माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के महानतम संतो के सानिध्य में 5 अगस्त को दोपहर 12 बजे राम जन्मभूमि परिसर पहुंचेंगे. इसके बाद वह 10 मिनट में रामलला विराजमान का दर्शन-पूजन करेंगे. इसके बाद वह दोपहर को 12 बजकर 44 मिनट और 15 सेकंड पर मंदिर की आधारशिला की स्थापना करेंगे.
रामं कामारिसेव्यं भवभयहरणं कालमत्तेभसिंह योगीन्द्रं ज्ञानगम्यं गुणनिधिमजितं निर्गुणं निर्विकारम्। मायातीतं सुरेशं खलवधनिरतं ब्रह्म वृन्दैकदेवं वन्दे कन्दावदातं सरसिजनयनं देवमुर्वीशरुपम्।। कामदेव के शत्रु शिव जी के सेव्य, भव (जन्म-मृत्यु) के भय को हरने वाले,कालरुपी मतवाले हाथी के लियेसिंह के समान,योगियोँ के स्वामी (योगीश्वर),ज्ञान के द्वारा जानने योग्य,गुणोँ के निधि,अजेय. निर्गुण,निर्विकार,माया से परे,देवताओँ के स्वामी, दुष्टोँ के वध मेँ तत्पर,ब्राह्मण वृन्द के एकमात्र देवता (रक्षक),जलवाले मेघ के समान सुन्दर श्याम.कमल के से नेत्रवाले,पृथ्वीपति (राजा) के रुप मेँ परम देव श्रीराम जी की मैँ वन्दना करता हुँ।
रमन्ते योगिनः यस्मिन् स रामः। ‘जिसमें योगी लोगों का मन रमण करता है उसी को कहते हैं ‘राम’।’ एक राम घट-घट में बोले, दूजो राम दशरथ घर डोले। तीसर राम का सकल पसारा, ब्रह्म राम है सबसे न्यारा।।
यस्मिन् रमन्ते मुनयो विद्यायाs ज्ञान विप्लवतं गुरु:प्राह रामेति रमणाद्राम इत्यपि ! अध्यात्म रामायण बा का ३/४०
विज्ञान के द्वारा अज्ञान के नष्ट होने पर मुनि जन जिनमे रमण करते हैं अथवा जो अपनी सुन्दरता से भक्तो के चित्त को रमाते (आनन्द करते )हैं उनका नाम गुरु वशिष्ठ ने राम रखा ! “
व्यास जी कहा है
रमयन् सुह्रदों गुणै:! आख्यास्यते राम इति ! !
यह अपने सगे सम्बंधी और मित्रों को अपने गुणों द्वारा अत्यन्त आनन्दित करेगा इस लिये इसका नाम राम होगा।
गोस्वामी तुलसी कहते हैं
जो आनंद सिंधु सुखरासी ।
सीकर तें त्रैलोक सुपासी ।।
सो सुखधाम राम अस नामा ।
अखिल लोक दायक बिश्रामा।।
बाल काण्ड १९६/३
अगस्त्यसंहिता के अनुसार श्री राम का जन्म दिन के 12 बजे हुआ था इस समय पुनर्वसु नक्षत्र व कर्क लग्न था। इस समय ग्रहों की दशा के अनुसार भगवान राम ने मेष राशि में जन्म लिया जिस पर सूर्य एवं अन्य पांच ग्रहों की शुभ दृष्टि पड़ रही थी। माता कौशल्या की कोख से जन्म लेने पर भगवान विष्णु के मानव अवतार लेने पर इस जन्मोत्सव का आनंद देवताओं, ऋषियों, किन्नरों, चारणों सहित अयोध्या नगरी की समस्त जनता ले रही थी।
भूमि पूजन से पहले तीन दिवस का कार्यक्रम
5 अगस्त को राम मंदिर भूमि पूजन पहले 4 अगस्त मंगलवार को रामार्चन पूजा शुरू हो गई है. रामार्चन पूजा सभी प्रमुख देवी और देवताओं को भगवान राम के पधारने से पहले न्योता देने के लिए की जाने वाली पूजा है. इस पूजा को कई चरणों में किया जा रहा है. पहले चरण में राम के अलावा अन्य देवी-देवताओं की पूजा की जा रही है. दूसरे चरण में अयोध्या की पूजा होगी. इसके अलावा नल-नील, सुग्रीव की पूजा होगी. तीसरे चरण में दशरथ, उनकी