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रविवार विशेष : 2020 में 6 ग्रहण, 6 वक्रीग्रह और नवग्रह राशियों का बदलाब दे रहा बड़ी तबाही का इशारा,क्यूँ आयेगे भूकंप ओर बनेगी विनाशकारी विश्व युद्ध की परिस्थितियां-जानिये रविशराय गौड़ से

दिल्ली और एनसीआर में लगातार भूकंप के झटके महसूस किए जा रहे हैं इस बार एनसीआर खबर के ज्योतिषी रविश राय गौड़ ने बताया बताया है कि 6 वक्री ग्रह और नवग्रह राशियों में जो बदलाव इन दिनों हो रहा है उनके चलते शनि और मंगल के अद्भुत योग के चलते हुए भूकंप आ रहे हैं जिस में आने वाले दिनों में बड़ी तबाही भी हो सकती है हो सकती है । ऐसे में हमने ज्योतिष और ऐतिहासिक घटनाओं के मिश्रण से आज भूकंप से संबंधित सभी जानकारियों को एकत्रित किया है

ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की चाल के आधार पर भूकंप का आकलन किया जाता है। तिथि व ग्रहों से बनने वाले योग यह संकेत देते हैं कि भूकंप कब आ सकता है।

पृथ्वी पर भूकंप क्यों आते हैं? विज्ञान की हर शाखा का इस संबंध में अलग मत है। मुख्य रूप से भूगर्भीय हलचल को भूकंप का कारण माना जाता है।विगत वर्षों में कुछ दिनों के अंतराल के बाद लगातार भूकंप के झटके आ रहे हैं।

ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की चाल के आधार पर भूकंप का आकलन किया जाता है। तिथि व ग्रहों से बनने वाले योग यह संकेत देते हैं कि भूकंप कब आ सकता है। भूकंप का मुख्य कारण भूगर्भीय हलचल है लेकिन भूगर्भीय पदार्थों पर ग्रहों की किरणों का प्रभाव भी होता है। कालांतर में यह बड़े भूकंप के रूप सामने आ सकता है।

वर्ष 2016 में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और उत्तर भारत में कई बार भूकंप से धरती कांपी है। कि 20 फरवरी को वृश्चिक राशि में मंगल का प्रवेश हुआ है और 18 सितंबर तक यह वहीं रहेगा। जिस साल मंगल एक राशि में 6 महीने तक रुकता है, यदि उस वर्ष वह शनि से स्थिति अथवा युति द्वारा कोई योग बना ले तो बड़े भूकंपों और युद्धों से जन-धन की भारी क्षति होती है।

मेदिनी ज्योतिष के अनुसार यदि मंगल की दृष्टि ग्रहण की राशि पर पड़ रही हो तो उस वर्ष बड़े युद्ध, अकाल और भूकंपों से भारी क्षति पहुंचती है। इस साल ये सभी योग एकसाथ घटित हो रहे हैं। मंगल वृश्चिक राशि में 6 माह के समय तक शनि के साथ युति करेंगे। 9 मार्च को हुए सूर्यग्रहण की राशि कुम्भ पर मंगल की दृष्टि 5 महीनों तक रहेगी जो कि एक बड़े भूकंप और युद्ध का योग है

महर्षि गर्ग संहिता के अनुसार अमावस्या और पूर्णिमा के आसपास अधिकतर भूकंप आते हैं। यदि उस समय सूर्य या चंद्र ग्रहण भी हो तो बड़े भूकंपों की संभावना अधिक बनती है।

