रोहित का सच उसकी फेसबुक वॉल पर है – रंजय त्रिपाठी
हैदराबाद में खुदकुशी करने वाले छात्र रोहित की फेसबुक वाल 2010 से प्रारंभ होती है.
.
वो HCU आके खुश है, लिखता है सब बहुत अच्छा है, माहौल सुपर्ब है, लोग बहुत अच्छे हैं, नए दोस्त बन रहे हैं.
उसके हॉस्टल के कमरे में स्वामी विवेकानंद की तस्वीर है.
वह मुस्लिम महिला की गोद में बालरूप भगवान कृष्ण की फोटो शेयर करता है, वह आदम और ईव का मज़ाक उड़ाता है – कहता है कि अगर आदम और ईव पैदा नहीं हुए तो नाभि क्यों दिखाते हो .
उसका शौक फेरारी में घूमना है, वह कैम्पस में तेलगु युवतियों को देखकर प्रसन्न होता है.
उसे भारत से प्यार है, 15 अगस्त को वह एक के बाद एक कई देशभक्ति गाने शेयर करता है.
वह सैनिकों की दीपावली की पोस्ट शेयर करता है.
वह नरेन्द्र मोदी के सोलर प्रोजेक्ट का दीवाना है.
वह मोदी के सपोर्ट में मनोज कुरील जी की पोस्ट शेयर करता है – जिसमे मीडिया 2002 गुजरात रटती है लेकिन 2013 असम से मौन है .
.
2012 में वह अन्ना आंदोलन को सपोर्ट करता है और काँग्रेस पर हमला करता है. वह राहुल गाँधी का मज़ाक उड़ाता है.
वह सुब्रमण्यम स्वामी की काँग्रेस पर टिप्पणी को भी शेयर करता है.
वह बलात्कारियों के लिये फाँसी की माँग करता है.
वो भारत का Carl Segan बनना चाहता था। 2010 – 2013 तक उसने अनेकों विज्ञान के धारणाएं, विज्ञान के रहस्य, विज्ञान के one liner शेयर करता है और लिखता है …
.
लेकिन 2013 आते आते वह केजरीवाल और आम आदमी पार्टी का सपोर्टर बन जाता है और इसके बाद उसके विचार बदल जाते हैं, उसके मित्र बदल जाते हैं, उसके आदर्श बदल जाते हैं. 2013 के बाद उसके विज्ञान वाले पोस्ट धीरे धीरे कम होते हैं और फिर विलुप्त हो जाते हैं. जैसे जैसे राजनीति में उसकी रुचि बढ़ती है और उसकी सोच बदलने लगती है. अब वह याकूब की फाँसी का विरोध करता है, वह ओवैसी का समर्थन करने लगता है और उसे रेडिकल अंबेडकर में राजनीति का नया समीकरण दिखने लगता है. जाहिर है वह किसी जाल में फँस गया है और 2013 के बाद जो हो रहा था, वह उसकी मूल सोच के विरुद्ध हो रहा था. एक दिन यह भूमिका निभाते हुए वह थक जाता है और उसे आत्म हत्या करनी पड़ती है. रोहित का सच उसकी फेसबुक वॉल पर है, उसने आत्महत्या नहीं की है, उसे सोचे समझे षडयंत्र के तहत मारा गया है और इसमें शामिल देशघाती चेहरों के बेनकाब करना आवश्यक है, ताकि फिर कोइ होनहार छात्र ऐसी घिनौनी साजिश का शिकार न हो सके.
रंजय त्रिपाठी