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रविवार : मोदी बनाम मोदी- दीपक शर्मा

क्या राष्ट्रीय राजनीति में मोदी का फिलहाल कोई विकल्प है ? इस सवाल पर वामपंथी और आपियन मित्र मुझसे बेहद नाराज़ हो सकते हैं. फिर भी मै ऐसा सवाल क्यूँ खड़ा कर रहा हूँ ? शायद इसलिए क्यूंकि बंगाल से लेकर कश्मीर और कश्मीर से लेकर केरल तक मुझे मोदी का कोई विकल्प अभी नही दिख रहा है.
मै अक्सर सियासत के कुछ बड़े नामों को मोदी के साथ तौलता हूँ. कभी शरद पवार, कभी मुलायम, कभी मायावती, कभी ममता , कभी केजरीवाल तो कभी जयललिता ….लेकिन मोदी से भारी कोई नज़र नही आता.
शायद इसलिए मुझे संदेह होता है कि मोदी के लिए चुनौती कोई दूसरा नही खुद मोदी हैं. दरअसल वर्तमान राजनीति में संख्याबल और समीकरण की एक ऐसी बिसात बिछी है जहाँ मोदी किसी मंत्री , किसी मोहरे, किसी शत्रु या किसी स्वयं सेवक से नही खुद से ही मात खा सकते है. ऐसा तभी होता है जब आपके मित्र , आपके सहयोगी, आपके सलाहकार आपके बहुमत के आगे अपना मत खो देते हैं. इस सिन्ड्रोम को बहुमत के आगे नतमस्तक होना कहते हैं. ऐसी स्थिति में सारे फैसले आप खुद लेते हैं. तब जय और पराजय दोनों आपके खाते में दर्ज होती हैं. यह वो स्थिति है जहाँ पार्टी आपको हर जगह आजमाती हैं. हर योजनाओं से लेकर हर चुनावों तक.
मित्रों, संक्षेप में बस इतना ही बताना है कि आईये महाराष्ट्र और हरियाणा के नतीजों का इंतज़ार करें. नतीजे जो पार्टी नही मोदी की हार मोदी की जीत तय करेंगे.

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