नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्रीय बजट में साल दर साल न्यायपालिका के लिए बहुत कम होते जा रहे पैसे के प्रावधान का उपहास उड़ाया। इस वजह से जजों और न्यायपालिका के लिए जरूरी बुनियादी ढांचे की कमी दूर नहीं हो पा रही है। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआइ) आरएम लोढा ने इस पर टिप्पणी की। उन्होंने सर्वोच्च न्यायपालिका पर काम का बहुत अधिक बोझ होने की बात भी कही।
सीजेआइ लोढा न्यायमूर्ति जगदीश सिंह खेहर, जे चेमलेश्वर, एके सिकरी और रोहिंगटन फली नरीमन की सदस्यता वाली संविधान पीठ में एक साथ कई याचिकाओं की सुनवाई कर रहे थे। इन याचिकाओं में कहा गया था कि मौत की सजा के मामले में अपील की सुनवाई पांच सदस्यीय पीठ करे। याचिका दायर करने वालों ने यह भी मांग की थी कि सुप्रीम कोर्ट की मौत की सजा कायम रखने के फैसले की पुनरीक्षण याचिका की सुनवाई भी पांच न्यायाधीशों की पीठ खुली अदालत में करे। सीजेआइ ने कहा कि 16 अगस्त से मौत की सजा के मामलों में अपील की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीशों की पीठ करेगी।
सीजेआइ ने कहा कि न्यायपालिका के लिए बजटीय प्रावधान एक फीसद भी नहीं है। यह .4 फीसद है। एक अरब 27 करोड़ से अधिक की आबादी पर देश में भारत के मुख्य न्यायाधीश से लेकर निचली न्यायपालिका तक मुश्किल से 19 हजार न्यायाधीश और न्यायिक अधिकारी हैं। यह व्यवस्था आगे बढ़कर काम करने की इजाजत नहीं देती। उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा कि दुनिया के सबसे छोटे देश में जज और आबादी का अनुपात इतना कम नहीं है।
उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट पर काम का बोझ बहुत अधिक है और उस तक मामलों के आने पर कोई नियंत्रण नहीं है। कोर्ट ने वकील समुदाय से उपाय सुझाने को कहा जिससे मुकदमों का निपटारा तेजी से हो सके। सीजेआइ ने पूरे साल अदालतों को के काम करने के हाल में दिए अपने प्रस्ताव पर वकीलों के संगठन ने जिस तरह से प्रतिक्रिया व्यक्त की उस पर भी नाखुशी जताई।