अरविंद केजरीवाल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री की कुर्सी का सपना देख रहे है : धीरज फूलमति सिंह

जब कोई खिलाड़ी अतिरिक्त आत्मविश्वास का शिकार हो जाता है तो उसके आउट होने की संभावना बढ जाती है। अरविंद केजरीवाल का हाल भी कुछ-कुछ ऐसा ही है। पंजाब चुनाव में बंपर जीत के बाद अरविंद केजरीवाल ओवर कॉन्फिडेंस का शिकार हो रहे है शायद ? अब वे खूल कर नरेद्र मोदी का विरोध कर रहे है। जब कि पिछले चार साल से वे चुप बैठे थे,नरेद्र मोदी के विरोध में कुछ नही बोलते थे। सरेआम कश्मीर फाइल्स के बहाने हिंदूओ का मजाक उडा रहे है। मुस्लिम तुष्टिकरण पर जोर दे रहे है। पंजाब में उनकी सरपरस्ती में खालिस्तान के पोस्टर लगने शुरू हो गए है।

मुझे लगता है। पंजाब में भगवंत मान को मुख्यमंत्री बना कर उन्होने पार्टी में अपने बराबर ला खड़ा कर दिया है और बराबरी का यह ओहदा पार्टी को दो फाड़ में करने के लिए काफी है। मैं यह शंका इस लिए जाहिर कर रहा हूँ कि दिल्ली के मुकाबले पंजाब में आर्थिक और राजनैतिक शक्ती की मजबूती कुछ अधिक है और ऐसे में दिल्ली में अगले तीन साल में चुनाव होने है। दिल्ली के मुकाबले पंजाब की अहमियत अधिक है। दिल्ली की सभी तीनों नगर पालिका को एक में मिलाकर के भाजपा द्वारा दिल्ली मुख्यमंत्री के ओहदे के बराबर पर दिल्ली महापौर को लाने का प्रयास किया जा रहा है ताकि मुख्यमंत्री की कुर्सी की अहमियत को कम किया जा सके। यह बात अरविंद केजरीवाल को समझ आ चुकी है,इस लिए भी उनके तेवर केद्र से बगावती हो गए है। बौखलाए हुए है।

कॉंग्रेस के विकल्प के तौर पर उभरने का दावा करने वाले अरविंद केजरीवाल द्वारा 2022 में पंजाब की राजनीति में खूद सत्ता हथियाने के लिए कोई बड़ा उलटफेर नही होता है तो 2025 में दिल्ली राज्य के चुनाव है। ऐसे में अगर दिल्ली की सत्ता में अरविंद केजरीवाल वापसी नही करते है तो पंजाबी सत्ता की उपस्थिती में उनका नेतृत्व कमजोर हो कर हासिये पर जा सकता है। ऐसा होता है तो आम आदमी पार्टी में फूट पडने की संभावना बढ सकती है या फिर सत्ता नेतृत्व का दो केंद्र पैदा हो सकता है। यह राजनिती है,यहाँ कोई अपने सगे बाप का नही होता तो अरविंद केजरीवाल के कमजोर होने पर भगवंत मान सिंह कैसे होगे? दूसरी तरफ भाजपा अब दिल्ली के आगामी चुनाव की तैयारी में दमखम के साथ ताल ठोक कर उतर चुकी है। अरविंद केजरीवाल के बारह लाख नौकरी के झूठे दावे के साथ मेडिकल और शिक्षा मॉडल की सबूत के साथ पोल खोल रही है। उनके झूठे वादों के भी पीछे पड गई है। बिजली विभाग को निजी हाथों में सौपने का मसौदा तैयार कर चुकी है,ऐसे में दिल्ली सरकार का मुफ्त बिजली का लालच वाला विकल्प खत्म हो जाएगा। भाजपा द्वारा पोल खोल अभियान के बाद लगातार दो बार से सत्ता में काबिज आम आदमी पार्टी पर तीसरी बार सत्ता में लौटने के लिए एंटीइनकॅबैंसी भी बाधा बन सकती है।

इस बीच अगर अरविंद केजरीवाल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए नरेद्र मोदी का विकल्प बनने का ख्वाब देख रहे होंगे तो फिर जल्द से जल्द उन्हे इस मुगालते से बाहर आ जाना चाहिए। कुल मिला कर आने वाले एक साल में भाजपा द्वारा अरविंद केजरीवाल को कठोरतम चुनौती मिलने वाली है और दिल्ली में वापसी ना करने की सूरत में आने वाले 05 साल में आम आदमी पार्टी का अस्तित्व खत्म हो जाएगा या फिर वह दो फाड़ में बट जाएगी, ऐसी संभावना मुझे कुछ ज्यादा ही नजर आ रही है।