रानियों, राम के सभी भाइयों और उनकी पत्नी की पूजा की जाएगी और अंत में भगवान राम का आह्वान किया जाएगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को अयोध्या में 2 घंटे 50 मिनट तक रहेंगे। रामलला जी के जन्म स्थान का जीर्णोद्धार प्रक्रिया 5 अगस्त को प्रारंभ होने वाली है। दशकों से लंबित भूमि पूजन का समय अभिजीत मुहूर्त रखा गया है। इस आयोजन की पूरे देश व दुनिया में चर्चाए हैं। इसके बीच अभिजीत मुहूर्त की भी विशेष चर्चा है जिस समय काल में इस कार्य को प्रारंभ किया जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी निर्धारित समय दोपहर 12.15 बजे पवित्र अभिजीत मुहूर्त में आधारशिला रखेंगे। इसमें नौ ईंटों का प्रयोग किया जाएगा, जो चार दिशाओं, चार कोणों और स्थान देवता की परिचायक होंगी। इससे पूर्व करीब 10 मिनट तक प्रधानमंत्री रामजन्मभूमि, स्थान-वास्तु सहित आधारशिला में प्रयुक्त होने वाली ईंटों का पूजन करेंगे। ज्योतिष की दृष्टि से अभिजीत मुहूर्त अपने आप में अत्यंत शुभ माना जाता है। यहां इस मुहूर्त की क्या विशेषता है।
क्या है अभिजीत मुहूर्त
सामान्य तौर पर साल के 365 दिन में 11.45 से 12.45 तक के समय को हम अभिजीत मुहूर्त कह सकते हैं। प्रत्येक दिन का मध्य-भाग (अनुमान से 12 बजे) अभिजीत मुहूर्त कहलाता है, जो मध्य से पहले और बाद में 2 घड़ी अर्थात 48 मिनट का होता है। दिनमान के आधे समय को स्थानीय सूर्योदय के समय में जोड़ दें तो मध्य काल स्पष्ट हो जाता है।
श्री राम का जन्म हुआ था इसी समय
यह माना जाता है कि भगवान श्री राम का जन्म भी अभिजीत मुहूर्त में ही हुआ था, यही कारण है कि राममंदिर के भूमिपूजन के लिए अभिजीत मुहूर्त को ही तय किया गया है। 5 अगस्त, बुधवार को भगवान श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास यहां आयोजन के दौरान करीब 40 किलोग्राम भार की एक चांदी की ईंट श्रीराम शिला को समर्पित करेंगे। इसके अलावा साढ़े तीन फीट गहरी भूमि में चांदी की पांच शिलाएं रखी जाएंगी, जो 5 नक्षत्रों का प्रतीक होंगी।
12 मिनट इधर, 12 मिनट उधर का बड़ा महत्व
वैसे तो 30 मुहूर्त होते हैं दिन के पूरे 24 घंटे में परंतु सभी के साथ-साथ अभिजीत मुहूर्त का अपना एक विशेष स्थान है। अभिजीत मुहूर्त सूर्योदय से सूर्यास्त के मध्य पड़ने वाला वह समय होता है जिसमें मध्य से 24 मिनट इधर और 24 मिनट उधर का जो समय काल है वह अभिजीत मुहूर्त कहलाता है पर इसमें मध्य से 12 मिनट इधर और 12 मिनट उधर तो अत्याधिक शुभ कहलाते हैं। इस समय में कोई भी शुभ कार्य करना अच्छा माना जाता है। आपका कोई भी शुभ अभीष्ट कार्य है इस काल के दौरान हो तो उसमें जीत मैं कोई संशय नहीं रहता यह भगवान श्री हरि विष्णु के चक्र के समान शक्तिशाली मुहूर्त है। जब आपको कोई भी कार्य है बहुत शीघ्रता से करना हो और शुभ मुहूर्त बहुत दिनों बाद आ रहे हो तो दिन के इस विशेष काल में आप अपने कार्य को प्रारंभ कर सकते हैं यह अनादि अनंत काल से ऋषियों मुनियों योगियों ज्योतिषाचार्य के द्वारा शोधित अत्याधिक शुभ मुहूर्त माना जाता है।
