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नाग पंचमी पर्व , सुख , शांति , ओर समृद्धि का है शुभ सयोंग – रविशराय गौड़

नाग पंचमी का मुहूर्त

पंचमी तिथि प्रारंभ – 14:33 (24 जुलाई 2020)
पंचमी तिथि समाप्ति – 12:01 (25 जुलाई 2020)  
नाग पंचमी पूजा मुहूर्त – 05:38:42 बजे से 08:22:11 बजे तक
अवधि – 2 घंटे 43 मिनट

 नाग पंचमी का बहुत अधिक महत्व माना जाता है। जो इस बार 25 जुलाई को शनिवार के दिन है। इस दिन उत्तरा फाल्गुनी और हस्त नक्षत्र होने से चंद्रमा की स्थिति कन्या राशिगत है। परिघ और शिव नामक योग होने से नाग पूजन के लिए यह दिन श्रेष्ठ माना जा रहा है। इस दिन नाग देवता की पूजा की जाती है और सर्पों को दूध पिलाने की भी परंपरा है। यह पर्व श्रावण मास की शुक्ल पक्ष पंचमी को मनाया जाता है।

नाग पंचमी का महत्व:

 मान्यता है कि इस दिन सर्पों को अर्पित किया जाने वाला पूजन नाग देवताओं के समक्ष पहुंच जाता है। सनातन वैदिक हिंदू धर्म में सर्पों को पूजनीय माना गया है। नाग को भगवान शिव के गले का हार और भगवान विष्णु की शैय्या कहा गया है। ऐसे में माना नाग की पूजा करने से कहते हैं भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों प्रसन्न होते हैं। नाग पञ्चमी पूजन के समय बारह नागों की पूजा की जाती है।
अनन्त, वासुकि, शेष, पद्म, कम्बल, कर्कोटक, अश्वतर, धृतराष्ट्र, शङ्खपाल, कालिया, तक्षक, पिङ्गल।

नाग पंचमी पूजा मन्त्र:

सर्वे नागाः प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले।
ये च हेलिमरीचिस्था येऽन्तरे दिवि संस्थिताः॥
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिनः।
ये च वापीतडगेषु तेषु सर्वेषु वै नमः॥

नागों के बारे में

शेषनाग- माना जाता है कि धरती इनके फन पर टिकी है।
वासुकी- समुद्रमंथन के समय वासुकी नाग की रस्सी बनाई गई थी।
तक्षक- महाभारत के बाद राजा परीक्षित को डसने वाला।
कर्कोटक- भगवान शिव के एक गण के रूप में इनकी पूजा की जाती है।

नाग पंचमी पर आठ नाग देवताओं की पूजा का विधान है। इनमें वासुकि, तक्षक, कालिया, मणिभद्रक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, कार्कोटक और धनंजय नामक अष्टनाग आते हैं। इनकी पूजा से भक्तों को भय से मुक्ति मिलती है। भविष्योत्तर पुराण में इस संबंध में एक श्लोक लिखा है। जो इस प्रकार है –

वासुकिः तक्षकश्चैव कालियो मणिभद्रकः।
ऐरावतो धृतराष्ट्रः कार्कोटकधनंजयौ ॥
एतेऽभयं प्रयच्छन्ति प्राणिनां प्राणजीविनाम् ॥

