हाईटेक शहर नोएडा कांग्रेस की ही देन है और औद्योगिक वातारण तैयार करने में पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी को ही श्रेय जाता है।
लेकिन जब से चुनाव के वक्त हाईकमान ने स्थानीय कांग्रेसियों को तवज्जो न देकर बाहरी प्रत्याशियों को मौका देना शुरू किया, कांग्रेस का बुरा हश्र शुरू हो गया। शुक्रवार को जब मतगणना हुई तो कांग्रेस का कोई नाम लेने वाला नहीं था, हालांकि फिर भी पुराने कांग्रेसियों ने हाथ के बटन को ही दबाया।
ध्यान देने की बात है कि पिछले 10 साल में स्थानीय कांग्रेस में ऊर्जा देने का प्रयास किया जा रहा है। इसका परिणाम 2012 के विधान सभा के चुनाव में देखने को मिला।भट्टा पारसौल आंदोलन के दौरान राहुल गांधी ने किसानों का पक्ष लेकर अंतिम सांस गिन रही कांग्रेस में जान फूंक दी थी। पांच में से खुर्जा विधान सभा पर कांग्रेस प्रत्याशी जीत हासिल की और भट्टा पारसौल वाले क्षेत्र की विधान सभा जेवर में अच्छे वोट पाकर दूसरे स्थान पर रही।
स्थानीय संगठन को विश्वास था कि 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी स्थानीय होने के साथ-साथ मजबूत होगा। कार्यकर्ताओं में जोश भी था लेकिन जब प्रत्याशी घोषित होने की बारी आई तो फिर से डॉ.रमेश चंद्र तोमर को टिकट थमा दिया गया।
जबकि खूब पता था कि 2009 के चुनाव में तोमर चौथे स्थान पर रहे थे। लेकिन जानबूझकर की गई गल्ती से स्थानीय कांग्रेसियों का जोश ठंडा पड़ गया।
तोमर ने चुनाव प्रचार भी शुरू किया लेकिन अचानक पार्टी छोड़कर भाजपा की गोद में जा बैठे। पार्टी कुछ नहीं कर सकी क्योंकि नामांकन वापसी की तिथि भी निकल चुकी थी और किसी दूसरे को प्रत्याशी बनाना भी मुमकिन नहीं था।
क्षेत्र की जनता के साथ छलावा हुआ था. बल्कि पूरे देश में कांग्रेस की बदनामी हुई। इस घटना के बाद देश में कई स्थानों पर प्रत्याशियों ने चुनाव मैदान से हटने की घोषणा कर दी थी।
कांग्रेस के जानकार मानते हैं कि जितनी मेहनत राहुल गांधी ने यहां के कांग्रेसियों में जोश भरने के लिए की थी, उससे लगने लगा था कि आने वाले समय में कांग्रेस यहां पर मजबूत होगी लेकिन जितनी पार्टी उठी, उतने से ज्यादा रसातल में जा पहुंची हैं। जब से तोमर ने पार्टी को गच्चा दिया था. तभी से पार्टी और नीचे खिसकती जा रही है।