ब्रह्माम डिजिटल एडवोटोरियल, मुरली मनोहर श्रीवास्तव । ”अजीब दास्तां है ये, कहां शुरु कहां खतम, ये मंजिले हैं प्यार की, ना हम समझ सके न तुम..” गीत के बोल अनायस पूरी कहानी को पल में बयां कर जाते हैं। जमाना था 70-80 के दशक का, आर के सिन्हा पेशे से पत्रकार और हमेशा पत्रकार बने रहने की उनकी लालसा ही तो है जो प्रतिदिन सुबह के आठ बजे अपनी व्यस्त जिंदगी में से वक्त निकालकर देश-दुनिया की स्टोरी लिखते रहते हैं। जिंदगी की गाड़ी को रफ्तार देने के लिए भले ही व्यवसाय में आ गए मगर किसी भी जरुरतमंद का परोपकार करना नहीं भूले। इनके जीवन में कुछ बातें जो हमेशा प्रेरणास्त्रोत साबित होंगी। जीवन में सबसे पहले जनसंघ में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की प्रेरणा से आए, फिर स्थापना के दिन से ही भारतीय जनता पार्टी से जुड़कर निरंतर सक्रिय बने हुए रहे
बिहार जहां जिंदगी को किसी तरह काटने की बातें होती रहती हैं। जिंदगी को हमेशा रेत के किनारे लोग होने का महसूस करते हैं उस जगह पर भी अपने लिए कुछ ढूंढ़ निकालना बहुत बड़ी बात होती है। उससे भी बड़ी बात है जब इंसान खुद के लिए दो जून की रोटी के साथ-साथ औरों के लिए भी व्यवस्था करने में लग जाए।रविंद्र किशोर सिन्हा यानि आर.के.सिन्हा के संघर्ष की कहानी भी कुछ ऐसी ही अजीबोगरीब लगती है। कि एक अदना सा व्यक्ति कैसे इस मंजिल को हासिल कर लेगा इसके बारे में सोचकर कुछ पल के लिए कोई भी झेंप जाएगा। मगर यह सब अपनी ईमानदार कोशिश और लगन से ही प्राप्त हो पाया।
- 22 सितंबर 1951 को बिहार के बक्सर में आर० के० सिन्हा जन्मे एक भारतीय पत्रकार, राजनेता, सामाजिक उद्यमी और सुरक्षा पेशेवर हैं। भाजपा के पूर्व राज्यसभा सांसद श्री सिन्हा भाजपा के संस्थापक सदस्य हैं। इन्होंने अपने उद्यमिता के बूते एक बड़ा परिवार खड़ा किया जिसमें आज दो लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार प्राप्त है या यों कहें कि दो लाख से ज्यादा परिवार के रहनुमा बने हुए हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि इन्हीं के पदचिन्हों पर इनके पुत्र ऋतुराज सिन्हा भी चल रहे हैं। इन्होंने अपने पिता को सहयोग कर अपनी कंपनी को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलायी आज उसी का नतीजा है कि एस.आई.एस. एशिया की सबसे बड़ी सुरक्षा एजेंसी बन चुकी है। इतना ही नहीं शिक्षा के प्रति अनुराग रखने वाले श्री सिन्हा ने ‘द इंडियन पब्लिक स्कूल’ की आज से 21 साल पहले देहरादून में स्थापना कर देश की नामी गिरामी शिक्षण संस्थानों में शूमार कर दिया है।
सचमुच एस0आई0एस0 के संस्थापक आर.के. सिन्हा की निजी सुरक्षा क्षेत्र में आने की कहानी दिलचस्प है। सिन्हा पटना में पत्रकार थे, लेकिन जेपी आंदोलन के समय क्रांतिकारी विचारों की वजह से नौकरी से निकाल दिए गए। फिर वे जेपी से मिलकर अपनी व्यथा रखी तो जेपी ने उन्हें कहा कि कुछ ऐसा करो जिससे तुम्हें भी रोजगार मिले और तुम औरों को भी रोजगार दे सको। यह सलाह उन्हें भा गई और 1971 में बांग्लादेश वार करेस्पॉन्डेंट के रूप में सीमा के उनके अनुभव ने इसमें अहम भूमिका निभाई। युद्ध के वक्त उन्होंने बिहार रेजीमेंट के साथ वक्त बिताया था और जवानों के नजदीक आए थे। बाद में 1974 में आर।के। सिन्हा ने उन्हीं में से रिटायर कुछ जवानों को साथ लेकर एसआइएस सिक्युरिटी की नींव रखी। इस सिक्युरिटी एजेंसी के लिए ईमानदारी के साथ उन्होंने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। उनका प्रयास, लोगों का उपहास, युवाओं को रोजगार देश की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाने का कायम कर दिया इतिहास।