नाग पंचमी की कथा, नाग मन्त्र एवम् स्तोत्र

नागपंचमी का पौराणिक कथा एवं इतिहास : सत्य सनातन धर्म (आज के हिन्दू) ग्रन्थों व पुराणों के अनुसार, राक्षसों और देवताओं में संधि के उपरांत दोनों ने मिलकर समुद्र मंथन किया । इस मंथन से अनेकों तत्व सहित अत्यन्त श्वेत उच्चैःश्रवा नमक  एक अश्व भी निकला। जिसे देखकर नाग माता कदू्र अपनी सौतन विनता को बोली की देखो, यह अश्व सफेद है, परन्तु इसके बाल काले दिखाई पड़ते हैं। विनता ने कहा  नहीं, न तो यह अश्व श्वेत रंग का है न ही काला। इतना सुनकर कदू्र ने बोली आप मेरे साथ चाहो तो शर्त लगा लो जो भी शर्त हारेगी वो दूसरे की दासी बन होगी ।
विनता सत्य बोल रही थी अतएव उसने शर्त स्वीकार कर ली। तदोपरांत दोनों अपने स्थान पर चली गईं। उधर कदू्र ने अपने पुत्र नागों को बुला कर और सारा वृतान्त सुनाया और बोली कि आप सभी सूक्ष्म रूप के होकर इस अश्व से चिपक जाओ जिससे  मैं शर्त जीतकर विनता को दासी बना सकूं। अपनी माता के कथन सुनकर नागों ने बोला – मां हम आपका साथ नहीं दे सकते चाहे आप शर्त जीतो या हारो, परन्तु हम इस प्रकार छल नहीं करेंगे।

कदू्र ने कहा- तुमने मेरी बात नहीं मानी ? इसका दंड झेलने के लिए तैयार रहो मैं तुम्हें श्राप दे रही हूँ कि ‘पांडवों के वंशज  जनमेजय द्वारा जब सर्प यज्ञ किया जायेगा, तब तुम सब उस हवन अग्नि जल जाओगे। माता का श्राप सुन सभी घबरा गए  और बासुकि नाग को साथ लेकर ब्रह्म लोक  ब्रह्मा जी के पास गए और आप बीती घटना कह सुनाई। ब्रह्मा जी ने बोले – चिन्ता न करो, यायावर वंश में एक तपस्वी जरतकारु नामक ब्राह्मण का जन्म होगा। उसके साथ तुम्हारी बहन का विवाह होगा। उन दोनों के घर आस्तिक नमक विख्यात पुत्र जन्म लेगा, वह जनमेजय द्वारा सर्प यज्ञ को रोक कर तुम्हारी रक्षा करेगा।

ब्रह्मा जी ने श्रावण शुक्ल पंचमी पंचमी के दिन ये वरदान  दिया था तथा आस्तिक मुनि ने भी उक्त कथानुसार  पंचमी को ही इन नागों की रक्षा की थी। इस लिए  तब से नागपंचमी की तिथि नाग वंश को अत्यन्त प्रिय है। कहते हैं जो लोग श्रावण शुक्ल पंचमी को व्रत कर नागों की पूजा करते हैं । बारह मास तक चतुर्थी तिथि को एक बार भोजन कर पंचमी को व्रत करते हैं जिस यज्ञ विधान से जनमेजय अपने पिता परीक्षित के लिए यज्ञ  किया था।

जो कोई नाग पंचमी के दिन श्रद्धापूर्वक यह व्रत करता है उसे शुभफल सहित सर्प भय दूर हो जाता है । यह भी माना जाता है की इस दिन नागों को दूध से स्नान-पान कराने  नाग देव अभय दान देते हैं ।उनके परिवार में सर्पभय दूर हो जाता है। ऐसे जातक पर से वर्तमान में  कालसर्पयोग भी क्षीण हो जाता है।

।।श्री सर्प सूक्तम।।

  • ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा शेषनाग परोगमा:। नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।1।।
  • इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासु‍कि प्रमुखाद्य:।
    नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।2।।
  • कद्रवेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।
    नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।3।।
  • इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखाद्य।
    नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।4।।
  • सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।
    नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।5।।
  • मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखाद्य।
    नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।6।।
  • पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।
    नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।7।।
  • सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।
    नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।8।।
  • ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पप्रचरन्ति।
    नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।9।।
  • समुद्रतीरे ये सर्पाये सर्पा जंलवासिन:।
    नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।10।।
  • रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
    नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।11।।

l नवनाग स्तोत्र ll

अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलं
शन्खपालं ध्रूतराष्ट्रं च तक्षकं कालियं तथा
एतानि नव नामानि नागानाम च महात्मनं
सायमकाले पठेन्नीत्यं प्रातक्काले विशेषतः
तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत

ll इति श्री नवनाग स्त्रोत्रं सम्पूर्णं ll

एक ओर अति विशिष्ट मन्त्र हैं

मुनि राजम अस्तिकम नमः”

