27 दिसंबर को लोक सभा में सांसदों द्वारा भारत माता की जय के उद्घोष पे कुछ पत्रकारों और बुद्धिजीवियों ने आपत्ति जतायी.
उनके अनुसार ‘भारत माता की जय’ बोलना सांप्रदायिक है, क्योंकि ऐसा उद्धोष मातृभूमि के देवी, देवता होने के एक निश्चित पौराणिक विचार को बल देता है. फिर वे लिखते है कि यह हिन्दुओ के विश्वास और धार्मिक दर्शन के अनुकूल हो सकता है, लेकिन एकेश्वरवाद को मानने वाले लोगों को सूट नहीं करता जो एक ईश्वर में विश्वास करते है. यह स्पष्ट रूप से बहुसंख्यकों का नारा है.
अन्य पत्रकारों ने इस कथन को चुनौती दी. उन्होंने पूछा कि किस पौराणिक कथा में “भारत माता” को देवी के रूप में दर्शाया गया है? कोई भी वेद, पुराण, धार्मिक ग्रन्थ किसी देवी या देवता का उल्लेख नहीं करती जिसे “भारत माता” कहा जाता है. यह उद्घोष हमारी मातृभूमि को चित्रित करना है, जैसे कि ‘जननी जन्मभूमि’, जैसे कि ‘मेरी अपनी मां’.
कई राष्ट्रों में रहने, घूमते समय मैंने पाया कि रुसी लोग अपनी मातृभूमि को Mother Russia के रूप में पहचानते है. रूस का मिलेटरी गान “Farewell of Slavianka” मेरे फेवरिट संगीतो में से एक है और इसमें Mother Russia के लिए सैनिक युद्ध में प्राण न्योछावर करने को तैयार है. यूक्रेन, फ्रेंच और स्पेनिश लोग भी अपने राष्ट्र को मातृभूमि के रूप में देखते है.
इस कुत्सित विचारधारा का जवाब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कैसे दिया?
अगर आप ने नोट किया हो तो अगले ही दिन, यानी कि 29 नवंबर को, गाज़ीपुर में राजा सुहेलदेव के सम्मान में आयोजित जनसभा की शुरुवात प्रधानमंत्री मोदी जी ने तीन बार भारत माता की जय के उद्घोष के साथ की. ना कि सम्बोधन के अंत में जैसा कि वे अब तक करते आ रहे थे.
आज 30 दिसंबर अंडमान-निकोबार में भी जनसभा भी प्रधानमंत्री जी ने भारत माता की जय के उद्घोष के साथ शुरू की.
मेरा यह मानना रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी के रूप में हमें एक प्रखर राष्ट्रवादी नेता मिला है जो सांप्रदायिक शक्तियों को मुँह तोड़ जवाब दे रहा है.
उन पर विश्वास बनाये रखे.
भारत माता की जय….!
साभार:- अमित सिंघल जी