नई दिल्ली, इस आम चुनाव ने तय कर दिया है कि नई लोकसभा में सिर्फ सत्ता और विपक्ष की सीटें नहीं बदलें, बल्कि एक दशक से राज करने वाले पूरी तरह सीन से ही गायब हो जाएं। दस साल से देश की सबसे ताकतवर कुर्सी पर बैठने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सहित उनकी अधिकांश कैबिनेट लोकसभा में दाखिल तक नहीं होगी। जबकि, पहली बार संसद आ रहे नरेंद्र मोदी देश की बागडोर संभालेंगे। अपनी मधुर आवाज में ‘बैठ जाइए’ और ‘शांत हो जाइए’ कहकर पांच साल से सदन की कार्यवाही चला रहीं लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार अब सदन में नहीं दिखेंगी। दूसरी तरफ सत्ता बेंच पर 60 फीसद से ज्यादा वे चेहरे होंगे, जो पिछली बार संसद में नहीं थे।
मनमोहन अब भी राज्यसभा में होंगे, लेकिन विपक्ष की ओर से उनको कोई अहम भूमिका दिए जाने की संभावना नगण्य ही है। सत्ता में सबसे ताकतवर रहे उनके कैबिनट सहयोगियों का भी यही हाल होगा। रक्षा मंत्री एके एंटनी और वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने जहां चुनाव ही नहीं लड़ा, वहीं गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे और विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद हार का मुंह देखने के बाद प्रभावहीन रहेंगे। पार्टी और सरकार का चेहरा बने कानून मंत्री कपिल सिब्बल और कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति में अहम भूमिका निभाते रहे स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद भी चुनाव में शिकस्त पाने के बाद अब दृश्य से बाहर होंगे। पिछली लोकसभा में तीसरे, चौथे और पांचवें नंबर वाली पार्टियां भी अपनी चमक खो चुकी हैं। 21 सांसदों वाली तीसरी सबसे बड़ी पार्टी रही बसपा जहां शून्य पर पहुंच गई है, वहीं इतनी ही सीट वाली सपा भी पिछली बार के मुकाबले चौथाई संख्या पर अटक गई है।
भाजपा ने ना सिर्फ बहुमत हासिल किया है, बल्कि कई राज्यों में तो सौ फीसद सीटें अपने नाम कर ली हैं। दिल्ली, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड, चंडीगढ़, दमन दीव, दादर व नागर हवेली और अंडमान निकोबार में किसी अन्य पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली। मध्य प्रदेश में दो और उत्तर प्रदेश की सात सीटों को छोड़ दिया जाए तो इन दो बड़े राज्यों में भी भाजपा छाई रही। पिछली लोकसभा के 112 सांसदों से सीधे पूर्ण बहुमत से भी ज्यादा सीटों पर पहुंची भाजपा के 60 फीसद से ज्यादा सांसद ऐसे होंगे, जो पिछली बार सदन में नहीं थे।
भ्रष्टाचार के मामले में रेल मंत्रालय छोड़ने को मजबूर हुए वरिष्ठ कांग्रेसी नेता पवन बंसल भले ही हार गए हों, लेकिन बहुचर्चित आदर्श घोटाले में नाम आने के बावजूद कांग्रेस के नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण जीत गए। इसी तरह के आरोपों में कर्नाटक के मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने को मजबूर हुए बीएस येद्दयुरप्पा और उनके साथी बी श्रीरामुलू भी जीत गए। लालू प्रसाद संसद के लिए अयोग्य करार दिए जाने के बाद पत्नी और बेटी को तो जितवाने में कामयाब नहीं हुए, लेकिन बाहुबली पप्पू यादव अब उनकी पार्टी के माननीय सांसद होंगे। पांच साल से लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ही नहीं कई दशक से सदन में बने रहे जदयू अध्यक्ष शरद यादव भी इस बार संसद नहीं पहुंच पाए। इसी तरह रालोद अध्यक्ष अजीत सिंह और नेशनल कांफ्रेंस के पूर्व अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला भी अपनी सीट नहीं बचा पाए।