दंगे के आठ माह बीतने के बाद भी मुजफ्फरनगर जिले के हालात नाजुक हैं। आलम यह है कि दो हफ्ते के अंतराल में ही जिले में सांप्रदायिक तनाव की सात बड़ी वारदातें हो चुकीं हैं। इनमें से तीन जानसठ और चार शहर क्षेत्र में हुईं। हालांकि हर बार पुलिस-प्रशासन ने बवालियों की कोशिशों को नाकाम कर दिया।
जिले में पिछले 15 दिन के भीतर सात ऐसी घटनाएं हुईं, जिन्हें चंद ‘सिरफिरे’ तत्वों ने सांप्रदायिकता का चोला ओढ़ाने की भरसक कोशिशें कीं। 25 अप्रैल को इसकी शुरुआत हुई जानसठ के हुसैनपुरा से।
मामूली विवाद में दलित और मुस्लिम पक्ष के बीच जमकर पथराव और संघर्ष हुआ। 27 अप्रैल को संभलहेड़ा संपर्क मार्ग पर बारात से लौट रही दो गाड़ियों की साइड लगने के मामूली विवाद को सांप्रदायिक तूल दे दिया गया।
इसके तीन दिन बाद ककरौली थाना क्षेत्र के गांव जटवाड़ा में कार की टक्कर से 19 साल के फैद अली की मौत के बाद बवाल हुआ। भीड़ ने कार सवार दो दलित भाइयों को एक मकान में बंधक बनाकर चार घंटे तक मारपीट कर यातनाए दीं। घटना से इलाके में सांप्रदायिक तनाव की स्थिति बनी लेकिन पुलिस ने स्थिति पर काबू पा लिया।
28 अप्रैल को सुजडू़ निवासी यामीन की नयागांव क्षेत्र में मामूली विवाद में हत्या कर दी गई। आरोपी जाट समुदाय से होने के चलते भड़की भीड़ ने वहलना और हाइवे पर जाम लगाकर जमकर बवाल किया।
पथराव में कई पुलिसकर्मी घायल हुए लेकिन कोई एक्शन नहीं लिया गया।
एक अप्रैल को शहर के गांव कूकड़ा में बच्चों के बीच हुई कहासुनी में दो समुदाय आमने-सामने आ गए। यहां भी जमकर पथराव और हंगामा हुआ लेकिन पुलिस ने स्थिति नियंत्रित कर ली। शुक्रवार को छह घंटों के अंतराल पर हुई दो वारदातों में शहर सांप्रदायिक तनाव की आग में झुलसने से बाल-बाल बच गया।
पहले छात्र उवेश की हत्या और फिर अस्पताल तिराहे पर छात्र की बेरहमी से पिटाई ने शहर की आबोहवा में जहर घोल दिया। दोनों घटनाओं में पुलिस ने त्वरित कार्रवाई कर स्थिति पर काबू तो पाया लेकिन कब तक हालात नियंत्रण में रहेंगे, इसे लेकर शहर में चर्चाओं का बाजार गर्म है।