नोएडा में इस समय लोकतंत्र कम तानाशाही ज्यादा चल रहा है इस तानाशाही की मार गरीब मजदूर ,किसान, कामगार संघर्ष कर रहा व्यक्ति यहां तक कि असंगठित क्षेत्र के सारे स्वरोजगार पालक व्यक्ति झेल रहा है। इन लोगों को सरकार रोजगार मुहैया कराने में पूर्णतया जीरो है। मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया का नारा देने वाले जुमला सरकार के पास इन के लिए कुछ नहीं है। यह सरकार इन गरीब भूमिहीन निर्धन स्वरोजगार लोगों को ना तो कोई जगह दे रही है और ना ही किसी प्रकार की वेंडर पॉलिसी ला रही है। जिससे कि हजारों स्वरोजगार पालित गरीब लोगों का जीवन ठीक तरीके से चल पाए। उनके बच्चे पढ़ें एवं उनके परिजनों का चिकित्सा पोषण की न्यूनतम व्यवस्था हो पाए। इनके परिजन के पढ़ाई एवं दवाई तक की समस्या उठ खड़ी हुई है।
कुछ इसी प्रकार से सोवियत रूस के साम्यवादी राष्ट्रीय तानाशाह जोजेफ स्टालिन ने सामूहिक फार्म कारपोरेट रूप देने के लिए हजारों गरीब किसानों को गोली से उड़ा दिया था एवं लाखों लोगों को बंदी बनाकर यातना दी थी। इतिहास गवाह है कि जब लोग परेशान हो गए असंतोष बढ़ा तब सोवियत संघ का विघटन हो गया।
नोएडा में इस समय कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा है शासन प्रशासन सफाई के नाम पर सिर्फ उजाड़ रही है लेकिन इन उजड़े हुए लोगों एवं इनके परिजन के बारे में उनका कोई भी राहत कार्यक्रम नहीं है इनके पास ना तो रोजगार देने का साधन और ना व्यवसाय देने का कोई प्रावधान है।
मैं ‘शैलेंद्र वर्णवाल ‘ प्रशासन से पूछना चाहता हूं कि क्या यह भारत के नागरिक नहीं है अगर यह भारत के नागरिक नहीं है तो बेशक इन्हें उजाड़ कर सीमा के पार भेज दीजिए लेकिन अगर यह भारत के नागरिक है तो प्रधानमंत्री से लेकर एक छोटे सरकारी कर्मचारी तक की जिम्मेदारी बनती है कि वो इनके जीवन यापन एवं रहने की जिम्मेदारी उठाएं।
प्रधानमंत्री मोदी जी कहते हैं कि पकोड़ा बनाना व्यवसाय है लेकिन आप यह बताएं कि यह गरीब कुचले भूमिहीन लोग क्या मॉल में या बड़े शॉपिंग कंपलेक्स में पकोड़े बेचेंगे? ऐसे ही कमोबेश पूरे भारत की स्थिति वर्तमान समय में बन रही है। मंदी के कारण बड़े व्यवसाई परेशान तो हैं ही छोटे एवं निर्धन मजदूर स्वरोजगार पालक कामगार को सरकार की तानाशाही रवैया रोजगार के साधन छीन रहे हैं।
शैलेंद्र वर्णवाल
लेखक एक्तिविष्ट हैं , लेख में दिए विचारो से एनसीआर खबर का सहमत होना आवश्यक नहीं है