धैर्य और समझ भरा व्यवहार भी करते हैं. चातुर्मास ऐसा ही अवसर है, जिसमें हम स्वयं के साथ दूसरों के अस्तित्व को भी स्वीकार कर उसे सम्मान देते हैं. यह सह-अस्तित्व की भावना को प्रबल करता है. स्वयं के अंदर और बाहर के अंतर्विरोध और संघर्ष का अंत होना प्रारंभ हो जाता है.
  3. सेहत की सुरक्षा
    चातुर्मास सेहत और उससे जुड़ी जागरूकता का भी संदेश देता है. इन चार माह में कंद मूल और हरी सब्जियां खाना वर्जित है क्योंकि इस समय में ही जीवाणुओं का प्रकोप अधिक होता है. इन चार माह में अपच, अजीर्ण और वायु विकार जैसी सेहत से जुड़ी परेशानियां वातावरण में आद्रता के कारण बढ़ती हैं. बरसात में खानपान का संयम रखना जरूरी है. सावन में साग, भादों में दही, अश्विन में दूध और कार्तिक में दाल नहीं खाते हैं. ये सभी नियम वैज्ञानिक सोच का परिणाम हैं. दूध और दही से वात एवं कफ बनता है. इस वजह से दूध और दही नहीं खाते हैं.
  4. नियमों का व्यावहारिक पक्ष
    चातुर्मास का व्यावहारिक कारण भी है, जिनकी वजह से मांगलिक कार्य नहीं होते हैं. चातुर्मास का प्रारंभ खेती के काम की अधिकता के समय होता है. इस समय कृषि आधारित परिवार कृषि कार्य में व्यस्त रहते हैं. खेत-खलिहान में ज्यादा से ज्यादा समय देते हैं. इस स्थिति में मांगलिक कार्यक्रम या सामाजिक अनुष्ठान कर पाना संभव llनहीं है. बरसात में रोग बढ़ते हैं, इसलिए भी llइनको करने से बचा जाता है.

चातुर्मास में इस बातों को रखें विशेष ध्यान

  • चातुर्मास में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता. लेकिन इस दौरान धार्मिक कार्य अवश्य किए जाते हैं. यह समय पूजा-पाठ और उपवास के लिए सबसे उत्तम माना गया है. चातुर्मास की शुरुआत होते ही साधु-संत धार्मिक यात्राएं बंद कर देते हैं और एक स्थान पर रहकर जप-तप करते हैं.
  • मान्यता है कि चातुर्मास में यदि किसी उपवास की शुरुआत की जाए तो वह बेहद ही फलदायी होता है. इस दौरान किया गया उपवास साधारण समय की तुलना में दोगुना फल प्रदान करता है.
  • चातुर्मास के 4 महीनों में विवाह, मुंडन, जनेऊ, गृह प्रवेश व बच्चे का नामकरण आदि नहीं करने चाहिए.
  • जो लोग चातुर्मास में जप-तप व उपवास का पालन करते हैं उन्हें चार महीने के लिए बिस्तर की बजाय जमीन पर सोना चाहिए. ऐसा करने से भगवान सूर्य प्रसन्न होते हैं.
  • मान्यता है कि चातुर्मास में चार महीनों के दौरान प्रतिदिन तुलसी का पूजन करना चाहिए. ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और दरिद्रता समाप्त होती है.

चातुर्मास में दान का महत्व

  • चातुर्मास के दौरान पांच प्रकार के दान करने का विशेष महत्व है. इसमें अन्न दान, वस्त्र दान, छाया दान, श्रमदान और दीपदान शामिल हैं. इसके अलावा मंदिर में जाकर सेवा करने से भी भगवान प्रसन्न होते हैं.
  • चातुर्मास में खान-पान का रखें विशेष ध्यान
  • मान्यता है कि चातुर्मास में खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए. इस दौरान सनातन पंचांग के अनुसार चार महीने होते हैं.
  • श्रावन के महीने में पालक व पत्तेदार चीजों से परहेज करना चाहिए.
  • भाद्रपद दही व खट्टी चीजें खाना निषेध होता है. जबकि अश्विन माह में दूध और
  • कार्तिक माह में प्याज-लहसुन से परहेज किया जाता है.

सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे!तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नम:

नारायणनारायण
ज्योतिर्विद राघवेंद्ररविश रायगौड़

NCRKhabar Mobile Desk

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