गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने माओवाद से निपटने की नई नीति बनाने का आदेश दिया है। सरकार का इरादा तीन साल में नक्सलवाद को जड़ से खत्म करने का है। इस मसले पर सभी माओवाद प्रभावित राज्यों और केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी ली जाएगी।
हाल में इंटेलिजेंस ब्यूरो ने सिंह के सामने दिए गए प्रेजेंटेशन में बताया था कि माओवादी रक्षात्मक मुद्रा में हैं और हिंसा का लेवल घट गया है। खुफिया ब्यूरो ने हालांकि बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ के नक्सल विरोधी ऑपरेशन पर चिंता जताते हुए इसके खिलाफ लड़ाई के लिए एकीकृत रवैया अपनाने की बात भी कही थी।
इंटेलिजेंस ब्यूरो के एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि इस नई नीति को गृह मंत्रालय जल्द माओवाद प्रभावित राज्यों के पास उनकी टिप्पणी और राय के लिए भेजेगी। इसके बाद कैबिनेट से इसकी मंजूरी मांगी जाएगी। मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया, ‘नई नीति के अमल में आने के बाद अगर कोई भी राज्य इससे पीछे हटता है, तो उसकी इस मद में दी जाने वाली राशि में कटौती हो जाएगी।’
इससे पहले बीजेपी ने देशभर के लिए एक समान नक्सली विरोधी नीति नहीं होने पर यूपीए सरकार की आलोचना की थी। बाद में बिहार ने माओवादियों के खिलाफ अभियान में केंद्र के रवैये से उसने असहमति जताई थी।
इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारी ने बताया कि गृह मंत्री ने हाल के प्रेजेंटेशन में माओवादियों को खत्म करने के लिए आक्रामक रुख अपनाने की बात कही। उनका यह भी कहना था कि माओवादी हिंसा का मौजूदा लेवल पिछले 14 साल में सबसे कम है और माओवादियों को लीडरशिप संकट, सैद्धांतिक पतन, आंदोलन के कमजोर होने जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
प्रेजेंटेशन के मुताबिक, सीपीआई (माओवादी) के 6,000 सशस्त्र काडर हैं, जबकि जन मिलीशिया के 36,000 ऐसे काडर हैं। इनके पास 4,000 रेग्युलर और 6,000 देसी हथियार हैं। इसमें कहा गया कि छत्तीसगढ़ के सुकमा और बीजापुर जिले के साथ महाराष्ट्र का गढ़चिरौली इलाका माओवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित है और इन इलाकों पर निशाना साधने की जरूरत है।
छत्तीसगढ़ का दक्षिणी हिस्सा माओवाद का गढ़ है और टॉप लीडरशिप का ठिकाना होने के अलावा वहां पर सशस्त्र माओवादियों की बड़ी फौज है। इंटेलिजेंस ब्यूरो के प्रेजेंटेशन में कई और चिंताओं का जिक्र किया गया, जिसके बाद सरकार को माओवाद-विरोधी नई नीति तैयार करने की जरूरत महसूस हुई है।