प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते ही देश के नाभिकीय हथियारों की चाबी नरेंद्र मोदी के हाथों में सौंप दी जाएगी। 26 मई के बाद मोदी नाभिकीय मामलों के कमांड, कंट्रोल और ऑपरेशन संबंधी अहम फैसले लेने वाली अति गोपनीय न्यूक्लियर कमांड अथॉरिटी (एनसीए) की कमान भी संभाल लेंगे।
माना जा रहा है कि मोदी की अगुवाई वाली सरकार में भारत के न्यूक्लियर डॉक्ट्रीन यानि नाभिकीय सिद्धांतों में बड़ा परिवर्तन होगा।
भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में तैयार किए गए नाभिकीय सिद्धांतों में संशोधन कर उसे मौजूदा दौर की चुनौतियों में प्रासंगिक बनाने की बात कही गई है।
साथ ही चीन और पाकिस्तान के बदलते परिवेश में विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोधक क्षमता यानी क्रिडेबल मिनीमम डिटरेंट कैपेसिटी (सीएमडीसी) को भी सामरिक लिहाज से बनाने की योजना है।
उच्चपदस्थ सूत्रों ने अमर उजाला को बताया कि भाजपा नाभिकीय हथियारों के नो फर्स्ट यूज यानी पहले हमला नहीं करने के पुराने सिद्धांतों में फेरबदल पर गौर कर सकती है।
इसके तहत दुश्मन देश के जैविक या रसायनिक हथियारों के इस्तेमाल की सूरत में भारत के न्यूक्लियर हथियारों के इस्तेमाल की संभावनाओं को खोलना एक विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है।
रक्षा और पाकिस्तान मामलों के विशेषज्ञ मारुफ रजा ने अमर उजाला को बताया कि नो फर्स्ट यूज के सिद्धांतों से जुड़ा सबसे बड़ा सवाल है कि अगर दुश्मन देश परमाणु बम से भारत पर हमला करता है तो क्या भारत उसे बर्दाश्त करते हुए जवाबी कार्रवाई की हालत में रहेगा या नहीं। रजा के मुताबिक इस हालात को सेकेंड स्ट्राइक कैपबिलिटी कहा जाता है।