जेएनयू का महिषासुर – उनका दुष्प्रचार और असली सच – राजीव रंजन प्रसाद

जेएनयू का महिषासुर स्वयं को नास्तिक मानने वाले वाम-समुदाय के मष्तिष्क की उपज है, यदि बारीकी से समझा जाये तो देश की सामाजिक दरारों को चौडा करने और साम्प्रदायिक जहर फैलाने की स्पष्ट साजिश के साथ इसे गढा गया है। बहुधा धार्मिक सम्प्रदाय काल्पनिक कहानियों, घटनाओं और परिस्थितियों को गढ कर आपस में नफरत और दंगे फैलाते रहे हैं, किंतु जब स्वयं को बौद्धिक और प्रगतिशील मानने वाला समुदाय ऐसा करने को उद्यत हो तो गंभीरता से पूरे प्रकरण को समझना विवेचित करना आवश्यक हो जाता है। जब बहस आरम्भ हुई है तो बेहतर है कि देश भर के लोग बारीकी से देखें-विवेचित करें कि पुरानी पुस्तक में वर्णित महिषासुर कौन है और जेएनयू का महिषासुर क्या है? इसके साथ ही साथ शोध और अभिव्यक्ति पर भी एक सार्थक बहस को यह प्रकरण खुला छोडता है और हमारे शिक्षाशास्त्रियों तथा विश्वविद्यालयों को भी आईना दिखाता है कि आप कैसे विद्यार्थी और कैसा समाज गढने चले हो?

जेएनयू का महिषासुर कौन है, इसे फॉर्वर्ड प्रेस पत्रिका ने पिछले दिनो पूरा अंक (फॉर्वर्ड प्रेस पत्रिका, अक्टूबर 2014) निकाल कर स्पष्ट किया था। यद्यपि इस पत्रिका के लेखकों में भी यह विवाद है कि महिषासुर को यादव समाज का प्रतिनिधि माना जाये अथवा आदिवासी समाज का। मैनें विभिन्न संदर्भों में उस दौर में रहे भैंस पालक यादव समाज की जानकारी तलाशनी चाही किंतु एक भी उद्धरण नहीं मिला, एकलव्य से ले कर गुण्डाधुर तक के नायकों पर गर्व करने वाले आदिवासी समाज को भी एक गढी हुई कहानी में नायक तलाशने की आवश्यकता तो नहीं। जेएनयू की महिषासुर परिकल्पना में कई झोलझाल है। फॉरवरड प्रेस पत्रिका उसे बंगाल का राजा बताती है, लेकिन देश के अन्य क्षेत्रों में इससे जुडी मान्यताओं पर चुप रह जाती है। यह प्रचलित जन-मान्यता है कि महिषासुर एक समय मैसूर (महिसुर) का राजा था और दुर्गा द्वारा भीषण युद्ध में उसका वध जिस स्थल पर हुआ उसे चामुण्डा पर्वत कहा जाता है। हिमाचल प्रदेश का शक्तिपीठ नैनादेवी भी दावा करता है कि महिषासुर का वध वहाँ हुआ। झारखण्ड का भी दावा है कि चतरा जिले में तमासीन जलप्रपात के निकट महिषासुर का वध हुआ। छत्तीसगढ का भी महिषासुर पर दावा है जहाँ बस्तर के बडे डोंगर क्षेत्र में अनेक महिष पदचिन्हों को महिषासुर की कथा से जोड कर देखा जाता है और मान्यता है कि यहीं उसका वध हुआ। जहाँ इतनी मान्यतायें उपलब्ध हैं वहाँ फोर्वर्ड प्रेस के सर्वे सर्वा डॉ. सिल्विया फर्नान्डीज या कि इस पत्रिका के मुख्य सम्पादक श्री आयवन कोस्का बिना संदर्भ के भी कोई बात रखते हैं तो सवाल खडे किये जाने चाहिये। अंत: यह साफ समझने के लिये कि निहायत गंदे उद्देश्य से और केवल लाल विचारधारा के प्रचार-प्रसार के निहितार्थ देवी दुर्गा को वेश्या दिखाने की साजिश करने वाले लोग चाहते क्या हैं उसे समझने के लिये जेएनयू के महिषासुर और दुर्गा-सप्तशती में वर्णित महिषासुर के वर्णनों को तुलनात्मक रूप से समझने की कोशिश करते हैं। यह समझना आवश्यक है कि जेएनयू के एक खास विचार-वर्ग ने देवी दुर्गा को वेश्या के बिम्ब में ही क्यों चुना?

