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अनोखी पहल : शादियों को टूटने से बचाने के लिए “शादी बचाओ”

शादी बचाओ (www.shaadibachao.com) हो सकता है आपने यह नाम न सुना हो। लेकिन यह संगठन समाज के लिए जिस तरह का कार्य कर रहा है उसके लिए यह तारीफ के काबिल है। पेशे से वकील सुमित जिदानी ने इस संगठन की नींव रखी और कई शादियों को टूटने से बचाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।  सुमित का मानना है कि समाज के लिए कुछ काम करने की कोई उम्र नहीं होती। समाज के प्रति उनके इसी जज्बे को देखते हुए एनसीआर खबर के लिए ‘द इंफ्लुएंसर टॉक्स’ में अतुल माथुर ने उनसे बात की। पेश हैं उसी बातचीत के कुछ अंश –

अतुल माथुर – इस पहल का कॉन्सेप्ट क्या है और किस तरह से इस तरह का विचार आपके मन में आया?

सुमित जिदानी – शादी बचाओ का कॉन्सेप्ट इसके नाम से ही स्पष्ट है। बहुत से लोग अपने रिश्तों में संघर्ष कर रहे हैं और हमें उनके लिए कुछ करने का मन था। आमतौर पर वैचारिक मतभेद होते हैं, जो बड़ा रूप धारण कर लेते हैं। हमारे पास वैवाहिक जीवन की समस्याओं को सुलझाने के लिए एक सिस्टम है और हम पेशेवर तरीके से इन समस्याओं को सुलझाने की कोशिश करते हैं। एक उदाहरण देकर बताऊं तो कुछ साल पहले हम एक ऐसे जोड़े से मिले जो सालों से मुकदमेबाजी में फंसा हुआ था। फिर हमने दोनों से बात की और दोनों आपसी रजामंदी से साल 2012 में दोनों अलग हो गए। इस केस की खूबसूरती यह है कि इसी जोड़े ने साल 2018 में फिर से शादी कर ली और हमें भी निमंत्रण भेजा। अगर उस वक्त इन लोगों में बात बिगड़ जाती और आपसी रजामंदी से अलग नहीं होते तो फिर वह दोबारा शादी नहीं कर पाते।

अतुल माथुर– विवाद की मुख्य वजहें क्या होती हैं और इसमें परिवार, समाज व संस्कृति की क्या भूमिका होती है?

सुमित जिदानी – वैचारिक मतभेद के साथ ही आर्थिक तरक्की के दौर में महिला-पुरुष दोनों आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो रहे हैं और यह भी विवाद का कारण बन जाता है। पति-पत्नी एक ही गाड़ी के दो पहिए हैं, उन्हें मिलकर अपनी समस्याओं का हल निकालना चाहिए। उन्हें रिश्ते को लेकर हमेशा सचेत रहना चाहिए। अपने रिश्ते में हर उस छोटी बात का ध्यान रखना चाहिए, जो रिश्ते में खटास ला सकती है। ऐसे में हमें सही व्यक्ति से संपर्क करके इन छोटी-छोटी बातों को समाप्त कर लेना चाहिए, अन्यथा यही छोटे-छोटे मुद्दे तलाक का कारण बन सकते हैं। जहां तक बात है परिवार की तो हमारे समाज में शादी दो लोगों के बीच नहीं, बल्कि दो परिवारों के बीच होती है। इसी तरह से विवाद भी दो लोगों के बीच नहीं, बल्कि दो परिवारों के बीच का होता है।

अतुल माथुर – ज्वाइंट फैमिली या न्यूक्लियर फैमिली में कहां ज्यादा समस्याएं आती हैं?

