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जगन्नाथ पुरी, बनारस और उज्जैन में कृष्ण जन्माष्टमी 11 अगस्त, मथुरा एवं शेष भारत में जन्माष्टमी 12 को

जगन्नाथ पुरी, बनारस और उज्जैन में कृष्ण जन्माष्टमी 11 अगस्त को मनाई जाएगी. क्योंकि 11 अगस्त से अष्टमी तिथि आरंभ होगी मथुरा एवं शेष भारत में जन्माष्टमी 12 को होगी

मथुरा और द्वारिका में जन्माष्टमी 12 अगस्त के दिन ही मनाई जाएगी. अधिकतर स्थानों पर 12 अगस्त को ही जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाएगा. इस 43 मिनट का पूजा का मुहूर्त है. जो रात्रि 12 बजकर 05 मिनट से 12 बजकर 48 मिनट तक रहेगा. इस मुहूर्त में श्रीकृष्ण जन्म की पूजा कर सकते हैं. यानि कृष्ण जन्मोत्सव का पर्व 12-13 अगस्त की रात में मनाया जाएगा.
12 अगस्त को वृद्धि योग है

जन्माष्टमी का पर्व 12 अगस्त को है. इस बार जन्माष्टमी का पर्व बेहद विशेष है. पंचांग के अनुसार इस दिन वृद्धि योग का निर्माण हो रहा है.

श्री कृष्ण का जन्मोत्सव के लिए तैयारियां तेज हो गई हैं। हालांकि इस बार कोरोना वायरस महामारी के कारण मंदिरों में बड़े आयोजन नहीं होगे।11 अगस्त और 12 अगस्त दोनों दिन जन्माष्टमी मनाई जा रही है। हिंदू धर्म मान्यताओं के अनुसार, भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को ही श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। जन्माष्टमी के दिन लोग भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उपवास रखने के साथ ही भजन-कीर्तन और विधि-विधान से पूजा करते हैं।  ज्योतिषियों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के जन्म के समय  रात 12 बजे अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र था।
इसलिए इसी नक्षत्र और तिथि में जन्माष्टमी मनाई जाती है। इस बार 11 अगस्त को जन्माष्टमी तिथि सुबह लग जाएगी, जो 12 अगस्त को सुबह 11 बजे रहेगी, वहीं रोहिणी नक्षत्र 13 अगस्त को लग रहा है। ऐसे में सभी कंफ्यूज हैं कि 11 को पूजा औऱ व्रत करें या फिर 12 को। कई ज्योतिषियों ने इसके लिए बताया कि जब उदया तिथि हो यानी जिस तिथि में सूर्योदय हो रहा हो, उस तिथि को ही जन्माष्टमी मनाई जाती है। इसलिए इस बार ज्योतिषियों के अनुसार जन्माष्टमी का दान 11 अगस्त को और 12 अगस्त को पूजा और व्रत रखा जा सकता है। 

श्री कृष्ण तत्व ज्ञान का स्त्रोत है, ज्ञान का सागर है। भगवान सर्वशक्तिमान है। हम अपनी कोशिशों प्रयासों से जान नहीं सकते। हमारी जितनी भी साधना, उनको जानने, प्रसन्न करने के लिए ही होनी चाहिए।

‘कृष्ण’ शब्द अपने आपमें इतनी आध्यात्मिक व अनूठी यौगिक ऊर्जा से निर्मित है कि जीवन में जब-जब कृष्ण-तत्व अनुपस्थित होता है, तब-तब व्यक्ति निस्तेज होकर अपने पराभव को प्राप्त होता है। कृष्ण जीवन के प्रत्येक आयाम को समग्रता से स्वीकार करते हैं, इसलिए वह दुख के महासागर में भी नाचते-गाते और प्रफुल्लित दिखाई देते हैं।

चेतना को जगाने का उत्सव है कृष्ण जन्मोत्स

परमपुरुष गीता में स्वयं कहते हैं, ‘मैं अव्यक्त हूं, अजन्मा हूं।’ इसलिए जन्माष्टमी का उत्सव स्वयं के भीतर भी कृष्णजन्मोत्सव मनाने का ढंग यानी कृष्ण-चेतना को जगाने का उत्सव है। जब साधना से हमारे षड़विकार- काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर और अहंकार जड़मूल से नष्ट हो जाते हैं, तब हमारे भीतर कृष्ण-चेतना प्रस्फुटित होती है। श्रीकृष्ण की समस्त लीलाएं हमारा मार्गदर्शन करती हुई जीवन की विषमताओं से सामंजस्य स्थापित करना सिखाती हैं कि हमें अनाचारी व्यवस्था का लोकतांत्रिक ढंग से विरोध करना भी आना चाहिए।

