पोलिस और आर्मी क्या सिर्फ घाटी में ही रहती है , शेष भारत में नहीं ?? सतवीर सिंह

यह बात वह लोग आसानी से महसूस कर सकते है जिनके बच्चे है ! कैसा महसूस करते है जब उनके बच्चे घर से बाहर होते है ???
बेशक , यह जानते हुए भी कि बच्चा स्कूल गया है या कोचिंग गया है या ग्राउंड पर खेलने गया है !

मेरा बच्चा रोज़ शाम को घर से बाहर कॉलोनी में साइकिल चलाने जाता तो मेरी माँ की सख्त हिदायत रहती कि बाहर गेट पर खड़े रह कर उसे देखता रहूँ बेशक उसकी साइकिल में स्पोटर व्हील लगे होने के बावजूद !

फर्ज करिये , बच्चा घर से बाहर है और उसी समय आप किसी दूसरे शहर के बच्चों की ह्त्या,अपहरण या दुर्घटना का समाचार सुनते है तब कैसा महसूस करते है ????

आपका बच्चा पढ़ाई के लिए दूसरे शहर में हॉस्टल में रह रहा हो और वहां उपद्रव फैल गया तथा कर्फ्यू लगा हो तो आप बच्चे को फोन पर क्या नसीहत देंगे ????

अपने कमरे से बाहर ना निकलने की या बाहर निकल कर पोलिस पर पत्थरो से हमला करने की ????

तो फिर यह कैसे माँ बाप है जिनके बच्चे कश्मीर में पत्थरो से पोलिस अर्धसैनिक बलो पर हमला करते है , और उन माँ बाप को ज़रा भी डर या ख़ौफ़ नहीं रहता कि अगर कोई गोली उनके बच्चे को लग जाए तो ???
जबकि पिछले कई दिनों से घाटी का माहौल अशांत है , फिर इनके माँ बाप इन्हें घर से निकलने कैसे देते है ???

पोलिस और आर्मी क्या सिर्फ घाटी में ही रहती है , शेष भारत में नहीं ??
जबकि घाटी का मामला इतना संवेदनशील है तब कैसे मुमकिन है की पोलिस या आर्मी के जवान आपके घर आये और आपको बाहर निकाल कर पैलेट गन से गोली मार दे ???

इतनी साधारण सी बात मिडिया क्यों नहीं समझना चाहता , क्यों पोलिस या अर्ध सैनिक बलो या आर्मी को जल्लाद और पत्थर फेंकते उपद्रवियों को भटके हुए साबित करने में तुला हुआ रहता है ????

जब आप अपने बच्चों को घर में नही रोक पा रहे हो तो आपको कोई हक़ नहीं है पोलिस या आर्मी को रोकने की शिकायत करने का !
जहन्नुम में जाओ !

सतवीर सिंह