बंटवारे के बाद बंटवारा नही होता -दीपक शर्मा
क्या भाई- भाई के बीच बंटवारे थाने में तय होते है ? क्या बंटवारे के बाद फिर कोई बंटवारे होते है? बाप की मिलकियत जब बंट गयी तो क्या थाना और क्या पुलिस ? जी हाँ , अगर थाना बेमानी है तो यूनाइटेड नेशन भी बेमतलब है. ना थर्ड पार्टी ना सेकंड पार्टी.
मित्रों, कश्मीर का मुद्दा तिब्बत से बड़ा नही है. अगर तिब्बत से तुलना करें तो कश्मीर मुद्दा ही नही है .लेकिन नेहरूवियन सोच और सरकारी अफसरों की लालफीता शाही ने आज कश्मीर को इस्लामाबाद से लेकर न्यूयार्क तक मुद्दा बना रखा है.
एफबी की पोस्ट में बहस की ज्यादा गुंजाइश नही होती इसलिए बात संशिप्त रखना चाहूँगा.
1949 में ल्हासा(तिब्बत) में चीन के मूल निवासी सिर्फ 400 थे और तिब्बती लगभग 30000. 1992 में चीन के मूल निवासी वहां 400 से बढ़कर 50 000 हो गये जबकि तिब्बती कोई 90000. चीन ने बेहद सुनियोजित तरीके से तिब्बत की जनसँख्या में ही सेंध लगा दी. इसके आलावा 20000 करोड़ रूपए की तिब्बत-चीन रेल प्रोजेक्ट ने दोनों क्षेत्रों को एक पटरी से बाँध दिया. शंघाई के स्कूल प्रोजेक्ट ने भाषा और संस्कृति में बदलाव किये . असर ये हुआ की नई सहस्त्राब्दी के तिब्बत में दलाई लामा ही परदेसी हो गये. चीन ने खुद का लामा भी ढून्ढ लिया. नतीजा, पाकिस्तान से दुगना तिब्बत ..चीन में समा गया और दुनिया देखती रही.
मित्रों सच ये है कि कश्मीर …संयुक्त राष्ट्र संघ क्या भारत पाकिस्तान के बीच का भी मुद्दा नही है. कश्मीर सिर्फ और सिर्फ दिल्ली का मुद्दा है. हल करने के लिए योजनाबद्ध निति और राजनीतिक संकल्प चाहिए. बाकी बहस बेमानी है क्यूंकि बंटवारे के बाद फिर बंटवारा नही होता. FULLSTOP
दीपक शर्मा