आज से माँ का आगमन हो रहा है. माँ शक्तिस्वरूपा हैं, माँ सभी को प्रेम करती हैं, सभी को माँ शक्ति दें. पर कभी कभी उन आसुरी शक्तियों का ध्यान आ जाता है, जिनके लिए माँ का कोई महत्व नहीं है. ऐसा नहीं है कि वह माँ की पूजा नहीं करतीं, वह माँ को मिथक मानकर पूजती हैं. जबकि माँ हमारी आस्था और इतिहास हैं. माँ की शरण में अर्जुन को भी जाना पड़ा था, और अर्जुन को माँ से विजयश्री का वरदान प्राप्त हुआ था.
वह लोग हैं जिनके लिए सीता सत्य हैं और रामायण मिथक, मनु सत्य हैं और मनु के आधार पर मनुस्मृति को धर धर कोसना सत्य है, परन्तु मनु महाराज द्वारा बसाई गयी अयोध्या मिथक है!
यह कैसा भ्रम है दीदी! आप इतनी भ्रमित हैं कि बिना महर्षि वाल्मीकि की रामायण पढ़े, आप राम और सीता को जज करने लगती हैं! आप इतनी भ्रमित हैं कि आपने महर्षि वेदव्यास का लिखा महाभारत नहीं पढ़ा, किसी तीसरे या चौथे का लिखा गया कुछ पढ़ा और उस के आधार पर द्रौपदी और पांडवों के विषय में स्तरहीन और सतही कविताएँ लिखने लगीं.
दीदी, प्लीज़ पढ़िए!
जिस द्रौपदी के लिए भर भर आंसू बहाती हैं यह लोग और कहती हैं कि द्रौपदी ने छोड़ क्यों नहीं दिया, तो सच में हंसी आती है! कथित स्त्री वादियाँ जो सीता और द्रौपदी के आधार पर हमारे राम और पांडवों को कोसती हैं, वह अपने जीवन से अपने पति या प्रभावी पुरुष का नाम एक बार भी निकाल नहीं सकतीं. क्योंकि अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष लाभ प्राप्त होने बंद हो जाएँगे. द्रौपदी ने पांडवों के पुरुषार्थ से विवाह किया था. उन्हें यह पूर्ण विश्वास था कि उनके पति अवश्य ही उनके अपमान का प्रतिशोध लेंगे. सीताजी को अपने पति के पौरुष पर पूर्ण विश्वास था, कि उनके पति उन्हें खोजते हुए इस दुष्ट का विनाश अवश्य करेंगे.
द्रौपदी और सीता का प्रेम ही था जो उनके पतियों ने उनका अपमान करने वालों का वध किया.
परन्तु द्रौपदी और सीता को समझने के लिए आपके पास भारतीय दृष्टि होनी चाहिए और यह विश्वास होना चाहिए कि यह हमारा इतिहास हैं, तभी आप उन्हें समझ सकेंगे. जब आप सीता को इतिहास मानेंगी तभी आप माँ को मान पाएंगी! मात्र माँ को मंदिर में बैठाकर सीता पर रोने से कुछ नहीं होगा! राम और सीता अलग नहीं, द्रौपदी और पांडव पृथक नहीं! द्रौपदी को अपने पतियों के पुरुषार्थ पर इतना विश्वास था कि उन्होंने धृतराष्ट्र से जब वर मांगने का अवसर प्राप्त हुआ तो उन्होंने मात्र दो वर ही मांगे और वह भी अपने पतियों की दासता से मुक्ति! उन्होंने धन नहीं माँगा, उन्होंने राज्य नहीं माँगा! उन्होंने स्पष्ट कहा कि उनके पति स्वयं अपने पौरुष से वह सब अर्जित कर लेंगे जो खोया है.
इसी प्रकार सीता भी राम के साथ चली आईं थीं, वनवास उन्हें तो नहीं मिला था! वह चाहतीं तो जाकर रहतीं अपने पिता जनक के घर या फिर अयोध्या में ही महलों में! परन्तु उन्हें अपने पति पर विश्वास था.
माँ, सीता, द्रौपदी सभी हमारी स्त्रियाँ सनातनियों का गौरव हैं. वह मिथक नहीं हैं, वह जागृत हैं, वह चेतना हैं!
आज की स्त्रियाँ जो छोटी छोटी परेशानियों से परेशान होकर कविता लिखने बैठ जाती हैं या फिर घर चलाने में अक्षम रह कर तमाम पोथी लिखती हैं, उनसे यह अपेक्षा करना कि वह माँ, सीता या द्रौपदी को समझेंगी, रेत में सुई खोजने से भी कठिन कार्य है!
तो आज से नौ दिन का यह पर्व उन सभी स्त्रियों के लिए वैभव एवं शक्ति लाए जिनके लिए माँ उनका इतिहास हैं, जिनके लिए माँ उनकी चेतना हैं, जिनके लिए द्रौपदी और सीता उनका इतिहास हैं!
जो माँ को हिन्दू मिथक मानती हैं, जो अपने इतिहास से आँखें चुराती हैं, जो अपनी पहचान को खारिज करती हैं, और जरा सी समस्या होने पर मेरे राम और कृष्ण को कोसने लग जाती हैं, उन्हें माँ सद्बुद्धि दें!
सोनाली मिश्र