रविवार मोटीवेशन : डरिए मत, कोरोना में ठीक होने वाले लोगो की संख्या भी बहुत बड़ी है, महामारी कोरोना नहीं हमारी निराशा है उससे बाहर आइये
आशु भटनागर । लगातार आ रही कोरोना की नकारात्मक खबरों और अपने आस पास बढ़ रहे संक्रमित लोगो की सूचना के कारण ऐसा लग रहा है कि सिस्टम ध्वस्त हो गया है । कोरोना के कारण टीवी पर दिखने वाले कष्टदाई दृश्य लोगो को मानसिक तौर पर दवाब में ला रहे है। हालत ये है कि कई लोगो ने कोरोना संक्रमित होते ही अस्पतालों और घरों से छलांग लगा ली। लेकिन क्या सच में कोरोना के कारण देश में सब कुछ खराब हो रहा है ? क्या सच मुच देश में अब स्थिति हाथ से निकल गई है।

इसका जवाब है नहीं, दरअसल स्थिति खराब है मगर विकट नही । हम महामारी में सिर्फ मृत्यु के आंकड़े गिन रहे है और उन्ही के चलते दबाब में आ रहे है। लेकिन सच ये है पिछले 24 घंटे में देश भर में कोविड मामलों के 2,17,113 लोगों को अस्पतालों से डिस्चार्ज किया गया है ।अब तक भारत में कोरोना के कुल 1,69,60,172 मामले आए जिनमें से 1,40,85,110 लोग रिकवर हो चुके हैं । लेकिन हमको जानबूझ कर मृत्यु के आंकड़े दिखाए जा रहे है। ताकि डर का माहौल बना रहे । कालाबाजारियों के लिए भय एक अवसर है । ताकि उनको जरूरी वस्तुओ का दाम बढ़ा कर मुनाफा कमाने में आसानी हो । और वो ऐसा कर रहे है। सरकार और प्रशासन लगातार उनके खिलाफ मुहिम चला रहे है इन पर विश्वास रखिए
ऐसे में लोगो का सवाल ये है कि महामारी से कैसे बचे तो एक सामान्य जवाब है कि खुद को सुरक्षित रखे, मास्क लगाए, 2 गज की दूरी बनाए । ये क्या बस यही है ।
मनोचिकित्सक और विशेषज्ञ कहते है दरअसल इस भय और निराशा के बीच ये सवाल ही गलत है कि महामारी से कैसे बचे
प्रश्न होना चाहिए कि महामारी के कारण मेरे मन में मरने का जो डर बैठ गया है इस डर से कैसे बचा जाए…?
क्योंकि किसी भी वायरस से बचना तो आसान है,लेकिन जो डर आपके मन के भीतर बैठ गया है, उससे बचना बहुत ही मुश्किल है। इस समय आप देखिए लोग कोविड से कम, आक्सीजन कम होने जैसे भय से ज्यादा मार रहे है । ’डर’ से ज्यादा खतरनाक इस दुनिया में कोई भी वायरस नहीं है।
इस डर को समझिये, क्योंकि डर के आगे जीत है अन्यथा मौत से पहले ही आप एक जिंदा लाश बन जाएँगे। आप समझिए कि कैसे महाम्रतुंजय मंत्र का जाप करने वाले अक्सर भयंकर बीमारी से बाहर आ जाते है ? क्या वो सच में एक चमत्कार है , नहीं वो आपका सकारात्मक विश्वाश है वापस जीवन में लौटने का और इसीलिए लोग बीमारियों से लड़ जाते है
दरअसल कोरोना के कारण भयावह माहौल आप अभी देख रहे हैं, इसका वायरस आदि से कोई लेना देना नहीं है। यह एक सामूहिक पागलपन है, जो एक अन्तराल के बाद हमेशा घटता रहता है, कारण बदलते रहते हैं, कभी विश्व युद्ध,कभी सरकारों की प्रतिस्पर्धा, कभी कच्चे तेल की कीमतें, कभी दो देशों की लड़ाई, तो कभी जैविक हथियारों की टेस्टिंग!!
भविष्य में आप देखेंगे कि आने वाले बरसों में युद्ध तोपों से नहीं बल्कि जैविक हथियारों से लड़ें जाएंगे। लेकिन निराशा के इस दौर में महामारी के अलावा भी बहुत कुछ दुनिया में हो रहा है, उन पर ध्यान दीजिए
हमारे शास्त्रों में लिखा है हर समस्या मूर्ख के लिए डर होती है, जबकि ज्ञानी के लिए अवसर!! तो फिर क्या इस महामारी में आप घर बैठिए, पुस्तकें पढ़िए, शरीर को कष्ट दीजिए और व्यायाम कीजिये, फिल्में देखिये, योग कीजिये और चेहरे पर बच्चों जैसी ताजगी लाइये
अपने शौक़ पूरे कीजिए। याद कीजिए आपने आखरी बार कब अपने लिए कुछ किया। आहार का भी विशेष ध्यान रखिए, स्वच्छ जल पीए, और आखरी बात धैर्य रखिए । समय कितना भी कठिन हो बीत ही जाता है।
ऐसा पहले भी हजारों बार हुआ है, और आगे भी होता रहेगा । आप हिंदू दर्शन को पड़ेंगे और जानेंगे तो जानेंगे कि महामारिया आती रही है और लोग उसके बाद भी अपनी दृढ़ इच्छा से आगे बढ़ते रहे है। दुर्गा सप्तशती में लिखा है जब लोगो के सामने अपरिहार्य परिस्थिति उत्पन्न हुई तो उस निराशा के दौर ब्रह्मा विष्णु महेश और सभी देवताओं के तेज से एक महा तेज प्रकट हुआ जिसने एक स्त्री का रूप लिया जिस हम प्रकृति स्वरूपा मां दुर्गा कहते है। आज भी वही दुर्गा स्वरूपा प्रकृति हमारी रक्षक बन रही है। आप इस महामारी में वापस प्रकृति से जुड़ रहे है I आप वापस गिलोय, अश्वगंधा, तुलसी के वापस प्रयोग कर रहे है योग से फिर से अपने शरीर को स्वस्थ बना रहे है
भगवान श्री राम ने रावण से युद्ध के दौरान कई ऐसे क्षण महसूस किए जहां वो सामान्य आदमी की तरह हतोत्साहित होते तो युद्ध हार जाते । लेकिन निरंतर दृढ़ निश्चय और आपकी सकारात्मकता ही आपको विजय दिलाती है
याद रखिए जब तक मौत आ ही न जाए, तब तक उससे डरने की कोई ज़रूरत नहीं है और जो अपरिहार्य है उससे डरने का कोई अर्थ भी नहीं है,
डर एक प्रकार की मूढ़ता है, अगर किसी महामारी से अभी नहीं भी मरे तो भी एक न एक दिन मरना ही होगा, और वो एक दिन कोई भी दिन हो सकता है, इसलिए ज्ञानियों की तरह जीयें, भीड़ की तरह नहीं
आइए! नकारात्मकता से बचते हुए, कुछ सावधानी और ढेर सारी मस्ती के साथ जीवन के सफर का आनंद लें।