12 अगस्त को पूजा का शुभ समय रात 12 बजकर 5 मिनट से लेकर 12 बजकर 47 मिनट तक है। पूजा की अवधि 43 मिनट तक रहेगी। जन्माष्टमी पर इस बार वृद्धि संयोग बन रहा है, जो अति उत्तम हैं।

श्रीमद भगवत के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था, ऐसे में ज्योतिष गणना कहती है कि जन्माष्टमी पर अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र होना चाहिए।

जानिए क्यों आ रहा तारीखों में भेद-

पुराणों के अनुसार, जन्माष्टमी का त्योहार भाद्रपद माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में मनाया जाता है। कई बार ग्रहों की चाल के चलते यह तिथि और रोहिणी नक्षत्र एक नहीं हो पाते।

जन्माष्टमी के दिन कृतिका नक्षत्र रहेगा। इसके अलावा इस दिन चंद्रमा मेष राशि में और सूर्य कर्क राशि में रहेगा। जिसके कारण वृद्धि योग भी होगा। 12 अगस्त को पूजा का शुभ समय रात 12 बजकर 5 मिनट से लेकर 12 बजकर 47 मिनट तक है। पूजा की अवधि 43 मिनट तक रहेगी।
जानिए कैसे करें पूजा-

  • चौकी में लाल वस्त्र बिछाएं और भगवान कृष्ण के बालस्वरूप को पात्र में रखें।
  • फिर लड्डू गोपाल को पंचामृत और गंगाजल से स्नान करवाएं।
  • भगवान को नए वस्त्र पहनाएं।
  • अब भगवान को रोली और अक्षत से तिलक करें।
  • अब लड्डू गोपाल को माखन मिश्री का भोग लगाएं। श्रीकृष्ण को तुलसी का पत्ता भी अर्पित करें।
  • भोग के बाद श्रीकृष्ण को गंगाजल भी अर्पित करें।
  • अब हाथ जोड़कर अपने अराध्य देव का ध्यान लगाएं।

कृष्णप्रेममयी राधा राधाप्रेममयो हरिः। कृष्णस्य द्रविणं राधा राधायाः द्रविणं हरिः। वृन्दावनेश्वरी राधा कृष्णो वृन्दावनेश्वरः।

भगवान कृष्ण अपने माथे पर हमेशा मोरपंख धारण करते हैं। मोरपंख उनके माथे की शोभा बढ़ाता है, यह उनके शृंगार में भी शामिल है। इसलिए भगवान कृष्ण को मोरपंख बेहद प्रिय हैं जन्माष्टमी के दिन कृष्ण जी को मोरपंख अवश्य अर्पित करें।

कृष्ण जी को बांसुरी बेहद प्रिय है। उनकी बांसुरी का धुन सुनने के लिए गोपियां सारे कार्य छोड़कर चली आती थी। कृष्ण जी का चित्रण भी बांसुरी के बिना अधूरा रहता है। जन्माष्टमी के दिन कृष्ण जी को चांदी का बांसुरी अर्पित करनी चाहिए। और पूजा के बाद इस बांसुरी को अपने पर्स या पैसे रखने के स्थान पर रख दें।

“वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् । देवकीपरमानन्दं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् ।।”

“वंशी विभूषित करा नवनीर दाभात् ,
पीताम्बरा दरुण बिंब फला धरोष्ठात् ।
पूर्णेन्दु सुन्दर मुखादर बिंदु नेत्रात् ,
कृष्णात परम किमपि तत्व अहं न जानि ।।

“ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणत क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम:।।”

“ॐ नमो ब्रह्मण्य देवाय गो ब्राह्मण हिताय च, जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नमः।।”

“मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम् । यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्दमाधवम्।।”

“कस्तुरी तिलकम् ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम् ,
नासाग्रे वरमौक्तिकम् करतले, वेणु करे कंकणम् ।
सर्वांगे हरिचन्दनम् सुललितम्, कंठे च मुक्तावलि ।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी ।।”

“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।।”

रविशराय गौड़
ज्योतिर्विद
अध्यात्मचिन्तक

एन सी आर खबर ब्यूरो

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