सप्तशती मे दुर्गा-महिषासुर कथा का प्रारभ होता है जब महिषासुर ने इन्द्र को पराजित कर दिया है और देवता विष्णु से मदद मांगने जाते हैं। बात कविता में कही गयी है अत: दुर्गा की उत्पत्ति और शक्ति की जो विवेचना इस में कृति में है वह शब्दश: देखे जाने पर बहुत ही अतिरंजित अथवा अविश्वसनीय लग सकती है। तथापि मैं दुर्गा सप्तशती के द्वितीय अध्याय को स्त्रीविमर्श का उद्धरण मानना चाहूंगा जहाँ एक वीरांगना स्त्री दुर्गा भीषण युद्ध में अपने शत्रु महिषासुर की बहुतायत सेना का संहार कर देती हैं। कविता कहती है कि देवता प्रतिवाद की तैयारी कर रहे हैं, देवी शस्त्रों से सज्जित हैं कदाचित इतनी बलशाली हैं मानों दस हाँथ हों, अनेक तरह के अस्त्र शस्त्र संचालन में दक्ष। महिषासुर देवताओं का दुस्साहस देख कर क्रोधित है और उसे फर्क नहीं पडता कि सामने से लडने वाली स्त्री है। उसका सेनापति चिक्षुर दुर्गा पर पहले आक्रमण करता है (श्रीदुर्गासप्तशत्याम, द्वितियोअध्याय: श्लोक 40-41)।

यह आक्रमण साधारण नहीं था साठ हजार हाथियों के साथ उदग्र नाम का महादैत्य, एक करोड रथियों के साथ महाहनु नाम का दैत्य, पाँच करोड रथी सैनिकों के साथ असिलोमा नाम का महादैत्य, हाथी व घोडों के दल बल के साथ परिवारित नाम का राक्षस, पाँच अरब रथियों के साथ बिडाल नाम का दैत्य तथा इस सबके साथ स्वयं महिषासुर भी कोटि कोटि सहस्त्र रथ, हाथी और घोडों की सेना से घिरा हुआ था और इन्होंने प्रथमाक्रमण करते हुए दुर्गा पर तोमर, भिन्दिपाल, शक्ति, मूसल, खडग, परशु और पट्टिश आदि शस्त्र फेंके – युयुधु: संयुगे देव्या खड्गै: परशुपट्टिशै:। केचिच्च चिशिपु: शक्ति: केचित्पाशांस्तथापरे (श्रीदुर्गासप्तशत्याम, द्वितियोअध्याय: श्लोक 48)। यह तथ्य समझने वाला है कि दुर्गा पर न केवल पहला आक्रमण महिषासुर की सेना ने किया अपितु पूरी शक्ति के साथ किया। महिषासुर की सेना, उसकी ताकत व संख्या का विवरण निश्चित ही अतिश्योक्तिपूर्ण है किंतु कविता में अलंकार का प्रयोग कदाचित वर्जित नहीं है। द्वितीय अध्याय इस युद्ध मे महिषासुर की पराजय का लोमहर्षक वृतांत प्रस्तुत करता है जिसमें कहीं भी दूसरा पक्ष छल करता नजर नहीं आता, किसी तरह के प्रेम अथवा प्रणय निवेदन का जिक्र नहीं है अपितु प्रत्येक पंक्तियाँ यह बताने के लिये लिखी गयी हैं कि एक स्त्री हो कर भी दुर्गा ने कुशल रणनेतृत्व किया और शत्रुपक्ष को पराजित किया।

