भारत ने चीन के साथ लगती विवादित सीमा वाले इलाकों में सड़कें और आर्मी स्टेशन वगैरह बनाने के लिए पर्यावरण संबंधी नियमों को लचीला कर दिया है। नई सरकार चाहती है कि भारत भी चीन की तर्ज पर बॉर्डर एरिया पर शानदार ट्रांसपोर्ट नेटवर्क तैयार किया जाए, ताकि जरूरत पढ़ने पर चीन को उसी की भाषा में जवाब दिया जा सके।
पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने बताया कि उन्होंने अरुणाचल प्रदेश में चीन के साथ लगती सीमा वाले 100 किलोमीटर तक के इलाके में 6000 किलोमीटर सड़कों का जाल बिछाने के लिए पर्यावरण नियमों में ढील दी है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के भारत दौरे से ठीक पहले उठाए गए इस कदम से अब हिमालय के बॉर्डर एरिया में आर्मी स्टेशन, हथियार डिपो, स्कूल और हॉस्पिटल बनाए जा सकते हैं।
जावडेकर ने कहा, ‘चीन ने अपने बॉर्डर एरिया में अच्छी सड़कें और रेलवे नेटवर्क बना लिया है। मगर हमारी सेना को खराब सड़कों की वजह से दिक्कतें आती हैं।’ उन्होंने बताया कि कुछ महीनों के अंदर सड़कें बनाने का काम शुरू हो जाएगा। मोदी सरकार का सड़क बनाने का कार्यक्रम भारत की उस योजना में मददगार साबित हो सकता है, जिसके तहत 80 हजार सैनिकों की ऐसी टुकड़ी की स्थापना की जानी है, जो जरूरत पड़ने पर तुरंत बॉर्डर पर मोर्चा संभाल सके।
4 महीने पहले सत्ता में आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उम्मीद की जा रही थी कि वह पड़ोसी मुल्कों के साथ सीमा विवाद को लेकर कड़ा रुख अपनाएंगे। मई में अपने शपथ ग्रहण समारोह में पड़ोसी मुल्कों के प्रमुखों को आमंत्रित करके नरेंद्र मोदी ने संकेत दे दिया था कि वह विश्व स्तर पर सक्रिय भूमिका निभाना चाहते हैं। उनके इस कदम को साउथ एशिया में पावर डिप्लोमेसी की शुरुआत के तौर पर देखा जा रहा था।
ऑफिस संभालते ही नरेंद्र मोदी ने तुरंत पूर्व आर्मी चीफ वी.के. सिंह को नॉर्थ ईस्ट बॉर्डर रीजन का मंत्री बना दिया था, ताकि वहां पर विकास कार्यों में गति लाई जा सके। सड़कों का निर्माण 84 हजार वर्ग किलोमीटर के बेहद मुश्किल और पहाड़ भरे अरुणाचल प्रदेश में इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए काफी अहम होगा, क्योंकि अब तक यहां कुछ भी खास काम नहीं हो पाया है।
चीन ने तिब्बत में बड़े स्तर पर इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास किया है। वहां पर उसने सड़कें, रेलवे ट्रैक और एयरपोर्ट तक तैयार किए हैं। 2010 में आई पेंटागन की रिपोर्ट के मुताबिक इस इलाके में चीन ने न्यूक्लियर क्षमता वाली मिसाइल्स लगाई हैं और तिब्बत के पठार में 3 लाख सैनिक तैनात किए हैं। अरुणाचल प्रदेश को चीन साउथ तिब्बत कहकर बुलाता है और अपना हिस्सा मानता है। दुनिया के दो सबसे ज्यादा आबादी वाले मुल्क साल 1962 में इस इलाके में लड़ाई लड़ चुके हैं।
इस इलाके में भारत कई सालों तक विकास कार्यों को अंजाम नहीं दे पाया था। पिछली सरकारों ने जानबूझकर अरुणाचल प्रदेश में इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास को नजरअंदाज किया ताकि इस विवादित राज्य में चीन के दखल को टाला जा सके। मगर चीन ने जैसे ही अपनी तरफ निर्माण कार्यों में तेजी लाई, भारत को अपनी यह पॉलिसी छोड़नी पड़ी। इसके बाद हरकत में आते हुए साल 2013 में इससे पहले की यूपीए सरकार ने बॉर्डर एरिया में 850 किलोमीटर सड़कें बनाने का ऐलान किया था। साथ ही एयरफील्ड्स को अपग्रेड करने का प्रस्ताव भी रखा गया था।
भारत और चीन के बीच कुछ उलझा हुआ सा रिश्ता है। एक तरफ तो दोनों के बीच अच्छे आर्थिक रिश्ते हैं, लेकिन जमीन को लेकर दोनों के बीच विवाद सुलझ नहीं पा रहे हैं। मई 2013 में दोनों देशों की सेनाएं 3 हफ्तों तो आमने-सामने डटी रही थीं, क्योंकि चीनी सैनिकों ने भारत के दावे वाले इलाके के 10 किलोमीटर अंदर आकर कैंप लगा दिया था। इसके बाद भारत को जरूरत महसूस हुई कि उसे पेइचिंग के खिलाफ मजबूत स्टैंड लेना होगा।