क्या कीर्ति आज़ाद और शत्रुघ्न सिन्हा भाजपा के अगले मधोक-खुराना साबित होंगे ? – विवेक शुक्ला
विवेक शुक्ला । भाजपा के कुछ हवा-हवाई किस्म के नेताओं ने आजकल पार्टी को डेमेज करने की कसम सी खा ली है। ये हर मंच से पार्टी नेतृत्व या उसके कुछ खास नेताओं पर मिथ्या आरोप लगा रहे हैं। ये अनुशासनहीनता की सारी हदों को लांघ रहे हैं। ये एक अनुशासन प्रिय पार्टी अनुशासन को तार-तार कर रहे हैं।
हालिया बिहार विधानसभा चुनाव के वक्त फिल्म स्टार शत्रुघ्न सिन्हा, पूर्व नौकरशाह आर.के.सिंह तथा क्रिकेट के पूर्व खिलाड़ी कीर्ति आजाद शत्रु धर्म का निर्वाह कर रहे थे। इन सबने तब पार्टी की चुनावों में संभावनाओं पर भरपूर पानी फेरा। जब सारी भाजपा बिहार चुनाव को जीतने के लिए दिन-रात एक कर रही थी, तब ये तीनों बागी तेवर अपनाए हुए थे। कहने की जरूरत नहीं है कि जब आपके इस तरह के मित्र होंगे तो आपको शत्रुओं की कोई जरूरत ही नहीं होगी। अगर बात शत्रुध्न सिन्हा की करें तो वे तो लगातार ही पार्टी लाइन से हटकर काम कर रहते रहे हैं। वे कभी नीतीश कुमार से मिलते हैं तो कभी लालू प्रसाद से तो कभी अरविंद केजरीवाल से।
और आजकल अरविंद केजरीवाल की गोद में खेल रहे दरभंगा से सांसद कीर्ति आजाद लगातार अपनी हरकतों से भाजपा नेतृत्व को नीचा दिखाने की हरचंद कोशिश कर रहे हैं। वे कुछ समय पहले संसद भवन में एक-दो बार कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी से इस तरह से बतियाते हुए पाए गए, मानों सोनिया ही उनकी नेता हो। वे पार्टी नेतृत्व से काफी समय से खफा हैं। उनके करीबी कहते हैं कि वे मंत्रिमंडल में शामिल ना किए जाने से नाराज है। शत्रुध्न सिन्हा और आर .के.सिंह की भी यही पीड़ा है।
कीर्ति आजाद वित्त मंत्री अरुण जेटली पर अनेक वर्षों से लगातार आरोप लगाते रहे हैं। पहले कीर्ति जी अरुण जेटली द्वारा क्रिकेट की राजनीति में खुद को तरजीह नहीं दिए जाने का आरोप लगाते रहे हैं I अब क्रिकेट की राजनीति को भाजपा में घसीट लाए हैं I इन दिनों उनके आरोप और मुखर होकर सामने आ रहे हैं। हैरानी हो रही है कि कीर्ति आजाद उस अरुण जेटली पर डीडीसीए में घोटाला करने के आरोप लगा रहे हैं, जिसने दिल्ली को विश्व स्तरीय क्रिकेट स्टेडियम दिया। जरा दिल्ली के किसी क्रिकेट प्रेमी से पूछ लीजिए कि साल 2004 से पहले फिरोजशाह कोटला किस तरह का स्टेडियम था और जेटली के डीडीसीए का प्रमुख बनने के बाद किस तरह का हो गया। ये जेटली का ही कमाल था कि उन्होंने कोटला में कोरपोरेट बॉक्स बनाए और उन्हें बड़े औद्योगिक घरानों को बड़ी कीमतों में बेचे। वहां से मिले धन से उन्होंने देश की राजधानी को एक उम्दा स्टेडियम दिया। “आप” पार्टी का ध्यान चेन्नई और मुंबई के स्टेडियम को क्यों नहीं देखते जो दुगनी कीमतों पर बनाये गए? सच में अफसोस होता है कि देश की सेवा करने के लिए रोज की लाखों रुपये की सफल वकालत की प्रेक्टिस को छोड़ कर जनता की सेवा में आने वाले अरुण जेटली पर कितने ओछे आरोप लग रहे हैं।