नाग गायत्री मंत्र :-

ॐ नव कुलाय विध्महे विषदन्ताय धीमहि
तन्नो सर्प: प्रचोदयात ll

नाग देवता कृपा प्राप्ति मंत्र :-

‘सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले।
ये च हेलिमरीचिस्था ये न्तरे दिवि संस्थिता:।।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:।
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।’

अर्थात् – संपूर्ण आकाश, पृथ्वी, स्वर्ग, सरोवर-तालाबों, नल-कूप, सूर्य किरणें आदि जहां-जहां भी नाग देवता विराजमान है। वे सभी हमारे दुखों को दूर करके हमें सुख-शांतिपूर्वक जीवन दें। उन सभी को हमारी ओर से बारंबार प्रणाम।

अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्.
शङ्ख पालं धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा॥
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्.
सायङ्काले पठेन्नित्यं प्रातःकाले विशेषतः.
तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्॥

मन्त्र अर्थ – नौ नाग देवताओं के नाम अनन्त, वासुकी, शेष, पद्मनाभ, कम्बल, शङ्खपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक तथा कालिया हैं. यदि प्रतिदिन प्रातःकाल नियमित रूप से इनका जप किया जाता है, तो नाग देवता आपको समस्त पापों से सुरक्षित रखेंगे तथा आपको जीवन में विजयी बनायेंगे।

भविष्य पुराण में की कथा के अनुसार आस्तिक मुनि ने नागवंश की रक्षा की थी। प्रसन्न होकर नाग देव ने वरदान दिया कि जो भी आपक नाम लेगा या जहां भी आपना नाम लिखा होगा वहां पर सर्पजाति का कोई प्राणी नहीं आएगा। इसलिए अगर हर दिन नहीं हो सके तो नागपंचमी के दिन राजा आस्ति का ध्यान करते हुए यह मंत्र बोले।

मुनि राजम अस्तिकम नमः”

नाग गायत्री मंत्र

 ‘ॐ नवकुलाय विद्यमहे विषदंताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात्’ 

नाग पंचमी की पूजा के मंत्र

“ऊँ कुरुकुल्ये हुं फट स्वाहा”

सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले।
ये च हेलिमरीचिस्था ये न्तरे दिवि संस्थिता:।।

ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:।
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।’

नागपंचमी के दिन इस मंत्र से नाग देवता का ध्यान करना चाहिए।

अगर आप इस मंत्र का जप करने में कठिनाई हो तो यह उच्चारण करे

जो नाग पृथ्वी में, आकाश में, स्वर्ग में, सूर्य की किरणों में, सरोवरों में, वापी में, कूप, तालाब में रहते हैं उन सभी को मेरा नमस्कार है।
इस मंत्र को बोलने के साथ ही नागपंचमी के दिन नींबू और नीम के पत्ते चबना चाहिए।

प्राचीनकाल में लोग हिमालय के आसपास ही रहते थे। वेद और महाभारत पढ़ने पर हमें पता चलता है कि आदिकाल में प्रमुख रूप से ये जातियां थीं- देव, दैत्य, दानव, राक्षस, यक्ष, गंधर्व, भल्ल, वसु, अप्सराएं, पिशाच, सिद्ध, मरुदगण, किन्नर, चारण, भाट, किरात, रीछ, नाग, विद्‍याधर, मानव, वानर आदि। इनमें से कुछ जातियां आलौकिक शक्तियों से संपन्न होती थी। नाग जाति भी आलौकिक जातियों में से एक थी। नागों में सबसे महत्वपूर्ण नाग शेषनाग थे।

शेषनाग क्या हजार फन वाले सांप थे या कि मनुष्य? यह शोध का विषय हो सकता है। हालांकि कई जगहों पर उन्हें एक पुरुष के रूप में भी चित्रित किया गया है। यह भी कहते हैं कि उनके मुख्यत: हजार भाई थे। यह भी कहते हैं कि वे अपनी इच्छा से नाग का रूप धारण करने की क्षमता रखते थे।

कौन थे शेषनाग?