इस मुहूर्त में होते हैं देव पूजा, शुभ कार्य
अभिजीत मुहूर्त को मूल रूप से देव मुहूर्त या देव योग कहा जाता है। इस मुहूर्त में देव पूजा, शुभ कार्य संपन्न किए जाते हैं। यह मूहर्त अन्य मूहर्त से अलग है। इसमें किया कार्य सिद्ध होता है इसीलिए इसका नाम अभिजीत मूहर्त रखा गया है। हाल ही में रक्षाबंधन पर बहनों ने इस मुहूर्त में ही भाइयों की कलाई पर राखी बांधी।
श्री राम मन्दिर शिलान्यास के लिये 5 अगस्त उत्तम है
श्रीराम मन्दिर के निमित्त 5.08.2020 को श्रीअयोध्या शिलान्यास हेतु 5 अगस्त के मुहूर्त में कोई शास्त्रीय बाधा नहीं है। सम्पूर्ण विश्व के कपटरहित आस्तिक समाज 5 अगस्त को होने वाले शिलान्यासमुहूर्त से आह्लादित हैं। कुछ लोग किसी अदृश्य कारण से दुःखी हैं तो वे भी प्रसन्न हो जायँ।
जहाँ गृहाद्यारम्भ के लिये भाद्रपद को निषिद्ध बताया है, उसके समाधानार्थ ‘वाचस्पत्यम्’ ने गृह शब्द की व्याख्या में लिखा है कि- ”यस्तुु गृहाद्यारम्भे भाद्रपदनिषेध उक्तः स कन्यार्कविषय:” अर्थात् गृहादि के आरम्भ में जो भाद्रपद का निषेध है, वह भाद्रपद में कन्या राशि में सूर्य के रहने पर ही है, न कि कर्क के सूर्य में।
वहीं पर विषयान्तर से लिखा है- ”खनेच्च सौरमानेन व्यत्यये चाशुभं भवेत्” सौरमान से ही नींव की खात खननी चाहिये; अन्यथा अशुभ होता है।
पुनः ”कर्कटे शुभदं प्रोक्तम्” तो वास्त्वारम्भ के लिये प्रसिद्ध ही है।
मासग्रहण के लिये ‘वाचस्पत्यम्’ ने गृह शब्द के अन्तर्गत ही स्पष्ट शब्दों में लिखा है-
”अत्र सौराणां चान्द्रमासानां च शुभाशुभफलभेदेन महान्विरोधः, तत्र चिकीर्षितगृहद्वारानुकूलरविसंक्रमसमीचीनविहितमासेष्वेव गृहारम्भः कार्य इति विरोधाभावः” यानी सौर तथा चान्द्रमास के शुभाशुभ फलभेद की प्राप्ति में गृहाद्यारम्भ हेतु सौरमास को ही ग्रहण करना चाहिये। ”एकराशौ रविर्यावत्स मासः सौरमुच्यते।” (भविष्यपुराण) जबतक सूर्य एक राशि में हैं, उसे सौरमास कहा जाता है। 16 अगस्त के सायंकाल तक सौरक्रम से श्रावणमास रहेगा और 19 अगस्त की सुबह तक भी अमान्त पक्ष में श्रावणमास ही रहेगा। यहाँ पूर्णिमान्त भाद्रमास से कुछ भी प्रयोजन नहीं है।
सौरमास के कृत्य – ”सौरमासो विवाहादौ यदाद्यैः सुप्रगृह्यते। यज्ञेष्वपि व्रते वापि विहिते स्नानकर्मणि।। चान्द्रस्तु पार्वणे ग्राह्यो वार्षिकेष्वष्टकासु च। श्राद्धेषु तिथिकार्येषु तिथ्युक्तेषु व्रतेषु च।। (भ.पु.) ऐसे वचन कई पुराण, कृत्यसारसमुच्चय, विविध स्मृति, वैखानसगृह्यसूत्र, कालमाधव, सत्यव्रत, बृहस्पति, सिद्धान्तशिरोमणि, ज्योतिषचन्द्रिका, पीयूषधारा, बृहज्ज्योतिषसार और ब्रह्मसिद्धान्त आदि में उपलब्ध हैं। इन सभी स्थलों में शास्त्रों का स्पष्ट निर्देश है कि सौरमास में देवकर्म और चान्द्रमास में तिथ्युक्तादि पितृकर्म करे।
इस सौरमासपक्ष में विश्वविद्यालय पञ्चाङ्ग और वैदेही पञ्चाङ्गकार आदि ने गृहारम्भ की मुहूर्ततालिका में स्पष्ट रूप से ”सौरक्रमेण” लिख भी दिया है।