जून का महीना काफी गतिशील और ऊर्जा से भरा रहने वाला है क्योंकि इस माह में हम एक लंबे अंतराल के बाद आकाशीय क्षेत्र पर होने वाली एक दुर्लभ और विस्मयकारी घटना के साक्षी रहेंगे । 6 जून से 5 जुलाई 2020 तक, यानि कि महज 30 दिनों के अंदर आपकी कुंडली तीन ग्रहणों से प्रभावित रहने वाली है। इस की शुरुआत 6 जून को होने वाले चंद्र ग्रहण के साथ होगी, फिर इस कड़ी में आगे हम 21 जून को पूर्ण सूर्यग्रहण जुड़ता हुआ देखेंगे और इसका समापन 5 जुलाई को एक और चंद्र ग्रहण के साथ होगा। इसके साथ एक और महत्वपूर्ण खगोलीय घटना यह होगी कि अधिकतम ग्रह मिथुन राशि में विचरण करेंगे और छह ग्रह अपनी गति से अपनी विपरीत गति में चलते हुए प्रतीत होंगे, इसका मतलब है वो “वक्र” गति में रहेंगे, जो नतीजों की प्रक्रिया में और तेज़ी स्फूर्ति लेकर आयेगा। इस समय जानमानस में भावनाओं का अतिरेक रहेगा , इसलिए इस अवधि में कोई भी महत्व पूर्ण फैसला जैसे नौकरी में फेरबदल, शादी, किसी उच्च मूल्य की वस्तु की खरीद- बिक्री या निवेश, इनका निर्णय बहुत ही सोच-समझकर लेने की ज़रूरत रहेगी।

बिगत100 वर्षो में ग्रहों की चाल से बने ये योग, आए हैं विनाशकारी भूकंप

25 अप्रैल 2015 को नेपाल में बड़ी तीव्रता के साथ भूकंप आया था, जिसने काठमांडू और आसपास के क्षेत्र को पूरी तबाह कर दिया है।
ज्योतिष के नजरिए से जिस समय वहां भूकंप आया, उस समय पुनर्वसु नक्षत्र चल रहा था। इस नक्षत्र का स्वामी गुरु है। गुरु इस समय कर्क राशि में उच्च का है। मंगल अपनी स्वयं की राशि मेष में है। शनि-मंगल के स्वामित्व वाली राशि वृश्चिक में गोचर हो रहा है। मंगल की पूर्ण अष्टम दृष्टि शनि पर पड़ रही है। मंगल की चतुर्थ पूर्ण दृष्टि गुरु पर है। सूर्य और मंगल के साथ मेष राशि में युति बनाए हुए है।इन योगों के कारण ही 1905 से 2015 तक के 110 सालों में भूकंप आए हैं।

  • 1905 में हिमाचल प्रदेश में भूकंप आया था। इन ग्रह योगों के कारण आ सकता है भूकंप जब-जब भी भारत या भारत के आसपास के देशों में भूकंप आया है, उस समय में मंगल और शनि की एक-दूसरे पर परस्पर दृष्टि रहती है। शनि-मंगल के कारण ही भूकंप के योग बनते हैं
  • जिस दिन सूर्य, मंगल, शनि या गुरु का नक्षत्र रहता है एवं इस दिन यदि मंगल की शनि या शनि की मंगल पर दृष्टि हो, सूर्य की मंगल पर या गुरु एवं मंगल की सूर्य पर परस्पर दृष्टि हो तो भूकंप आ सकता है। 25 अप्रैल 2015 को ऐसे ही योग बने थे। 
  • भूकंप आने का एक बड़ा कारण ग्रहण भी है। कुछ दिन पहले 20 मार्च एवं 4 अप्रैल 2015 को सूर्य और चंद्र ग्रहण हुआ था। जब भी इस प्रकार दो ग्रहण एक साथ होते है, भूकंप की स्थिति निर्मित होती है। ऐसा पूर्व में भी हो चुका है।
  • अमावस्या या पूर्णिमा तिथि के आसपास की तिथियों पर भूकंप आने की संभावनाएं अधिक रहती हैं। आगे की स्लाइड्स में जानिए पिछले समय में कब-कब ऐसे योग बने हैं, जब भूकंप आया है।