अजीब इतेफाक है कि ये तीनों ही महानुभाव कभी भी भाजपा के जमीनी नेता नहीं रहें। इन्हें भाजपा की संस्कृति की समझ या जानकारी तक नहीं है। कीर्ति आजाद तो कांग्रेस के गुजरे दौर के नेता भगवत झा आजाद के पुत्र हैं और इसीलिए इन्हें टिकट भी मिला I आर.के.सिंह तो केन्द्रीय गृह सचिव थे हाल तक। समस्तीपुर में आडवाणी जी को गिरफ्तार करने वाले भी आर. के. सिंह ही हैं, जब ये समस्तीपुर के जिलाधिकारी थे I जब धनबाद के उपायुक्त और पटना के जिलाधिकारी ने आडवाणी के राम रथ को रोकने से इनकार कर दिया तब इन्ही ने लालू के तुगलकी आदेश को सर माथे पर रखकर आडवाणी और प्रमोद महाजन को सोते समय उठवा लिया था I मुझे शत्रुध्न सिन्हा के व्यवहार से सच में बहुत कष्ट होता है। उन्हें भाजपा ने सब कुछ दिया। वे केन्द्रीय मंत्री भी रहे। पांच बार सांसद रहे I वे फिर भी नाराज और निराश हैं। कहते फिरते हैं कि मैं अपनी लोकप्रियता के बल पर जीतता हूँ I लेकिन, पटना की गलियों में पूछिए कि वे कितने लोकप्रिय हैं I
इसके साथ ही बिहार विधानसभा चुनाव में हार के बाद भाजपा के कुछ नेताओं को आला कमान पर हल्ला बोलने का मानो लाइसेंस सा मिल गया है। ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व के खिलाफ असंतोष का बिगुल बजाने लगे हैं। इनमें बिहार के सांसद भोला सिंह भी हैं। ये भी पुराने समाजवादी-कांग्रेसी हैं I इन्होने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पर निशाना साधा और कहा इन नेताओं का अभियान राज्य के विकास पर केंद्रित होना चाहिए था, पर ये भटक गए और इसका नुकसान झेलना पड़ा।
भाजपा में निर्विवाद नेता के तौर पर उभरने और केन्द्र में सरकार बनने के बाद मोदी को पहले बड़े असंतोष का सामना करना पड़ रहा है। पहले कुछ बागी नेता बिहार की हार की संपूर्ण समीक्षा की मांग उठाने लगे थे। इनका कहना था कि बिहार में हार का मुख्य कारण पिछले एक साल में पार्टी का कमजोर होना है। इनका एक आरोप येभी है कि पार्टी कुछ मुट्ठीभर लोगों के अनुसार चलने पर मजबूर क्यों हो रही है और उसका आम-सहमति वाला चरित्र नष्ट कैसे हो गया।
भाजपा में बागी दिखाने वालों में पूर्व केन्द्रीय मंत्री और हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार का नाम भी लिया जा सकता है।हिमाचल की कांगड़ा सीट से लोकसभा सांसद शांता कुमार ने ये कहकर बवाल खड़ा कर दिया था कि व्यापमं घोटाला और ललितगेट की वजह से पार्टी का सिर शर्म से झुक गया है। उन्होंने यहां तक कह दिया था कि भाजपा नेतृत्व में संवाद की कमी हुई है। शांता कुमार ने इन दोनो मसलों पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को एक पत्र भी लिखा था। उसके बाद मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उनसे बात भी की थी। ये चिट्ठी 10 जुलाई को भेजी गई थी। जब इतना सीनियर नेता सार्वजनिक रूप से पार्टी के खिलाफ जहर उगलेगा तो इससे कोई बहुत अच्छा संदेश तो देश में नहीं जाएगा।
