न सत्ता बची न साख

17_05_2014-16sonia17नई दिल्ली, संप्रग तीन की सरकार बनाने का दम भर कर चुनावों में उतरी कांग्रेस न सत्ता बचा पाई न साख। देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी अपनी ऐतिहासिक हार से दो चार है। 2009 में 206 सीटें हासिल करने वाली पार्टी महज 53 सीटों तक सिमट कर रह गई। संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने जनता के आदेश के आगे हार तो स्वीकार कर ली, लेकिन राहुल के चेहरे की फीकी मुस्कान हालात की चुगली करने को काफी थी। हार के पतझड़ में कभी पार्टी का गढ़ रहे यूपी में राहुल और सोनिया ही अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। जबकि देश भर में पार्टी के बड़े-बड़े दिग्गज धराशायी हो गए। इनमें टीम राहुल के सदस्य भी शामिल रहे।

महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में सरकार के होते हुए भी कांग्रेस को दुर्गति का सामना करना पड़ा। हार से निराश असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई और महाराष्ट्र के मंत्री नारायण राणे ने जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए इस्तीफे का एलान भी कर दिया। चुनाव परिणामों से कांग्रेस पार्टी सदमे में है। सत्ता विरोधी लहर और पार्टी की निष्क्रियता से उपजी नाराजगी को जापानी कंपनियों का प्रचार अभियान और प्रियंका की मनुहार भी रोक पाने में नाकाम रही। हाल में ही हुए विस चुनावों में हार के बाद पार्टी को पत्रकारों की कल्पना से भी ज्यादा बदल देने का वादा करने वाले राहुल की टीम लोकसभा चुनावों में चारों खाने चित हो गई है। हारने वालों की बात करें तो राहुल के करीबियों अजय माकन, सीपी जोशी, जितिन प्रसाद, मधुसूदन मिस्त्री, सचिन पायलट, ज्योति मिर्धा, मीनाक्षी नटराजन, भंवर जितेंद्र सिंह, हरीश चौधरी, आरपीएन सिंह, प्रताप सिंह बाजवा जैसे दिग्गज चुनावी समर में ढेर हो गए।

टीम राहुल के विफल रणनीतिकार

मोहन गोपाल

सेबी प्रमुख सीबी भावे पर अधिकारों के दुरुपयोग का आरोप लगाकर चर्चा में आए मोहन गोपाल राहुल के सबसे करीबी सलाहकार माने जाते हैं। युवा कांग्रेस में चुनाव हों या घोषणा पत्र के लिए विभिन्न वर्गो से मुलाकात करने की पहल। गरीबी की रेखा और मध्यवर्ग के ऊपर के वर्ग का नया वोट बैंक भी मोहन गोपाल का ही आइडिया था। इनमें कोई भी मुद्दा काम नहीं आया बल्कि इन प्रयोगों ने चुनावों में खड़ी पार्टी को और दिग्भ्रमित ही किया।

मधुसूदन मिस्त्री

कर्नाटक और केरल में पार्टी की जीत का सेहरा पहन कर आए मिस्त्री के जिम्मे राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी थी। यहां उनका मुकाबला मोदी के सिपहसालार बने अमित शाह से था। प्रदेश में टिकट बंटवारे में अनियमितताओं के बीच मधुसूदन राजनीतिक रूप से बेहद अहम राज्य को छोड़कर मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने वडोदरा चले गए।

मोहन प्रकाश

मोहन प्रकाश भी टीम राहुल का हिस्सा हैं। मोहन प्रकाश के जिम्मे मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र का प्रभार था। इन राज्यों में कांग्रेस अब तक के सबसे खराब प्रर्दशन की ओर अग्रसर है।

सीपी जोशी

राहुल गांधी के सलाहकार और करीबी माने जाने वाले जोशी के जिम्मे बिहार जैसा महत्वपूर्ण राज्य था, लेकिन पहले गठबंधन में देरी और उसके बाद राज्य की राजनीति को रिमोट से साधने की जोशी की शैली ने बिहार में न सिर्फ कांग्रेस का नुकसान किया बल्कि राज्य में वापसी कर रही राजद का खेल भी खराब किया। जोशी सीट बदलने के बावजूद लोकसभा चुनाव भी हार गए।

जयराम रमेश

राहुल के महत्वाकांक्षी भूमि अधिग्रहण बिल को संसद की चौखट पार कराने वाले जयराम रमेश पर काफी दारोमदार था। अपने बयानों से अक्सर विवाद पैदा करने वाले रमेश ने विधानसभा चुनावों में प्रदर्शन को आधार बनाते हुए सबसे पहले नेतृत्व पर सवाल उठाया था। सीमांध्र, तेलंगाना, झारखंड की चुनावी जिम्मेदारी संभाल रहे जयराम इन राज्यों में पार्टी की प्रतिष्ठा बचाने में नाकाम रहे।