आम बजट में रक्षा और बीमा क्षेत्र के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की वकालत करते हुए भले ही वित्त मंत्री अरुण जेटली इसे प्रगतिशील कदम बता रहे हैं लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मजदूर इकाई और किसान इकाई ने एफडीआई को 26 से बढ़ाकर 49 फीसदी किए जाने के प्रस्ताव का विरोध किया है।
भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने इस पर आपत्ति जाहिर करते हुए वित्त मंत्री को एक चिट्ठी लिखी है। साथ ही जरूरत पड़ने पर प्रधानमंत्री दरबार तक मामला पहुंचाने की बात कही जा रही है।
जेटली को लिखी गई चिट्ठी में एफडीआई के अलावा सरकारी बैंकों में विनिवेश, सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल, विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) को पुनर्जीवित करने की मंशा और रेलवे के लिए विदेशी निवेश का रास्ता तैयार करने जैसे बजट में किए गए प्रस्तावों की आलोचना की गई है और इन्हें वापस लेने की मांग की है।
बीएमएस के महासचिव बृजेश उपाध्याय ने कहा कि रेल बजट और आम बजट में कुछ ऐसे प्रावधान किए गए हैं जिस पर बीएमएस और भारतीय किसान संघ को आपत्ति है। हमने अपनी आपत्ति लिखित तौर पर वित्त मंत्री को भेज दी है। अगर सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो 18-20 जुलाई के बीच राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली कार्यकारी बैठक में आगे के लिए एक्शन प्लान तैयार किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि सरकार को पूर्व के उदाहरणों से सबक लेना चाहिए। पहले की सरकारों में भी पीपीपी मॉडल को सफलता नहीं मिल सकी है। निजी क्षेत्र की ओर से निवेश करने के बाद उसे उगाहने की जल्दबाजी होती है और इसका खामियाजा आम आदमी को भुगतना पड़ता है।
बीमा क्षेत्र में एफडीआई पर विरोध जताते हुए उन्होंने कहा कि निजी बीमा कंपनियों पर वित्तीय संकट आने के बाद आम आदमी के बीमा की जिम्मेदारी कौन लेगा। यह कदम आम आदमी और सरकार दोनों के लिए असुरक्षित है। उन्होंने कहा कि अगर वित्त मंत्री ने उनकी बातों पर गौर नहीं किया तो प्रधानमंत्री से गुहार लगाई जाएगी।