पुनः कई मान्य पञ्चाङ्गों ने ५ अगस्त २०२० को गृहादि के आरम्भ का शुभ मुहूर्त स्पष्ट शब्दों में लिखा है। उन पञ्चाङ्गों में- १. वैदेही पञ्चाङ्ग, २. मैथिली पञ्चाङ्ग, ३. व्रजभूमि पञ्चाङ्ग, ४. महावीर पञ्चाङ्ग, ५. भुवनविजय पञ्चाङ्ग, ६. राजधानी पञ्चाङ्ग, ७. विश्वविद्यालय पञ्चाङ्ग, ८. चण्डू पञ्चाङ्ग, ९. दिवाकर पञ्चाङ्ग (६को), १०. निर्णयसागर चण्डमार्तण्ड पञ्चाङ्ग, ११. श्रीधरी चण्डांशु पञ्चाङ्ग, १२. त्रिकालज्योति पञ्चाङ्ग और १३. बाबा वैद्यनाथ पञ्चाङ्ग में स्पष्टतः ५ अगस्त २०२० को गृहारम्भ का मुहूर्त लिखा हुआ है । पुनः देश के कई मान्य विद्वानों ने भी ५ अगस्त को सही बताया है ।
कोशों में मन्दिर, आलय आदि शब्द गृह के ही पर्यायवाची हैं- ”निशान्तवस्त्यसदनं भवनागारमन्दिरम्। गृहाः पुंसि च भूम्न्येव निकाय्यनिलयालयाः।।” (अमरकोश) अतः गृहारम्भ शब्द से ही मन्दिर या देवालयारम्भ भी ग्राह्य होते हैं।
सूक्ष्मता से ज्योतिषीय विचार करने पर दशाब्दियों में भी किसी सर्वमान्य निर्दुष्ट शुभ मुहूर्त का निकालना अत्यन्त कठिन है। सर्वतोभावेन निर्दुष्ट शुभ मुहूर्त के अभाव में प्राचीनकाल के अनेक ज्योतिषी अविवाहित ही रह गये थे।
५.०८.२०२० को देवालयारम्भ के लिये और भी कई अच्छे संयोग हैं, जैसे-
- कर्कराशिस्थ सूर्य होने से सौरक्रमेण श्रावणमास प्रशस्त एवं फलतः द्रव्यवृद्धि,
- अमान्त श्रावणमास होने से भी उत्तम,
- कर्कस्थ सूर्य में पूर्वमुख का देवालयारम्भ प्रशस्त,
- द्वितीया तिथि और बुधवार भी प्रशस्त,
- सुबह ९:३० बजे तक धनिष्ठा और पुनः शतभिषा भी प्रशस्त,
- पृथ्वीशयनरहित नक्षत्र,
- वृषचक्र दक्षोदर में शुद्ध- फलतः लाभ,
- आनन्दादि योग में भी बुध को धनिष्ठा से पुष्टि एवं शतभिषा से सुख,
- बुधवार को द्वितीया होने से सिद्धि योग आदि सब अच्छे हैं।
पञ्चाङ्गभेद से कुछ मिनट्स का अन्तर हो सकता है। उत्तर भारत में ‘अर्द्धप्रहरदोष’ का ही त्याग अपेक्षित है, जिसपर विचार कर लिया गया है। चौघड़िया दक्षिण भारत की परम्परा रही है, यद्यपि आजकल सब देखना प्रारम्भ कर दिये हैं। प्रायः अर्द्धप्रहर के त्याग में ही अशुभ चौघड़िया व्यतीत हो जाया करती हैं। सम्प्रति मैंने अर्द्धप्रहर का विचार कर लिया है। तात्कालिक लग्नकुण्डली से सामान्येन अनुकूल प्रतिक्रिया ही प्राप्त हुई। सश्रम इस महत्त्वपूर्ण समय का निर्धारण किया गया है ।
किसी को मेरी पंक्तियों से कदाचित् कुछ कष्ट हो तो क्षमाप्रार्थी हूँ,
“नभ: पतन्त्यात्मसमं पतत्रिण:”।
मेरे सभी पूज्य हैं। वन्दनीय महापुरुषों के शुभ संकल्प से अशुभों का शमन और त्रिकाल में सबका मङ्गल ही होता है। पुनश्च-
“तदेव लग्नं सुदिनं तदेव ताराबलं चन्द्रबलं तदेव। विद्याबलं दैवबलं तदेव लक्ष्मीपते तेऽङ्घ्रियुगं स्मरामि।।”
