वर्ष में आदि शक्ति मां भगवती की उपासना के लिए चार नवरात्रि आती है, इसमें 2 गुप्त एवं 2 उदय नवरात्रि होती हैं। चैत्र और अश्विन मास की नवरात्रि उदय नवरात्रि के नाम से भी जानी जाती है। आषाढ़ और माघ की नवरात्रि गुप्त नवरात्रि के नाम से जानी जाती है।
गुप्त नवरात्र के दौरान साधक इन दस महाविद्याओं के लिए मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा करते हैं।
अगर आपको लगता है कि आपके ऊपर किसी प्रकार की बुरी शक्ति का प्रभाव है या फिर दुश्मन लगातार आपके खिलाफ साजिश रच रहे हैं तो गुप्त नवरात्र में रोजाना दुर्गा कवच का पाठ करने से इन समस्याओं से निजात पाई जा सकती है। ध्यान रखें कि पाठ करते समय तिल के तेल का दीपक जलाकर रखें। किसी प्रकार की मंत्र साधना करते आ रहे हैं तो अष्टमी को उन मंत्रों का दशांश हवन भी करें। और कन्या पूजन करें।
अगर आपका व्यापार इस वक्त मंदा चल रहा है तो गुप्त नवरात्र में यह उपाय आपको फायदा दे सकता है। भोजपत्र पर केसर से स्वास्तिक का चिह्न बनाकर रोजाना मां लक्ष्मी के मंत्रों से इसकी पूजा करें और नवमी के दिन इस भोजपत्र को अपने धन के स्थान में रख लें। व्यापार में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की होगी
अगर आपके वैवाहिक जीवन में लगातार कलह बनी हुई है तो गुप्त नवरात्र में मां दुर्गा के व्रत करने से स्थिति में सुधार आना शुरू हो जाएगा। जो लोग अविवाहित हैं अगर वे पूजा करेंगे तो उन्हें मनचाहा जीवनसाथी मिल जाएगा।
भगवान् शिव रचित सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ भी अत्यंत ही प्रभावशाली और दुर्गा सप्तशती का सम्पूर्ण फल प्रदान करने वाला माना गया है, जो इस प्रकार है
सप्तश्लोकी दुर्गा (सप्तशती)
विनियोग
ॐ अस्य श्री दुर्गा सप्तश्लोकी स्तोत्र मंत्रस्य, नारायण ऋषि: अनुष्टुप् छ्न्द:
श्री महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वत्यो देवता: श्री दुर्गा प्रीत्यर्थे सप्तश्लोकी दुर्गा पाठे विनियोग: ।
श्लोक
ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ।।1।।
दुर्गे स्मृता हरसिभीतिमशेष जन्तो:
स्वस्थै: स्मृता मति मतीव शुभां ददासि
दारिद्र्य दु:ख भय हारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकार करणाय सदार्द्र चित्ता ।।2।।
सर्व मङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते ।।3।।
शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे
सर्वस्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते ।।4।।
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्व शक्ति समन्विते
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते ।।5।।
रोगान शेषा नपहंसि तुष्टा
रुष्टा तु कामान् सकलान भीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन् नराणां
त्वामाश्रिता ह्या श्रयतां प्रयान्ति ।।6।।
सर्वा बाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि
एकमेव त्वया कार्यमस्मद् वैरि विनाशनं ।।7।।
इति सप्तश्लोकी दुर्गास्तोत्र सम्पूर्णा ।।
ज्योतिर्विद कुशा भटनागर