पाकिस्तान हारा भारत से अहम लड़ाई

ब्रिटेन की एक कोर्ट ने पाकिस्तान सरकार को आदेश दिया है कि वह भारत सरकार को डेढ़ लाख पाउंड अदा करे। रुपए और पाउंड की वर्तमान दरों के मुताबिक, यह रकम 13,932,000 रुपए के आसपास है। 67 साल पुराने हैदराबाद फंड केस की सुनवाई में ब्रिटिश कोर्ट ने पाकिस्‍तान सरकार को लीगल फीस के बतौर ये रकम देने का आदेश दिया है।

हैदराबाद फंड केस हैदराबाद के निजाम की दौलत से जुड़ा हुआ है, जो वर्तमानों दरों के मुताबिक 25 मिलियन पाउंड के आसपास है।

ब्रिटेन की कोर्ट ने माना कि मामले में पाकिस्‍तान के पास ‘सावर्न इम्यूनिटी’ नहीं है, इसलिए उसे अन्य प्रतिवादियों को मुकदमे में अब तक खर्च की गई राशि देनी होगी। हैदराबाद फंड केस के प्रतिवादियों में भारत सरकार, वेस्टमिंस्टर बैंक, निजाम के उत्तराधिकारी मुक्करम जाह और मुफ्फकम जाह शामिल है। माना जा रहा है कि तीनों ने मुकदमे पर अब तक लगभग 4,00,000 पाउंड खर्च किया है।ब्रिटिश कोर्ट ने पाकिस्तान की सरकार का ‘इम्यूनिटी’ जो अधिकार छीना है, मुकदमे में वह अब उसे वापस नहीं पा सकता। कोर्ट के इसी फैसले के बाद भारत के लिए उस फंड को वापस पाने का मार्ग प्रशस्त हुआ है।

माना जा रहा है निजाम की दौलत को वापस पाने के लिए उसके उत्तराधिकारी और भारत सरकार आपस में बातचीत भी कर रहे हैं। दरअसल हैदराबाद फंड केस में 10,07,940 पाउंट और 9 शिलिंग के ट्रांसफर से जुड़ा है। 1948 में इस राशि को ब्रि‌टेन के तत्‍कालीन पाकिस्तानी हाई कमिश्नर हबीब इब्राहिम रहीमतुल्‍लाह के वेस्टमिंस्टर बैंक के खाते में ट्रांसफर कर दिया गया था।

पैसा एक एजेंट ने ट्रांसफर किया था और माना जाता है कि निजाम के कहने पर ही उसने ऐसा किया।उल्लेखनीय है कि भारत की आजादी के बाद हैदराबाद के निजाम ने घोषणा की स्वतंत्रता की घोषणा की थी।

हालांकि भारत सरकार के दबाव के कारण उसने ‌18 सितंबर, 1948 को भारतीय राज्य में विलय कर लिया। जबकि उसी के दो दिन बाद यानी 20 स‌ितंबर, 1948 को एक एजेंट ने ब्रिटने में जमा उसकी दौलत पाकिस्तानी हाईकमिश्नर र‌हीमतुल्लाह के खाते में ट्रांसफर कर दी।

27 सितंबर, 1948 को निजाम ने उस दौलत को वापस मांगा। उन्होंने कहा कि ट्रांसफर उनकी आज्ञा के बिना किया गया है। हालांकि बैंक ने उनकी बात नहीं मानी और कहा कि जिसके खाते में पैसा गया है, उसकी सह‌मति के बिना ये संभव नहीं है। पाकिस्तानी उच्चायुक्‍त ने अपनी सहमति देने से इनकार कर दिया।

कई सालों तक ये मामला यूं ही पड़ा रहा। निजाम के शासन का उत्तराधिकारी होने के कारण भारत सरकार ने उस दौलत पर अपना दावा किया। भारत सरकार की राय थी कि यह दौलत राज्य सरकार की है, न कि निजाम की निजी दौलत है।

कानूनी पेचीदीगियों के कारण 1960 तक मामले कोई हल न निकलता देख, भारत सरकार की कैबिनेट ने न्यायालय के बाहर पाकिस्तान सरकार और निजाम के उत्तराधिकारियों से बातचीत कर मामला निपटाने का फैसला किया।

अब जबकि ब्रि‌टिश कोर्ट ने पाकिस्तान की सरकार को ‘इम्यूनिटी’ नहीं प्रदान की है, तो भारत के ‌लिए एक दरवाजा खुल गया है कि वह निजाम की दौलत कानूनी तरीके से वापस ले ले।