राष्ट्र के महान संतो राम भक्तो की अगुवाई में इस स्थान को मुक्त करने एवं वहाँ एक नया मन्दिर बनाने के लिये एक लम्बा आन्दोलन चला। ६ दिसम्बर सन् १९९२ को जो घटनाक्रम हुआ वह 500 वर्ष के संघर्ष का परिणाम हैं। विरक्त शिरोमणि परमहंस श्री स्वामी वामदेव जी की अध्यक्षता में देश भर के राम भक्त साधु सन्तो के साथ अयोध्या कुछ पर निकले जिसमे प्रमुख नाम रामचंद्र परमहंसजी , संत नृत्यगोपाल दास जी युगपुरुष परमानंद जी , निर्मल पीठाधीश्वर श्रीस्वामी ज्ञान देव जी , महामंडलेश्वर श्री स्वामी अनंतदेव गिरी जी , साध्वी ऋतम्भरा जी, साध्वी उमा भारती जी अशोक सिंहल, आचार्य गिरिराज किशोर , आचार्य धर्मेद्र, साक्षी महाराज के साथ महानतम संतो के। आह्वान पर समूचा हिन्दू समाज संतो के साथ प्राणों को आहूत करने को तत्पर होकर रामजन्मभूमि मुक्ति यात्रा में सम्मिलित होकर निकला और यात्रा अयोध्या पहुची ६ दिसम्बर सन् १९९२ ओर यह विवादित ढ़ांचा गिरा दिया गया और वहाँ श्री राम का एक अस्थायी मन्दिर निर्मित कर दिया गया।
अयोध्या विवाद : 1526 से अब तक
- 1526 : इतिहासकारों के मुताबिक, बाबर इब्राहिम लोदी से जंग लड़ने 1526 में भारत आया था। बाबर के सूबेदार मीरबाकी ने 1528 में अयोध्या में मस्जिद बनवाई। बाबर के सम्मान में इसे बाबरी मस्जिद नाम दिया गया।
- 1853 : अवध के नवाब वाजिद अली शाह के समय पहली बार अयोध्या में साम्प्रदायिक हिंसा भड़की। हिंदू समुदाय ने कहा कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई।
- 1949 : विवादित स्थल पर सेंट्रल डोम के नीचे रामलला की मूर्ति स्थापित की गई।
- 1950 : हिंदू महासभा के वकील गोपाल विशारद ने फैजाबाद जिला अदालत में अर्जी दाखिल कर रामलला की मूर्ति की पूजा का अधिकार देने की मांग की।
- 1959 : निर्मोही अखाड़े ने विवादित स्थल पर मालिकाना हक जताया।
- 1961 : सुन्नी वक्फ बोर्ड (सेंट्रल) ने मूर्ति स्थापित किए जाने के खिलाफ कोर्ट में अर्जी लगाई और मस्जिद व आसपास की जमीन पर अपना हक जताया।
- 1981 : उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने जमीन के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया।
- 1885 : फैजाबाद की जिला अदालत ने राम चबूतरे पर छतरी लगाने की महंत रघुबीर दास की अर्जी ठुकराई।
- 1989 : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित स्थल पर यथास्थिति बरकरार रखने को कहा।
- 1992 : अयोध्या में विवादित ढांचा ढहा दिया गया।
- 2002 : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित ढांचे वाली जमीन के मालिकाना हक को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।
- 2010 : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2:1 से फैसला दिया और विवादित स्थल को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच तीन हिस्सों में बराबर बांट दिया।
- 2011 : सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई।
- 2016 : सुब्रमण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण की इजाजत मांगी।
- 2018 : सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद को लेकर दाखिल विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।
