मायावती नहीं भूली ‘गेस्ट हाउस’ की वो खौफनाक रात
मायावती के स्टेट गेस्ट हाउस कांड का तर्क देकर मुलायम से दोस्ती की संभावनाओं को खारिज करने के बाद फिर से यह साबित हो गया है कि बसपा सुप्रीमो इस घटना की अनदेखी करके कोई समझौता नहीं कर सकतीं।
उनके लिए 19 साल पहले की यह घटना भूलने वाली नहीं है। वैसे राजनीतिक समीक्षकों का भी तर्क है कि पिछड़ों व दलितों में राजनीतिक चेतना के उभार के मद्देनजर भी मायावती के लिए मुलायम से दोस्ती अनुकूल नहीं रहेगी।
मुलायम से दूरी बनाकर ही मायावती दलितों को उस राजनीतिक चेतना का नेतृत्व करने का संदेश दे सकती हैं जिसके आधार पर कांशीराम ने बसपा का गठन किया था।
चेतना के इसी संघर्ष ने 2 जून 1995 को सपा और बसपा का गठबंधन खत्म कराया था। यह बात अलग है कि इसका स्वरूप उस तरह सामने आया जो ठीक नहीं था।
स्टेट गेस्ट हाउस कांड की घटना के साक्षी रहे लोग बताते हैं कि पंचायतों के चुनाव से गांठ का बीज पड़ा।
इन चुनाव के जरिये मुलायम सिंह सूबे में अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहते थे जबकि कांशीराम की इच्छा सत्ता में भागीदारी के सहारे पंचायतों में भी जमीन तलाशने की थी।
वह बीमार थे तो यह काम मायावती के ऊपर था। लखनऊ में जिला पंचायत के चुनाव में दलित वर्ग की एक महिला प्रत्याशी को नामांकन भरने से जबरिया रोकने की घटना ने तूल पकड़ लिया। दोनों के लिए यह प्रतिष्ठा का सवाल बन गया।
मायावती ने चेतावनी दी तो मुलायम भी झुकने को तैयार नहीं हुए। इस पर बसपा ने मुलायम से समर्थन वापस लेने का ऐलान कर दिया। मायावती लखनऊ में मीराबाई स्टेट गेस्ट हाउस में थीं।
लोगों की भीड़ ने गेस्ट हाउस घेर लिया। जमकर हंगामा किया। भीड़ में सपा से जुड़े कई चेहरे भी थे। मायावती ने खुद को कमरे में बंद कर लिया तो उसका दरवाजा तोड़ने की कोशिश की। सत्ताबल के आगे पुलिस मूकदर्शक खड़ी दिखी।
घटना की सूचना मिलने पर भाजपा नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी और लालजी टंडन मौके पर पहुंचे और भाजपा कार्यकर्ताओं की मदद से मायावती को जैसे-तैसे सुरक्षित निकाला। कुछ लोग बताते हैं कि मायावती रात भर गेस्ट हाउस में बंद रही थीं।
बाद में भाजपा ने बसपा को समर्थन देकर 3 जून को मायावती के नेतृत्व में सरकार बनवाई।