शेषनाग के बारे में कहा जाता है कि इन्हीं के फन पर धरती टिकी हुई है। धरती टिटी हुई होने का मतलब संपूर्ण धरती नहीं। दरअसल समुद्र के अंदर से प्रकट हुई एक महाद्वीप वाली धरती पूर्वाकाल में शेषनाग की तरह ही थी। दूसरी ओर नाग मूलत: पाताल लोक में ही रहते हैं। चित्रों में अक्सर हिंदू देवता भगवान विष्णु को शेषनाग पर लेटे हुए चित्रित किया गया है। दरअसल, शेषनाग भगवान विष्णु के सेवक हैं। मान्यता है कि शेषनाग के हजार मस्तक हैं। इनका कही अंत नहीं है इसीलिए इन्हें ‘अनंत’ भी कहा गया है।

शेष को ही अनंत कहा जाता है जो कश्यप ऋषि की पत्नीं कद्रू के बेटों में सबसे पराक्रमी और प्रथम नागराज थे। कश्मीर के अनंतनाग जिला इनका गढ़ था। ऋषि कश्यप की पत्नीं कद्रू के हजारों पुत्रों में सबसे बड़े और सबसे पराक्रमी शेष नाग ही थे। उनकी सांसारिक विरक्त का कारण उनकी मां, भाई और उनकी सौतेली माना विनता और गरूढ़ थे जिनमें आपसी द्वेष था। उन्होंने अपनी छली छली मां और भाइयों का साथ छोड़कर गंधमादन पर्वत पर तपस्या करने को ही श्रेष्ठ माना। ब्रह्मा ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया और उन्हें पाताल लोक का राजा बान दिया। इसके साथ ही उन्होंने भगवान विष्णु का सेवक बनना ही अपना सबसे बड़ा पुण्य समझा। शेषनाग के पृथ्‍वी के नीचे जाते ही अर्थात जललोक में जाते ही उनके स्थान पर उनके छोटे भाई, वासुकि का राज्यतिलक कर दिया गया।