सुमित जिदानी – ज्वाइंट फैमिली पति-पत्नी के विवाद को निपटाने में अहम भूमिका निभाती है। लेकिन कई बार यह समस्या का कारण भी बन जाती है। संयुक्त परिवार में सभी एक व्यक्ति पर निर्भर हो जाते हैं और कई बार प्राइवेसी भी नहीं रह जाती। कभी-कभी लगने लगता है कि इससे बच्चों के भविष्य को नुकसान हो रहा है या उन्हें समय नहीं दे पा रहे हैं। जबकि न्यूक्लियर फैमिली में आजादी तो मिल जाती है, लेकिन विवाद होने पर उन्हें समझाने वाला कोई नहीं होता। दोनों तरह के फैमिली सिस्टम की अपनी खूबियां और खामियां होती हैं।

पति-पत्नी के रिश्ते बिगड़ने का एक बड़ा कारण यह भी है कि संयुक्त परिवार में उनके विवाद को दबाने की कोशिश होती है। असल में यह कैंसर की तरह है, कैंसर का इलाज शुरुआती चरण में ही संभव है, तीसरे या चौथे स्टेज में नहीं। इसी तरह वैवाहिक विवाद को भी शुरुआत में ही हल किया जा सकता है, देर होने पर रिश्ता बचने की उम्मीद कम होती जाती है।

अतुल माथुर – आप सिर्फ शादी बचाने के लिए काम नहीं करते, बल्कि घरेलू हिंसा को उजागर करके उसका सौहार्दपूर्ण समाधान निकालने पर भी काम करते हैं?

सुमित जिदानी – भारत जैसे देश में बहुत सी महिलाएं ऐसी हैं जो वर्षों से घरेलू हिंसा झेल रही हैं, लेकिन वे कभी इसकी शिकायत नहीं करतीं। इसके बावजूद शादी हो चुकी है, इसलिए अगर आप साथ रह रहे हैं तो यह गलत है, यह शादी का मकसद नहीं है। समाज को दिखाने के लिए मजबूरी में साथ रहना ठीक नहीं है। शादी बचाओ में स्त्री या पुरुष कोई भी अपनी समस्या के साथ आ सकता है। शोषण का शिकार महिला और पुरुष दोनों होते हैं, फिर चाहे वह शारीरिक हो, मानसिक हो या आर्थिक शोषण हो।

अतुल माथुर – शादी बचाओ मूवमेंट को आप कहां तक ले जाना चाहते हैं और यहां आप कैसे काम करते हैं?

सुमित जिदानी – शादी बचाओ अब एक राष्ट्रीय स्तर का आंदोलन बन चुका है। देशभर से लोग हमसे संपर्क करते हैं। हमारा काम सिर्फ काउंसिलिंग तक ही सीमित नहीं है। हमारे पास एक्सपर्ट्स की टीम है। मिडिएटर्स, काउंसलर्स, हीलर्स, धार्मिक व्यक्ति और कॉर्पोरेट वर्ल्ड के लोग हमसे जुड़े हैं। हर व्यक्ति अलग है और उसके लिए समाधान भी अलग ही होता है। हम सबसे पहले यह समझने की कोशिश करते हैं कि समस्या क्या है, कहां है? फिर उस समस्या की जड़ तक जाते हैं। इसके बाद उनकी समस्या को देखते हुए उचित टीम को काम पर लगाया जाता है।

अतुल माथुर– पति-पत्नी के अलग होने पर क्या आप रिहैब्लिटेशन में भी उनकी मदद करते हैं?

सुमित जिदानी – संविधान ने हमें सम्मान के साथ जीने का अधिकार दिया है। सरकार की जिम्मेदारी है कि जो जोड़ा एक साथ खुश नहीं है, उनको रिहैब्लिटेट करे। हम उन्हें अपने जीवन को सम्मान के साथ जीने में मदद करते हैं। अगर वे हमारे पास आते हैं तो हम उनकी शादीशुदा जिंदगी को खुशियों से भरना चाहते हैं। अगर कोई इस रिश्ते से बहुत ही ज्यादा नाखुश है और रिश्ते को लेकर नकारात्मक है तो हम उनकी भी कानूनी तरीके से मदद को तैयार हैं, ताकि उनका मामला सौहार्दपूर्ण तरीके से निपट जाए।

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एन सी आर खबर ब्यूरो

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