फैजाबाद । अयोध्या में बहाव तेज है, घाट पर सरयू का तो मतदान केंद्र में वोटरों का। कड़क धूप में भी मतदान केंद्रों पर लंबी कतारें हैं। मानों सूरज से जोर आजमाइश हो। हालांकि, तेज चल रही हवा ने वोटरों को राहत जरूर दी है। ऐसे में फैजाबाद से भाग्य आजमा रहे उम्मीदवार भी चुनावी नदी पार करने के लिए ऐसी ही किसी अनुकूल हवा की उम्मीद में हैं। पूर्वाचल का दरवाजा माने जाने वाले फैजाबाद में राजनीतिक पार्टियों की प्रतिष्ठा दांव पर है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष निर्मल खत्री पार्टी की प्रतिष्ठा का परचम लेकर मैदान में हैं, तो भाजपा के लिए यह ऐसी सीट है, जो चाहे अनचाहे उसकी पहचान के साथ चस्पा है।
वह अयोध्या आंदोलन ही था, जिसने भाजपा को दो सीटों वाली पार्टी से मुख्य विपक्षी दल की हैसियत दी। शायद इसीलिए यहां मध्यमार्गी भाजपा के पितृ पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी भी राम गुण गाते हैं, तो विकास की राजनीति कहने वाले मोदी को भी वचन निभाने के बहाने ही सही राम नाम लेना ही पड़ता है। अयोध्या में रसूख तो सपा और बसपा का भी दांव पर है। एक प्रदेश में सत्ताधारी है तो दूसरी के पास सबसे मजबूत माना जाने वाला वोट बैंक, जो शत-प्रतिशत हस्तांतरित होने के कारण किसी भी सीट पर जिताऊ समीकरण बना देता है।
इसके बावजूद इस बार चुनाव का फैजाबादी मुकाबला अलग है। जातियों की जकड़न और दबंग राजनीति की अकड़ दोनों ही हाशिये पर हैं। बाबाओं की नगरी अयोध्या का बिहारी कनेक्शन भी तगड़ा काम करता दिख रहा है। बिहार से चली मोदी लहर के असर ने यहां के आश्रमों में रहने वाले बिहारी छात्रों और महाराजों के जरिये पहले ही पैठ बना ली थी। मोदी की रैली के बाद सबके समीकरण और उलझ गए हैं। चुनावी बूथों का नजारा कुछ ऐसी ही चुगली करता दिख रहा है। अपनों के विरोध के बावजूद भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह मजबूत दिख रहे हैं।
वहीं, बसपा के जितेंद्र कुमार सिंह के लिए अपने वोटों को पाले में रख पाना मुश्किल हो गया है। कम्युनिस्ट से सपाई फिर बसपाई फिर सपाई हुए मित्रसेन अपने नाम के अनुरूप हरदिल न सही हरदल अजीज तो हैं ही। फैजाबाद के मुख्तार मियां कहते हैं कि ‘नेताजी मुसलमानन कै रहनुमा आय तबौ हम आपन वोट कांग्रेस का देब मोदी सै कांग्रेसय लड़ी दिल्ली मा।’ वहीं पहली बार वोट देने के लिए निकले अनुराग कहते हैं कि मजबूत नेता है मोदी, इसलिए मोदी को वोट देंगे। अल्पसंख्यक कांग्रेस और सपा में बराबर बंटते दिख रहे हैं। हां गांवों में जोर साइकिल की ओर ज्यादा है। अयोध्या फैजाबाद में राजनीति के पक्के घाट पर सरयू की धार जितनी साफ है, ग्रामीण इलाकों में यह बलुई नदी सरीखी है।