महात्मा गांधी के बारे में ये क्या बोल गई अरुंधती रॉय?

arundhati-roy-53c8cf5951a1f_exlstप्रसिद्ध लेखिका और बुकर पुरस्कार विजेता अरुंधती रॉय ने एक बार फिर से गांधी को जातिवादी कहा है। ये कोई पहला मौका नहीं है जब उन्होंने ऐसा कुछ कहा हो।

इससे पहले भी उन्होंने गांधी पर जातिवादी होने के आरोप लगाए थे लेकिन गुरुवार को उन्होंने एक कार्यक्रम के दौरान महात्मा गांधी पर सवाल खड़े करते हुए देशभर में राष्ट्रपिता के नाम पर खुले संस्थानों के नाम बदलने की मांग कर दी है।

रॉय ने कहा कि संस्थानों के नाम बदलने की शुरूआत महात्मा गांधी विश्वविद्यालय से होनी चाहिए। उन्होंने ये बातें केरल विश्वविद्यालय के नामी संस्थान महात्मा अयानकाली में कही। जिसका नाम राज्य के प्रसिद्ध दलित नेता की याद में रखा गया है।अपनी बात साबित करने के लिए रॉय ने 1936 में गांधी के लिखे एक निबंध (द आइडियल भंगी) का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि इस लेख में, “वह मैला ढोने वालों को सलाह दे रहे हैं कि मल-मूत्र से खाद बनाएं। उनकी इस बात से साफ है कि वो हरिजन व्यवस्था को बनाए रखने के पक्षधर थे।”

हालांकि रॉय की बातों से इंकार करते हुए सेंटर फॉर गांधी एस्टडीज के संयोजक जेएम रहीम ने इस मुद्दे पर गांधी की जीवनी ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ का जिक्र किया।

उन्होंने बताया, “गांधी हमेशा से इसके खिलाफ लड़ते रहे, इसका पता इस बात से चलता है कि उन्होंने अपना मल-मूत्र मैला ढोने वाले से नहीं बल्कि अपनी पत्नी से साफ करने के लिए कहा, लेकिन जब उन्होंने इसका विरोध किया तो उन्होंने ये काम भी खुद से किया।”रहीम ने अरुंधती पर निशाना साधते हुए कहा कि गांधी को बिना किसी उदाहरण और संदर्भ के जातिवादी कहना उनकी सोच को दर्शाता है। उन्होंने आगे कहा कि अरुंधती रॉय उनके दर्शन को नहीं समझ पाई हैं।

रहीम ने इसके लिए एक उदाहरण भी दिया जिसमें उन्होंने बताया कि दक्षिण अफ्रीका में एक बार महात्मा गांधी ने अपने साथियों के विरोध के बाद भी कुष्ठ रोग से पीड़ित दलित दंपती को अपने आश्रम में रखा था।

अपनी बात रखते हुए अरुंधति रॉय ने बीजेपी पर भी जातिवादी राजनीति का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा था कि बाल्मीकि समाज सैकड़ों वर्षों तक समाज को साफ करने का काम किया, इसलिए अब वो आध्यात्मिक रूप से साफ हो चुके हैं।”

अपने भाषण में अरुंधति रॉय ने दावा किया कि दक्षिण अफ्रीका में गांधी ने अश्वेत कैदियों को काफिर की उपाधि दी थी और उन्हें असभ्य और झूठ बोलने वाला कहा था।हालांकि महात्मा गांधी विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ गांधियन थॉट ऐंड डिवेलपमेंट के डायरेक्टर प्रोफेसर एमएस जॉन ने कहा, “यह मानना गलत होगा कि गांधी को जैसा हम जानते हैं वह वैसे शुरू से थे।”

उन्होंने बताया कि गांधी शुरू से उग्र सुधारवादी नहीं थे। अश्वेत कैदियों के बारे में उन्होंने जो कुछ भी कहा वह जेल में रहते हुए उनके अनुभवों के आधार पर था। ये सबकुछ समय के साथ हुआ।

इस मुद्दे पर कवि और सामाजिक कार्यकर्ता सुगाथा कुमारी ने अरुंधती रॉय पर सस्ती लोकप्रियता के लिए ऐसे बयान देने की बात कही है।

उन्होंने गांधी पर रॉय की टिप्पणी को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। उन्होंने कहा, “गांधी भारतीय संस्कृति और जड़ों को गहराई तक जानते थे।”