दुर्गासप्तशती का तीसरा अध्याय महिषासुर के अनेक सेनापतियों तथा अंत में उसके ही वध का रुचिकर चित्रण है। इस अध्याय में दो प्रतीकों का युद्ध में बार बार उल्लेख आता है पहला है महिष (भैंस) तथा दूसरा है सिंह। महिष के प्रतिपल रूप बदलने का उल्लेख है किंतु सिंह के नहीं। सप्तशती के श्लोक कहते हैं कि अपनी सेना के नाश को देख कर महिषासुर ने भैंसे का रूप धारण कर लिया तथा किसी को धूथन से मार कर, किसी के उपर खुरों का प्रयोग कर के कुछ गणों को वेग से, कुछ को सिंहनाद से, कुछ को नि:श्वांस वायु के झोंके से धराशायी कर दिया। कविता में लिखे गये दुर्गा-महिषासुर युद्ध के आखिरी कुछ हिस्से बहुत ही आश्चर्य में डालने वाले हैं। यह श्लोक देखें कि – सा क्षिप्त्वा तस्य वै पाशं तं बबन्ध महासुरम। तत्याज माहिषं रूपं सोअपि बद्धो महामृधे। तत: सिंहोअभवत्सद्यो यावत्तस्याम्बिका शिर:। छिनत्ति तावत्पुरुष: खड्गपाणिरदृश्यत (श्रीदुर्गासप्तशत्याम, तृतीयोअध्याय: श्लोक 29-30) अर्थात – युद्ध में स्वयं को लगभग पराजित देख कर महिषासुर ने भैंस का स्वरूप छोड कर सिंह का रूप धारण कर लिया। कुछ देर इसी तरह संघर्ष करने के पश्चात जब दुर्गा उसके गर्दन पर प्रहार करने को उद्यत हुई तो वह सिंह रूप छोड कर अपने पुरुष स्वरूप में आ गया जिसके हाथ में एक खड्ग था। यही नहीं बाद के श्लोकों में महिषासुर के हाथी और फिर पुन: भैसे के रूप में आ जाने का वर्णन भी मिलता है। भैसे और मनुष्य के बीच के स्वरूप अथवा अवस्था में होने के दौरान दुर्गा द्वारा महिषासुर का वध किये जाने का विवरण दुर्गासप्तशती के माध्यम से मिलता है। पुरानी पुस्तकों में इसके अतिरिक्त कोई भी अन्य संदर्भ, कहानी का दूसरा कोण अथवा वैकल्पिक दृष्टांत उपलब्ध नहीं है।

अब जेएनयू के महिषासुर पर आते हैं। एक काल्पनिक तथा अश्लील चित्र के नीचे विवरण देते हुए फॉर्वर्ड प्रेस पत्रिका लिखती है कि “सुरों ने सुन्दरी दुर्गा को असुरों के राजा महिषासुर की हत्या करने के लिये भेजा था इस छल से अनभिज्ञ महिषासुर ने संभावित आगमन की सूचना परिवारजनों को अग्रिम रूप से दे दी थी (फॉर्वर्ड प्रेस पत्रिका, अक्टूबर 2014 अंक पृ-6)। आखिर इस संदर्भ का विवरण कहाँ से लिया गया है? सच यह है कि मूल उपलब्ध कथा के साथ कल्पनानुसार भयावह छेडछाड पत्रिका ने तथा चित्रकार ने नितांत बदनियती के साथ की है। आगे यह पत्रिका लिखती है कि दुर्गा द्वारा महिषासुर की छाती में खंजर उतारने के बाद उन्होंने उसके आवास में प्रवेश कर बडे पैमाने पर असुरों का संहार किया (फॉर्वर्ड प्रेस पत्रिका, अक्टूबर 2014 अंक पृ-6)। दुर्गासप्तशती जिसे आधार मान कर सारी कथा लिखी, गढी और पुन: पुन: गढी जा रही हैं वह फॉर्वर्ड पत्रिका के कथन को झूठा बताती है। वास्तविक श्लोक है कि – “अर्धनिष्क्रांत एवासौ युद्य्हमानो महासुर:। तया महासिना देव्या शिरशिचत्त्वा निपातित:” अर्थात आधा निकला होने पर भी वह महादैत्य देवी से युद्ध करने लगा तब देवी ने बहुत बडी तलवार से उसका मस्तक काट गिराया (श्रीदुर्गासप्तशत्याम, तृतीयोअध्याय: श्लोक 29-30)। अब बहुत बडी तलवार को फॉर्वर्ड प्रेस पत्रिका तथा उसके महान चित्रकार ने छोटा वाला छुरा यानि कि खंजर बना दिया और जहाँ सिर काटे जाने का विवरण है उसकी जगह छाती में खंजर उतारने की बात शातिराना तरीके से लिख तथा चित्रित कर दी गयी है।

