ओबीसी लिस्ट में नई जातियों को रखने की खबर से फंस गई योगी सरकार, जातीय उभार भाजपा के लिए हमेशा खतरनाक
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2022 के लिए भाजपा की रणनीति पर काम शुरू हो चुका है उसी के चलते हैं केंद्र सरकार में ओबीसी के अंदर जातियों को लाने का अधिकार राज्य सरकारों को वापस दे दिया लेकिन उत्तर प्रदेश में पिछड़ा आयोग के चेयरमैन जसवंत सैनी के एक जल्दबाजी भरे कदम ने यूपी सरकार को सांसत में डाल दिया है । जून 2021 में पिछड़ा आयोग के अध्यक्ष बनाए गए जसवंत सैनी में केंद्र द्वारा ओबीसी वर्ग में राज्यों के अधिकार के बिल को अनुमति देने से 1 दिन पहले ही एक अनौपचारिक सूचना मीडिया में फ्लैश कराने के बाद पूरे प्रदेश में हाहाकार मच गया है । मीडिया में आई रिपोर्ट के अनुसार पिछड़ा आयोग ने लगभग 39 जातियों को ओबीसी में शामिल करने का मन बना लिया है और जल्दी इस की संतति को उत्तर प्रदेश सरकार को कर सकते हैं यह सभी जातियां भारत में सामान्य वर्ग में शामिल जातियां है । मीडिया का एक वर्ग कह रहा है कि भाजपा की रणनीति ओबीसी में सामान्य जातियों को डालकर विपक्षी ओबीसी वोटबैंक के प्रभाव को डाइल्यूट करने की है । केंद्र सरकार में हुए बदलाव के बाद मंत्रिमंडल को भी ओबीसी की सरकार कहा जा रहा है और उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की नजर ओबीसी वोटों पर ज्यादा है
लेकिन इन्हीं जातियों में कायस्थ और वर्णवाल जातियों के लोगों ने उनकी जातियों को ओबीसी में लेने का विरोध करना आरंभ कर दिया है अप्रत्याशित तौर पर उत्पन्न हुए इस विरोध के बढ़ते प्रभाव ने भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकारों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं तीन दशक पहले भी मंडल आयोग के लागू होने के बाद भाजपा के कद्दावर नेता तक चुनाव हार गए थे भाजपा की जीत का मूल मंत्र हमेशा से हिंदुत्व रहा है ऐसे में जातियों के उभार या आपसी खींचतान उत्तर प्रदेश के चुनाव में भाजपा की स्थिति को नुकसान पहुंचाने जा रहा है
हालात यह है कि भाजपा के अपने प्रदेश प्रवक्ता हरीश चंद श्रीवास्तव उनकी कायस्थ जाति को आरक्षण देने के मामले को प्रलोभन मानकर उसका विरोध कर रहे हैं तो अन्य जातियों के लोग भी इसको लेकर अपना रोष प्रकट कर रहे हैं जिसके बाद माना जा रहा है कि सरकार इस मामले पर अब बैक डोर से रास्ता बदलने की फिराक में है क्योंकि कानूनी जानकारों का मामला है कि अगर 39 जातियों को एक साथ ओबीसी में लाया गया तो यादव और कुर्मी वोट बैंक इसका एक साथ विरोध करेंगे वही कुछ मीडिया सूत्रों के अनुसार यादवों कुर्मियो जैसे बड़ी और ज्यादा लाभ लेने वाली जातियों को पिछड़ा वर्ग से हटाने के लिए 39 जातियों को लाने की रणनीति बनाई गई है

वर्णवाल समाज से आने वाले सामाजिक चिंतक और राजनेता शैलेंद्र वर्णवाल ने सरकार के इस कदम का विरोध करते हुए पूछा कि क्या उन्होंने वर्णवाल समाज से इसके मामले में कुछ पूछा या सिर्फ अपनी मर्जी से समाज को ओबीसी आरक्षण देने की साजिश शुरू कर दिया
क्या है पिछड़ा वर्ग, 30 वर्ष पहले मंडल आयोग के बाद क्या बदला है समाज
आपातकाल के बाद हो रहे सामाजिक बदलाव और सामान्य वर्ग की पिछड़ी जातियों ने भी अपने अधिकार की मांग उठाने शुरू की जिसके मंडल आयोग सन् 1979 में तत्कालीन जनता पार्टी की सरकार द्वारा स्थापित किया गया था। इस आयोग का कार्य क्षेत्र सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़ों की पहचान कराना था। बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल इसके अध्यक्ष थे।मंडल कमीशन रिपोर्ट ने विभिन्न धर्मो और पंथो के 3743 जातियाँ (देश के 44% जनसँख्या) को सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक मापदंडो के आधार पर सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ा (ध्यान रहे संविधान में आर्थिक पिछड़ा नहीं लिखा है और कमीशन आर्थिक बराबरी के लिए भी नहीं था) घोषित करते हुए 27% (क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने 50% अधिकतम का फैसला दिया था और पहले से SC/ST के लिए 22.5 % था), की रिपोर्ट दी।
मंडल आयोग ने पिछड़ी जातियों, वर्गों के निर्धारण के लिए सामाजिक,शैक्षिक और आर्थिक मानकों के आधार पर 11 सूचकांक तय किए थे.