- 6 अगस्त 2019 : सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर हिंदू और मुस्लिम पक्ष की अपीलों पर सुनवाई शुरू की।
- 16 अक्टूबर 2019 : सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई पूरी हुई।
6 अगस्त से 16 अक्टूबर तक इस मामले पर 40 दिनसुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।संविधान पीठ द्वारा शनिवार को45 मिनट तक पढ़े गए 1045 पन्नों के फैसले ने देश के इतिहास के सबसे अहम और एक सदी से ज्यादा पुराने विवाद का अंत कर दिया। चीफ जस्टिस गोगोई, जस्टिस एसए बोबोडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एस अब्दुल नजीर की पीठ ने स्पष्ट किया कि मंदिर को अहम स्थान पर ही बनाया जाए। रामलला विराजमान को दी गई विवादित जमीन का स्वामित्व केंद्र सरकार के रिसीवर के पास रहेगा।
फैसले के मुख्य बिंदु
रामलला विराजमान/मंदिर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा- राम जन्मभूमि स्थान न्यायिक व्यक्ति नहीं है, जबकि भगवान राम न्यायिक व्यक्ति हो सकते हैं। ढहाया गया ढांचा ही भगवान राम का जन्मस्थान है, हिंदुओं की यह आस्था निर्विवादित है। विवादित 2.77 एकड़ जमीन रामलला विराजमान को दी जाए। इसका स्वामित्व केंद्र सरकार के रिसीवर के पास रहेगा। 3 महीने के भीतर ट्रस्ट का गठन कर मंदिर निर्माण की योजना बनाई जाए।
सुन्नी वक्फ बोर्ड अदालत ने कहा- उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड विवादित जमीन पर अपना दावा साबित करने में विफल रहा। मस्जिद में इबादत में व्यवधान के बावजूद साक्ष्य यह बताते हैं कि प्रार्थना पूरी तरह से कभी बंद नहीं हुई। मुस्लिमों ने ऐसा कोई साक्ष्य पेश नहीं किया, जो यह दर्शाता हो कि वे 1857 से पहले मस्जिद पर पूरा अधिकार रखते थे।
बाबरी मस्जिद सुप्रीम कोर्ट ने कहा- “मीर बकी ने बाबरी मस्जिद बनवाई। धर्मशास्त्र में प्रवेश करना अदालत के लिए उचित नहीं होगा। बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनाई गई थी। मस्जिद के नीचे जो ढांचा था, वह इस्लामिक ढांचा नहीं था।”
बाबरी विध्वंस सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह एकदम स्पष्ट है कि 16वीं शताब्दी का तीन गुंबदों वाला ढांचा हिंदू कारसेवकों ने ढहाया था, जो वहां राम मंदिर बनाना चाहते थे। यह ऐसी गलती थी, जिसे सुधारा जाना चाहिए था।
नई मस्जिद सुप्रीम कोर्ट ने कहा- अदालत अगर उन मुस्लिमों के दावे को नजरंदाज कर देती है, जिन्हें मस्जिद के ढांचे से पृथक कर दिया गया तो न्याय की जीत नहीं होगी। इसे कानून के हिसाब से चलने के लिए प्रतिबद्ध धर्मनिरपेक्ष देश में लागू नहीं किया जा सकता। गलती को सुधारने के लिए केंद्र पवित्र अयोध्या की अहम जगह पर मस्जिद के निर्माण के लिए 5 एकड़ जमीन दे।