दुर्गा-महिषासुर मिथक कथा का पाठ प्रेम आधारित छल पर नहीं कहा गया अपितु यह विशुद्ध युद्ध कथा है। यहाँ दो पक्ष लडे जिसमें एक स्त्री थी दूसरा असुर। स्त्री की विजय हुई व असुर मारा गया। किसी तरह का छल नहीं अपितु दोनो ही पक्ष पूरी सेना व क्षमता के साथ लडे और अंतत: एक पक्ष की विजय हुई। चित्रकार ने महिषासुर से प्रणय निवेदन करती दुर्गा का जो चित्र बनाया है (फॉर्वर्ड प्रेस पत्रिका, अक्टूबर 2014 अंक पृ-7) वह यदि किसी भी समाज अथवा पक्ष को भद्दा और आपत्तिजनक लगता है तो इसमे कोई आश्चर्य नहीं। पूर्वाग्रह से भरे लोग जो लिखते व रचते हैं उसमें अध्ययन अथवा तथ्य कम अपितु कल्पना का झोल तथा अनापशनाप बोल और चटख रंगों में छिपी अश्लीलता अधिक होती है। पत्रिका इस बात को बहुत ही घटिया तरीके से लिखती है कि महिषासुर की हत्या के पूर्व दुर्गा ने छक कर शराब पी (फॉर्वर्ड प्रेस पत्रिका, अक्टूबर 2014 अंक पृ-7)। फॉर्वर्ड नाम से प्रकाशित पत्रिका की प्रगतिशीलता से मेरा सबसे बडा सवाल कि आप स्त्री को कमतर आंकने की और बंधन में बांधने की वकालत क्यों करना चाहते हैं? क्या आपका मानना है कि स्त्री का शस्त्र पर, सुरा पर और स्वतंत्र जीवन पर कोई अधिकार नहीं? खैर स्त्री को क्या नहीं करना चाहिये की मंशा जताने के लिये जो चित्र प्रकाशित किया गया है वह निश्चित ही आपत्तिजनक है। दुर्गासप्तशती के तीसरे अध्याय का श्लोक 38 है कि – गर्ज गर्ज क्षणं मूढ मधु यावत्पिबाम्यहम। मया त्वयि हतेअत्रैव गर्जिष्यंताशु देवता:। अर्थात “तब क्रोध में भरी हुई दुर्गा उत्तम मधु का पान करने और लाल आँखें कर के हँसने लगी”। इस मधु की और अधिक पडताल करने पर ज्ञात होता है कि मधु का एक पानपात्र कुबेर ने दुर्गा को भेंट स्वरूप दिया था। मधु शब्द का अर्थ यदि सुरा भी निकाला जा रहा है तो क्या यह बात सही नहीं कि युद्ध क्षेत्र में यह घटना हो रही है न कि शयनकक्ष में।

महिषासुर प्रकरण पर राज्यसभा में वामदल अधिक तल्ख हो कर बहस से भागते हैं तो आश्चर्य नहीं। यह प्रसंग किसी एक विद्यालय के एक समूह का दिमागी फितूर भी नहीं क्योंकि पिछले कई वर्षों से अपनी गढी हुई काल्पनिक कहानी को देश-व्यापी बनाने की कोशिशे भी निरंतर होती रही हैं। यह अस्तिकों और नास्तिकों के बीच साम्प्रदायिक तनाव पैदा करने की कोशिश के तौर पर भी देखे जाने योग्य प्रकरण है, और इससे पहले कि वास्तव में ऐसी साजिशें कामयाब हों हमें अपने समाजशास्त्र की जडों को सद्भाव का पानी देना आवश्यक है।

राजीव रंजन प्रसाद