भूकंप से जुड़े ज्योतिष के योग

  • जब-जब भूकंप आए हैं, उनकी तारीखों पर बनने वाले योगों का विश्लेषण करने ये बात सामने आई है कि भूकंप के समय मंगल, शनि, सूर्य एवं गुरु के नक्षत्र के साथ इन ग्रहों की परस्पर एक-दूसरे पर दृष्टि रहती है या नवांश में इन ग्रहों की एक-दूसरे पर दृष्टि रहती है। पूर्णिमा एवं अमावस्या तिथि के आसपास की तिथियों पर भूकंप आने की संभावनाएं अधिक होती हैं। इसके साथ ही सूर्य और चंद्र ग्रहण भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • भूकंप आने के सात दिन पूर्व प्रकृति भी संदेश देती है। दिन की शुरुआत में तेज वायु, दोपहर में अग्रि यानी अधिक तापमान, शाम को वर्षा एवं रात्रि में जल से भूमि कंपित होती है
  • उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, पुनर्वसु, मृगशिरा, अश्विनी ये सात नक्षत्र वायु से संबंधित हैं। यदि इनमें से किसी नक्षत्र में भूकंप के योग बनते हैं तो सात दिन पूर्व से चारों ओर धूल उड़ने लगती हैं। वृक्षों को तोड़ने वाली हवा चलती है। सूर्य मंद होता है। जनता में ज्वर एवं खांसी की पीड़ा रहती है। पुष्य, कृत्तिका, विशाखा, भरणी, मघा, पूर्वाभाद्रपद, पूर्वा फाल्गुनी, ये सात नक्षत्र अग्रि यानी तपन से संबंधित हैं। इनमें से किसी नक्षत्र में भूकंप आने के योग होते हैं तो सात दिन पूर्व आकाश लाल होता है। जंगलों में आग लगती है। ज्वर एवं पीलिया के रोगी बढ़ जाते हैं।
  • अभिजित, श्रवण, धनिष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तराषाढ़ा, अनुराधा, ये सात नक्षत्र वर्षा से संबंधित हैं। इनमें से किसी नक्षत्र में भूकंप आने की संभावना हो तो सात दिन पूर्व से ही भारी वर्षा होती है। बिजली चमकती है।
  • रेवती, पूर्वाषाढ़ा, आद्रा, अश्लेषा, मूल, उत्तराभाद्रपद, शतभिषा, ये सात नक्षत्र जल से संबंधित है। यदि इनमें से किसी नक्षत्र में भूकंप आने के योग बनते हैं तो सात दिन पूर्व से समुद्र एवं नदी के तट पर रहने वाले लोगों को रोग होते हैं। भारी वर्षा होती है। 
  • ये सभी संकेत भूकंप आने से पहले ही सूचित कर देते हैं। जहां पर पक्षी व्याकुल दिखाई दें एवं चींटियां और जमीन के अंदर रहने वाले अन्य जीव बाहर निकलने लगे, जानवर एक दिशा में लगातार देखते रहते हैं तो भूकंप आने के योग बनते हैं।
  • 4 अप्रैल 1905 को हिमाचल में आया भूकंप 4 अप्रैल 1905 को हिमाचल के कांगरा में भारी भूकंप आया था। उस समय मंगल की चतुर्थ दृष्टि शनि पर थी एवं शनि के स्वामित्व का नक्षत्र उत्तराभाद्रपद था। नवांश में सूर्य मंगल की परस्पर एक-दूसरे पर दृष्टि थी।
  • 15 जनवरी 1934 को नेपाल में भूकंप आया नेपाल में 15 जनवरी 1934 को भी भूकंप आया था। उस दिन अमावस्या तिथि थी। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र था, जिसका स्वामी सूर्य है। सूर्य, मंगल, शनि एवं बुध की युति मकर राशि में थी। नवांश में भी शनि एवं मंगल की युति थी। गुरु कन्या राशि में स्थित था। सूर्य ग्रह मंगल एवं शनि पर दृष्टि बनाए हुए था। इसी प्रकार के ही योग 25 अप्रैल 2015 को भी बने थे
  • 31 मई 1935 ब्लूचिस्तान में आया भूकंप 31 मई 1935 को वर्तमान के पाकिस्तान के ब्लूचिस्तान में भारी भूकंप आया था, जिसमें लाखों लोग मारे गए थे। उस समय सूर्य का नक्षत्र कृत्तिका था एवं नवांश में शनि की तीसरी दृष्टि सूर्य एवं मंगल पर थी। मेष राशि में सूर्य-मंगल की युति थी। लग्र कुंडली में मंगल की सप्तम पूर्ण दृष्टि सूर्य पर थी।
  • 30 सितंबर 1993 को महाराष्ट्र में आया भूकंप 30 सितंबर 1993 को महाराष्ट्र के लातूर में भारी भूकंप आया था। उस समय शनि के स्वामित्व वाला उत्तराभाद्रपद नक्षत्र था। नवांश में शनि की मंगल पर तृतीय दृष्टि थी एवं शनि वक्री था। मंगल चतुर्थ दृष्टि से ज्यादा दूर नहीं था। सूर्य एवं गुरु एक साथ कन्या राशि में स्थित थे।
    26 जनवरी 2001 को गुजरात के कच्छ में भूकंप आया था। उस दिन अमावस्या तिथि का दिन था। मंगल का नक्षत्र धनिष्ठा था एवं मंगल की अष्टम दृष्टि शनि पर थी। मंगल की चतुर्थ दृष्टि सूर्य पर और चंद्रमा पर थी। मंगल की दृष्टि गुरु पर भी थी तथा गुरु शनि की युति बनी हुई थी। इन योगों के कारण ही भूकंप आया था।
    26 दिसंबर 2004 को आई थी सुनामी 26 दिसंबर 2004 को भारत, श्रीलंका एवं मालदीव के मध्य समुद्र में भयंकर भूकंप हुआ था, जिससे सुनामी आई थी। इस भूकंप से करीब तीन लाख लोगों की जान ली थी। भारी मात्रा में आर्थिक नुकसान भी हुआ था। यह भूकंप समुद्र के अंदर आया था। मंगल के स्वामित्व वाला मृगशिरा नक्षत्र था। मंगल वृश्चिक यानी खुद की राशि मेें था। पूर्णिमा का दिन था। मंगल की अष्टम दृष्टि से वक्री शनि अधिक दूर पर नहीं था। साथ ही, नवांश में सूर्य, गुरु एवं शनि की युुति बनी हुई थी।
  • भूकंप 8 अक्टूबर 2005 को भारत के कश्मीर में भूकंप आया था। उस दिन शनि के स्वामित्व वाला अनुराधा नक्षत्र था। मंगल की चतुर्थ दृष्टि शनि पर थी। गुरु एवं मंगल परस्पर एक-दूसरे को देख रहे थे। शनि की तीसरी दृष्टि सूर्य पर थी। इस भूकंप में भी बहुत नुकसान हुआ था।