धर्म और आस्था सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “अदालत को धर्म और श्रद्धालुओं की आस्था को स्वीकार करना चाहिए। अदालत को संतुलन बनाए रखना चाहिए। हिंदू इस स्थान को भगवान राम का जन्मस्थान मानते हैं। मुस्लिम भी विवादित जगह के बारे में यही कहते हैं। प्राचीन यात्रियों द्वारा लिखी किताबें और प्राचीन ग्रंथ दर्शाते हैं कि अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि रही है। ऐतिहासिक उद्धहरणों से संकेत मिलते हैं कि हिंदुओं की आस्था में अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि रही है।”
एएसआई की रिपोर्ट
कहा, “मस्जिद के नीचे जो ढांचा था, वह इस्लामिक ढांचा नहीं था। ढहाए गए ढांचे के नीचे एक मंदिर था, इस तथ्य की पुष्टि आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) कर चुका है। पुरातात्विक प्रमाणों को महज एक ओपिनियन करार दे देना एएसआई का अपमान होगा। हालांकि, एएसआई ने यह तथ्य स्थापित नहीं किया कि मंदिर को गिराकर मस्जिद बनाई गई।’
निर्णय के संकेतक सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “सीता रसोई, राम चबूतरा और भंडार गृह की मौजूदगी इस स्थान की धार्मिक वास्तविक स्थिति है
अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर निर्माण की शुभ घड़ी बस कुछ घण्टे ही दूर है. भारत ही नहीं दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले भारतीयों को भी उस पल का इंतजार है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संतो के सानिध्य में श्रीराम मंदिर के लिए भूमि पूजन करेंगे. पीएम मोदी अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा करेंगे. ये 84 कोसी परिक्रमा होगी अयोध्या के विकास से जुड़ी हुई है. 5 अगस्त से ही योगी आदित्यनाथ के रामराज्य की भी शुरुआत होगी.
कल्याणकारी अग्नि और प्रकाश। राम ऋषि संस्कृति के प्रतीक पुरुष हैं। भारतीय संस्कृति ऋषि-संस्कृति तथा कृषि-संस्कृति का सम्मिलित स्वरूप हैं।
श्री राम का अर्थ त्रिलोकी को आनँद देने वाले हैं
और रावण का अर्थ त्रिलोकी को रुलाने वाला है
इस लिये इस दुरात्मा का वध करने के लिये स्वयं आदिपुरुष विष्णु तत्त्व ही श्री राम के स्वरूप में अवतरित होते हैं इस लिये श्री राम एक रावण को मारने वाले जो ईश्वर हैं वे श्री राम हैं
रावणस्य मरणं ते राम :
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥
श्रीरामाष्टक
हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा।
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा॥
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते।
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्॥
एक श्लोकी रामायण
आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम्।
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीवसम्भाषणम्॥
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम्।
पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि श्री रामायणम्॥
आप समस्त सनातन धर्मावलम्बी हिन्दुओ को अनन्तानन्त मङ्गलमय बधाई शुभकामनाएं।
श्रीरामजयरामजयजयराम
भगवान् श्रीमन्ननारायण सबका मङ्गल करें ।
रविशराय गौड़
ज्योतिर्विद
अध्यात्मचिन्तक