  1. वासुकि : शेषनाग के भाई वासुकि को भगवान शिव के सेवक थे। नागों के दूसरे राजा वासुकि का इलाका कैलाश पर्वत के आसपास का क्षेत्र था। पुराणों अनुसार वासुकि नाग अत्यंत ही विशाल और लंबे शरीर वाले माने जाते हैं। समुद्र मंथन के दौरान देव और दानवों ने मंदराचल पर्वत को मथनी तथा वासुकी को ही नेती (रस्सी) बनाया था। त्रिपुरदाह के समय वह शिव के धनुष की डोर बने थे।
    वासुकि को भविष्य ज्ञात था कि आने वाले समय में नागकुल का नाश किया जाएगा। ऐसे में उन्होंने नागवंश को बचाने के लिए उनकी बहन का विवाह जरत्कारू से कर दिया था क्योंकि वे जानते थे कि उनका पुत्र ही नागों के वंश को बचा सकता है। जरत्कारु के पुत्र आस्तीक ने जनमेजय के नागयज्ञ के समय सर्पों की रक्षा की थी।
  1. तक्षक : आठ प्रमुख नागों में से एक कद्रू के पुत्र तक्षक भी पाताल में निवास करते हैं। पाश्चात्य इतिहासकारों के अनुसार तक्षक नाम की एक जाति थी जिसका जातीय चिन्ह सर्प था। उनका राजा परीक्षित के साथ भयंकर युद्ध हुआ था। जिसमें परीक्षित मारे गए थे। तब उनके पुत्र जनमेजय ने तक्षकों के साथ युद्ध कर उन्हें परास्त कर दिया था। हालांकि पुराणकारों ने नागों के इतिहास को मिथक बनाकर उन्हें नाग ही घोषित कर दिया।
  2. तक्षक ने शमीक मुनि के शाप के आधार पर राजा परीक्षित को डंसा लिया था। उसके बाद राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने नाग जाति का नाश करने के लिए नाग यज्ञ करवाया था। वेबदुनिया के शोधानुसार तक्षक का राज तक्षशिला में था। समुद्र के भीतर तक्षक नाम का एक नाग पाया जाता है जिसकी लंबाई लगभग 22 फुट की होती है और वह इतनी तेज गति से चलता है कि उसे कैमरे में कैद कर पाना मुश्‍किल है। यह सबसे भयानक सर्प होता है।
  3. कर्कोटक : कर्कोटक और ऐरावत नाग कुल का इलाका पंजाब की इरावती नदी के आसपास का माना जाता है। कर्कोटक शिव के एक गण और नागों के राजा थे। नारद के शाप से वे एक अग्नि में पड़े थे, लेकिन नल ने उन्हें बचाया और कर्कोटक ने नल को ही डस लिया, जिससे राजा नल का रंग काला पड़ गया। लेकिन यह भी एक शाप के चलते ही हुआ तब राजा नल को कर्कोटक वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गए।
    शिवजी की स्तुति के कारण कर्कोटक जनमेजय के नाग यज्ञ से बच निकले थे और उज्जैन में उन्होंने शिव की घोर तपस्या की थी। कर्कोटेश्वर का एक प्राचीन उपेक्षित मंदिर आज भी चौबीस खम्भा देवी के पास कोट मोहल्ले में है। हालांकि वर्तमान में कर्कोटेश्वर मंदिर माता हरसिद्धि के प्रांगण में है।
  4. पद्म : पद्म नागों का गोमती नदी के पास के नेमिश नामक क्षेत्र पर शासन था। बाद में ये मणिपुर में बस गए थे। असम के नागावंशी इन्हीं के वंश से है।
    दरअसल, जनमेजय के नाग यज्ञ से भयभीत होकर शेषनाग हिमालय पर, कम्बल नाग ब्रह्माजी के लोक में, शंखचूड़ मणिपुर राज्य में, कालिया नाग यमुना में, धृतराष्ट्र नाग प्रयाग में, एलापत्र ब्रह्मलोक में, कर्कोटक
    महाकाल वन और अन्य कुरुक्षेत्र में तप करने चले गए थे।
    उपरोक्त के अलावा महापद्म, शंख, कुलिक, नल, कवर्धा, फणि-नाग, भोगिन, सदाचंद्र, धनधर्मा, भूतनंदि, शिशुनंदि या यशनंदि तनक, तुश्त, ऐरावत, धृतराष्ट्र, अहि, मणिभद्र, अलापत्र, कम्बल, अंशतर, धनंजय, कालिया, सौंफू, दौद्धिया, काली, तखतू, धूमल, फाहल, काना, गुलिका, सरकोटा इत्यादी नाम के नाग वंश मिलते हैं।
    कुछ पुराणों अनुसार नागों के प्रमुख पांच कुल थे- अनंत, वासुकी, तक्षक, कर्कोटक और पिंगला। कुछ पुराणों के अनुसार नागों के अष्टकुल क्रमश: इस प्रकार हैं:- वासुकी, तक्षक, कुलक, कर्कोटक, पद्म, शंख, चूड़, महापद्म और धनंजय।
    अग्निपुराण में 80 प्रकार के नाग कुलों का वर्णन है, जिसमें वासुकी, तक्षक, पद्म, महापद्म प्रसिद्ध हैं। रविशराय गौड़ के अनुसार नागों का पृथक नागलोक पुराणों में बताया गया है। अनादिकाल से ही नागों का अस्तित्व देवी-देवताओं के साथ वर्णित है। जैन, बौद्ध देवताओं के सिर पर भी शेष छत्र होता है। असम, नागालैंड, मणिपुर, केरल और आंध्रप्रदेश में नागा जातियों का वर्चस्व रहा है।

रविशराय गौड़
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एन सी आर खबर ब्यूरो

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