भूगर्भीय हलचलों के बढ़ने की वजह से माना जा रहा है कि आने वाले समय में किसी बड़े भूकंप का शिकार हो सकता है। हालांकि ये भूकंप कब आएगा इसकी सटीक गणना करना असम्भव है, ग्रहों की चाल ग्रहण से अनुमान लगाया जा सकता है क्योंकि भूगर्भ शास्त्री पृथ्वी के अंदर चल रही हलचलों से इस बात की सम्भावना को व्यक्त करते हैं। लेकिन ताजा आंकड़ों के बाद यही बात सामने आ रही है कि तबाही का वो दिन ज्यादा दूर नहीं है। द ग्रेट हिमालयन रेंज में यूरेशियन प्लेट व इंडियन प्लेट में टक्कर हो रही है। यूरेशियन प्लेट ऊपर है, जो इंडियन प्लेट को नीचे दबा रही है। इसमें इंडियन प्लेट के नीचे दबने से ऊर्जा के इस रिलीज का दुष्प्रभाव इस प्लेट से प्रभावित देशों में ज्यादा पड़ रहा है। भूकंप का खतरा मंडरा रहा है। माना जा रहा है कि इस बार तबाही पहले से कहीं ज्यादा होगी। इस तबाही के बारे में बस इतना ही जान लीजिए कि यदि इस तरह का भूकंप दिल्ली एवं आसपास धरती को हिलाता है तो बडा भूभाग तबाह हो जाएगा।

भूकंप का क्या करना है ?

धरती की प्लेटों के टकराने से। हमें पृथ्वी की संरचना को समझना होगा। पूरी धरती 12 टैक्टोनिक प्लेटों पर स्थित है। इसके नीचे तरल पदार्थ लावा है। ये प्लेटें इसी लावे पर तैर रही हैं और इनके टकराने से ऊर्जा निकलती है जिसे भूकंप कहते हैं।

लेकिन प्लेटें क्यों टकराती हैं ?