सामाजिक स्थिति
1. वैसी जाति या वर्ग जिन्हें अन्य जाति या वर्गों द्वारा सामाजिक रूप से पिछड़ा समझा जाता है.
2.वैसी जाति या वर्ग जो आजीविका के लिए मुख्य रूप से शारीरिक श्रम पर निर्भर है.
3. वैसी जातियाँ या तबका जिनमें 17 साल से कम आयु की महिलाओं का विवाह दर ग्रामीण इलाकों में राज्य औसत से 25 प्रतिशत और शहरी इलाकों में दस प्रतिशत अधिक है और इसी आयु वर्ग में पुरुषों का विवाह दर ग्रामीण इलाकों में दस प्रतिशत और शहरी क्षेत्र में पाँच प्रतिशत ज्यादा है.
शैक्षिक आधार
1. वैसी जातियाँ या वर्ग जिनमें पाँच से 15 साल की आयु वर्ग में स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों की संख्या राज्य औसत से कम से कम 25 प्रतिशत अधिक हो.
2.इसी आयु वर्ग में जिन जातियों या वर्गों के बच्चों के स्कूल छोड़ने का प्रतिशत राज्य औसत से कम से कम 25 प्रतिशत है.
3.वैसी जातियाँ, वर्गों जिनमें मैट्रिक परीक्षा पास करने वाले छात्र-छात्राओं का प्रतिशत राज्य औसत से 25 प्रतिशत कम है.
आर्थिक आधार
1.वैसी जातियाँ, वर्गों जिनमें औसत पारिवारिक संपत्ति मूल्य राज्य औसत से 25 प्रतिशत कम है.
2. ऐसी जातियाँ, वर्ग जिनमें कच्चे घरों में रहने वालों की संख्या राज्य औसत से कम से कम 25 प्रतिशत कम है.
3. ऐसे इलाकों में रह रही जातियाँ, वर्ग जिनमें 50 फीसदी परिवारों को पेयजल के लिए आधा किलोमीटर से दूर जाना पड़ता है।
ऐसे में बनिया, राजपूत और कायस्थ जैसी सामाजिक और शैक्षिक उच्चता वाली जातियों को यूपी सरकार के पिछड़ा आयोग द्वारा पिछड़ा वर्ग में रखें जाने की संस्तुति की खबर ही अपने आप में पिछड़ा आयोग के उद्देश्यों को पूरा करता नहीं दिख रहा है पिछड़ा वर्ग से तमाम लोग इसके खिलाफ अदालत में जाने की तैयारी कर रहे हैं लोगों कहना है कि जिन जातियों के शोषण के चलते वह लोग पिछड़ा वर्ग में आए थे अब अगर उन्हीं जातियों को भी पिछड़ा वर्ग में ले जाया जाएगा तो सामाजिक उत्थान की अवधारणा ही समाप्त हो जाएगी वही स्वर्ण जातियों द्वारा ओबीसी में ना रखे जाने के समर्थक लोगों का कहना है कि बीते 30 सालों में पिछड़ा वर्ग के बनने के बावजूद इस वर्ग के लोगों के हालात में कोई सुधार नहीं हुआ है इसलिए अब समय आ गया है जब मंडल आयोग की रिपोर्ट की जगह एक आर्थिक सर्वेक्षण कर इस पर पुनर्विचार किया जाए और आर्थिक आधार बने ईडब्ल्यूएस का दायरा बढ़ा कर उसमें लोगो को लाभ दिया