उधर, यशवंत सिन्हा भी भाजपा नेतृत्व से स्थायी भाव से असंतुष्ट हैं। वे पहले तो चंद्रशेखर के साथ थे। उसके बाद भाजपा के साथ जुड़ गए क्योंकि उन्हें इधर “मलाई” की संभावनाएं नजर आ रही थीं। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार में वे वित्त और विदेश मंत्री रहे। भाजपा में आए तो हजारीबाग से एक पिछड़े नेता श्री महावीर विश्वकर्मा जो सिटिंग एम. पी. थें उनका टिकट काटकर इन्हें हजारीबाग से टिकट दिया गया और ये लोकसभा चुनाव जीतने लगे। एक बार चंद्रशेखर जी की जनता पार्टी से चुनाव लड़ा था तो उन्हें दस हजार वोट भी नहीं मिले थे हजारी बाग से। भाजपा में आते ही बड़े नेता बन गए। हालांकि जन्नत की हकीकत कुछ और है। यशवंत सिन्हा ने तो कुछ समय पहले हद ही कर दी थी। वे झारखंड में अतिक्रमण हटाने के अदालत के आदेश के बाद पीड़ित लोगों की तरफदारी में धरने पर बैठ गए और अर्जुन मुंडा सरकार से मांग करने लगे थे कि अध्यादेश जारी करके लोगों को राहत दे। क्या अपनी ही सरकार के विरोध में धरना देना किसी नेता को शोभा देता है?
अब बड़ा सवाल यह है कि भाजपा में आई इस गिरावट को थामेगा कौन? कब केंद्रीय नेतृत्व बागी नेताओं को उनकी औकात बताएगा? बागी नेताओं को समझ लेना चाहिए कि एक बार पार्टी से बाहर हुए तो इनका हश्र वही होगा जो गुजरे दौर में बलराज मधोक या मदनलाल खुराना का हुआ था। पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाए जाने के बाद इन्हें कोई पानी देने वाला नहीं बचा था।
बेशक, भाजपा देश की सबसे लोकतांत्रिक और कैडर पर आधारित पार्टी है। कांग्रेस पर एक कुनबे का राज चलता है। वहां पर तो आतंरिक लोकतंत्र की बात करना समय बर्बाद करने के समान होगा। भाजपा में सभी को संवाद की खुली छूट है। लेकिन कुछ नेता इस छूट का बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं। बागी और अनुशासहीन नेताओं को किसी भी सूरत में स्पेस नहीं दिया जाना चाहिए। भाजपा का इतिहास गवाह है कि नेतृत्व ने जब-जब बागियों और अनुशासन की लक्ष्मण रेखा को पार वालों पर एक्शन लिया तो पार्टी ज्यादा सशक्त होकर उभरी।
आपको याद होगा कि एक दौर में भाजपा की दिल्ली इकाई के नेता मदनलाल खुराना को भी पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखाया था। वे लाल कृष्ण आडवाणी पर आरोप लगाने लगे थे। खुराना दिल्ली के कुछ चुनिंदा पत्रकारों को नेतृत्व के खिलाफ आधारहीन स्टोरीज देने लगे थे। वे भूल गए थे कि आडवाणी जी ने भाजपा को खड़ा किया है। खुराना को पार्टी से निकाले जाने से पार्टी कमजोर नहीं हुई थी। उन्हें अटल जी ने अपनी कैबिनेट से निकाला था।
इसी तरह से कल्याण सिंह और उमा भारती ने भी जब नेतृत्व पर आरोपों की बौछार लगानी शुरू की तो इन्हें भी पार्टी ने निकाला था। भाजपा से बाहर जाने के बाद ये हाशिये पर आ गए थे। वक्त की मांग है कि भाजपा नेतृत्व अविलंब अनुशासनहीन नेताओं को हाशिए पर लाकर खड़ा कर दे।
(लेखक विशेष संवाददाता दैनिक हिन्दुस्तान, पूर्व वरिष्ठ सहायक संपादक, दैनिक भास्कर, नई दिल्ली हैं )
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