दरअसल ये प्लेंटे बेहद धीरे-धीरे घूमती रहती हैं। इस प्रकार ये हर साल 4-5 मिमी अपने स्थान से खिसक जाती हैं। कोई प्लेट दूसरी प्लेट के निकट जाती है तो कोई दूर हो जाती है। ऐसे में कभी-कभी ये टकरा भी जाती हैं।

प्लेटें सतह से कितनी नीचे होते हैं ?

करीब 30-50 किमी तक नीचे हैं। लेकिन यूरोप में कुछ स्थानों पर ये अपेक्षाकृत कम गहराई पर हैं।

भूंकप के केंद्र और तीव्रता का क्या मतलब है?

भूकंप का केंद्र वह स्थान होता है जिसके ठीक नीचे प्लेटों में हलचल से भूगर्भीय ऊर्जा निकलती है। इस स्थान पर भूकंप का कंपन ज्यादा होता है। कंपन की आवृत्ति ज्यों-ज्यों दूर होती जाती हैं, इसका प्रभाव कम होता जाता है। फिर भी यदि रिक्टर स्केल पर 7 या इससे अधिक की तीव्रता वाला भूकंप है तो आसपास के 40 किमी के दायरे में झटका तेज होता है। लेकिन यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि भूकंपीय आवृत्ति ऊपर की तरफ है या दायरे में। यदि कंपन की आवृत्ति ऊपर को है तो कम क्षेत्र प्रभावित होगा।

भूकंप की गहराई से क्या मतलब है?

मतलब साफ है कि हलचल कितनी गहराई पर हुई है। भूकंप की गहराई जितनी ज्यादा होगी सतह पर उसकी तीव्रता उतनी ही कम महसूस होगी।

कोरोनावायरस प्रकोप के चलते 13 अप्रैल 14 अप्रैल 10 मई 15 मई 28 ,29 मई यह तारीख है दिल्ली एवं आसपास के क्षेत्र की है इसी अवधि में उत्तर प्रदेश बिहार नेपाल आसपास के क्षेत्रों में ग्रहों के आधार पर ही भूकंप के हल्के झटके महसूस किए गए हैं इससे यह बात भी सुनिश्चित होती है कि ग्रहों के आधार का प्रभाव रहता है और भूकंप के आगमन में वातावरण का निर्माण होता है।

पौराणिक कथाओं में ऐसी मान्यता है कि पृथ्वी का भार शेषनाग उठाते हैं। यानी पृथ्वी शेष नाग के सिर पर टिका हुआ है। जब कभी शेषनाग करवट लेते हैं तो पृथ्वी हिल जाती है।

वैज्ञानिकों की अपनी समझ है, लेकिन भारत सहित दुनियाभर में इसको लेकर कई पौराणिक कथाएं भी खूब चर्चित है। भारत में यह मान्यता काफी प्रचलित है कि धरती कछुए की पीठ पर खड़े चार हाथियों पर टिकी है और वह कछुआ एक सांप के फन पर। इनमें से जब कोई जानवर हिलता है या करवट लेता है तो धरती हिल जाती है। दूसरी मान्यता,ग्रीक की पौराणिक कथाओं में माना जाता है कि धरती पर जब कुछ बुरा घटता है तो देवता दंड के तौर पर बिजली उत्पन्न करते हैं और इससे धरती कांपने लगती है।

इस समय में ऋषियों की बताएं चिंतन में अपने शास्त्रीय आधार पर जो उपाय किए जा सकते हैं उसमें महामृत्युंजय जप , ॐ नमो नारायणाय मंत्र जप , नवार्ण मंत्र जप ,ॐ श्री चित्रगुप्ताय नमः विष्णु सहस्त्रनाम पाठ शिव अभिषेक , सूर्य आराधना , करते रहने से सहज लाभ हो जाएगा

रविशराय गौड़
ज्योतिर्विद
अध्यात्मचिन्तक

एन सी आर खबर ब्यूरो

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