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चुनौती भरा है गंगा प्रोजेक्ट

varanasi-53aaa70972611_exlstप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट संगम नगरी से हल्दिया तक देश के सबसे बड़े जलमार्ग को पुनर्जीवित करना चुनौती भरा है।

गंगा में इलाहाबाद में बमरौली से फाफामऊ और संगम तक लगभग 15 फीट गाद जमा हो गई है। संगम से आगे सिरसा तक नदी में बस गाद ही गाद है।

राष्ट्रीय जलमार्ग प्राधिकरण से जुड़े लोगों का कहना है कि गंगा में बस दो मीटर पानी होगा तो भी जहाज चला लेंगे लेकिन संगम से पहले और आगे 40 किलोमीटर तक पानी केवल 80 सेंटीमीटर तक है। यानी एक मीटर से भी कम। ऐसे में संगम से कार्गो जहाज चलाने के लिए पहले गंगा की सफाई करनी होगी।इलाहाबाद से हल्दिया के बीच वर्ष 1998 में पहला कार्गो जहाज ‘रजनीकांत’ चला जो शहर में सरस्वती घाट तक आया। वर्ष 2003 में एमवी राजगोपालाचारी नाम का कार्गो जहाज सरस्वती घाट से हल्दिया के लिए रवाना किया गया, जो अपने साथ 600 मीट्रिक टन सीमेंट लेकर गया।

इसे देखने के लिए आसपास के जिलों से हजारों लोग यहां पहुंचे थे। 2003-04 में ही नए यमुनापार की निर्माण सामग्री भी कार्गो जहाज से ही पहुंचाई गई थी लेकिन इसके बाद गंगा में तेजी से जमा हुई गाद कार्गो जहाज के रास्ते में रोड़ा बन गई और फिर कोई बड़ी कार्गो शिप सरस्वती घाट तक नहीं पहुंची और न ही यहां से रवाना की जा सकी।

दरअसल, कार्गो जहाज के लिए न्यूनतम दो मीटर का जल स्तर होना चाहिए। विशेषज्ञों का कहना है कि कुछ नए आधुनिक जहाज आ गए हैं, जो डेढ़ मीटर के जलस्तर पर भी चल जाते हैं लेकिन इलाहाबाद से सिरसा के बीच गंगा में जलस्तर इतना भी नहीं है। बाढ़ के दौरान जलस्तर जरूर बढ़ जाता है।पिछले साल इलाहाबाद में हल्दिया से दो कार्गों जहाज आए लेकिन सिरसा से इलाहाबाद के बीच गाद जमा होने के कारण जहाज पर लदा सामान सरस्वती घाट न लाकर दूसरी जगह उतारा गया।

सात अक्तूबर 2013 को कार्गो जहाज 601 मीट्रिक टन वजन लेकर शंकरगढ़ पहुंचा था। इस पर बारा पावर प्रोजेक्ट के लिए ट्रांसफार्मर लाए गए थे जबकि एक अन्य जहाज 343 मीट्रिक टन वजन लेकर कोहड़ार घाट तक पहुंचा था। दोनों जहाज बारिश के ठीक बाद अक्तूबर में आए थे इसलिए वहां तक जा सके।

जानकारों की मानें तो मूलरूप में कभी गंगा की गहराई जहां अस्सी फीट हुआ करती थी, वहां आज इसकी घाटी में एक मीटर से भी कम जल रह गया है।

गंगा पर काम करने वाले इलाहाबाद विवि के डॉ. एसएस ओझा के मुताबिक गंगा में प्रवाह कम होने से सिल्ट की मात्रा बहुत ज्यादा हो गई है। गंगा किनारे बसी बस्तियों का सॉलिड वेस्ट शत प्रतिशत गंगा में ही जा रहा है। संगम के पास सिर्फ नदियों का ही नहीं गाद का भी संगम हो रहा है। यहां दो मिलीमीटर प्रतिवर्ष की दर से सिल्ट जमा होने से गंगा घाटी लगातार उथली हो रही है।इलाहाबाद विवि के वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर दीनानाथ शुक्ल कहते हैं, ‘जब तक न होंगी गंगा अविरल, तब तक न होगी धारा निर्मल।’

दरअसल गंगा की पहचान उसकी तीव्रधारा है लेकिन इसकी अविरलता में अवरोध के कारण ही गंगा निरंतर उथली होती गई है। नरोरा के बाद से गंगा में मूल जल नहीं आ रहा है।

जल का प्रवाह न होने और गंगा की बालू काफी महीन होने से यह बहुत आसानी से नीचे बैठ जाती है। ड्रेजिंग तो तत्काल जरूरी है। यदि सभी बांधों से गंगा को छोड़ दें तो गंगा अपनी गाद और प्रदूषण दोनों को बहा ले जाएगी।

गंगा पर पिछले पांच वर्ष से अध्ययन कर रहे डॉ. एनके नारायण का कहना है कि कानपुर के लेकर मिर्जापुर तक गंगा की ड्रेजिंग करा दी जाए तो बड़ी समस्या हल हो सकती है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इसके लिए दो ड्रेजिंग मशीन खरीदने का आदेश दिया था लेकिन सरकारी लापरवाही के कारण कुछ नहीं हो सका। यह तय है कि बिना सफाई के बिना इस योजना पर अमल संभव नहीं है।

NCR Khabar News Desk

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